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पूछता है समाज…कहां हैं बेटी बचाने वाले!

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नुजहत जहां

03 अक्तूबर 2024

भारत (India) में महिलाओं के प्रति लोग इतने अमानुषिक हो जायेंगे, यह बात कभी किसी की कल्पना में भी नहीं आयी होगी. पर, जाने-अनजाने समाज आज वैसे ही खौफनाक हालात में जीने को मजबूर है. दरिंदगी (Brutality) ऐसी कि सामान्य महिलाओं (Women) की बात छोड़ दें, दरिंदों की नापाक नजरों से न चार साल की बच्चियां (Girls) सुरक्षित हैं और न ही बुजुर्ग महिलाएं (Old Women). इन पर रोज कहीं न कहीं बिजलियां गिरायी ही जा रही हैं. ऐसी पाशविकता से सभ्य समाज का सिर शर्म से बार-बार झुक जा रहा है. पर, शर्म उन्हें नहीं आ रही है जिन पर बच्चियों-महिलाओं को सुरक्षा देने की प्रशासनिक एवं संवैधानिक जिम्मेदारी है. कोफ्त होती है ऐसे लोगों पर कि अपनी जिम्मेदारी को ‘नारी सशक्तीकरण’ और ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ जैसे मीठे व लुभावने नारों में लपेट अपने कर्तव्य को इतिश्री मान बैठते हैं. इसे उनकी निर्लज्जता ही कही जायेगी कि जमीनी हकीकत (Ground Reality) से कोई मतलब नहीं रखते हैं.

घूरती रहती हैं दरिंदों की गुर्राती आंखें

इसी का दुष्परिणाम है कि किसी क्षेत्र विशेष में ही नहीं, करीब-करीब संपूर्ण देश में ताक लगाये मानवरूपी भूखे भेड़िये (Hungry Wolves) अपनी करतूतों से मानवता को शर्मसार (Shameful to Humanity) कर रहे हैं. पुलिस प्रशासन की नामर्दगी को बेपर्द भी कर दे रहे हैं. असहाय-सा हो गया समाज इस बात को लेकर बेहद चिंतित है कि बहन-बेटियां (Sisters and Daughters) ही नहीं, बुजुर्ग महिलाएं भी न अपने घर में सुरक्षित हैं और न स्कूल में. न अस्पताल में और न अपने कार्यस्थल पर. दरिंदों की गुर्राती आंखें उन्हें ऐसी तमाम जगहों पर घूरती रहती हैं. मौका मिला नहीं कि झपट्टा मार बैठते हैं. हद तो यह कि पुलिस (Police) थानों में भी महिलाएं यौन हिंसा (Sexual violence) का शिकार हो रही है. ओडिसा (Odisha) के भरतपुर थाने में भारतीय सेना के कैप्टन की मंगेतकर के साथ जो हुआ उसने पुलिस महकमे के साथ समस्त सभ्य समाज को भी लज्जित कर दिया.इधर के दिनों में ऐसी और भी अनेक दर्दनाक घटनाएं हुई हैं जिनसे इस धारणा को मजबूती मिल रही है कि भारत में बेटियां अब सुरक्षित नहीं रह गयी हैं.

आखिर, कब तक रहेगा यह डर?

घटना पश्चिम बंगाल (West Bengal) के कोलकाता की हो या महाराष्ट्र (Maharashtra) के बदलापुर की. या फिर बिहार के मुजफ्फरपुर की, हर जगह दरिंदगी की इंतहा दिखी. ऐसी कि लड़कियां घर से निकलने से डरने लगी हैं. सड़क का ही नहीं, आसपास का भी प्रायः हर चेहरा उन्हें डरावना (Scary) नजर आने लगा है. माता-पिता बच्चियों को स्कूल (School) भेजने से भय खाने लगे हैं. आखिर, यह डर कब तक रहेगा? सुनने में कितना अच्छा लगता है कि लड़कियां अपने जीवन में कुछ भी कर सकती हैं. लेकिन, क्या वास्तव में ऐसा है? बिल्कुल नहीं है. वास्तविक जिंदगी में लड़कियों को हमेशा दबाया और कुचला ही जाता रहा है. घर हो या दफ्तर. या सार्वजनिक स्थल. पुरुष उन्हें उपभोग की वस्तु से ज्यादा महत्व नहीं देता है. इस कारण वे खुद को असहाय (Helpless) और असुरक्षित (Vulnerable) महसूस करती हैं. इसे विडम्बना ही कहेंगे कि अपने देश में इंसाफ (Justice) के लिए अब भी भीख मांगनी पड़ती है!

थाने में हैवानियत

इंसाफ नहीं मिलने पर जनता विरोध प्रदर्शन करती है तो अपराधी (Criminal) को पकड़ने की बजाय प्रशासन आम लोगों को ही गिरफ्तार कर प्रताड़ित करता है. ठाणे का बदलापुर (Badlapur of Thane) इसका बड़ा उदाहरण है. तीन और चार साल की बच्चियों का स्कूल के 24 वर्षीय सफाईकर्मी ने कथित रूप से यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment) किया. आक्रोशित जनता सड़क पर उतर आयी. बेटियों को इंसाफ दिलाने के लिए लोगों ने आंदोलन किया. प्रशासन ने आरोपित (Accused) की बजाय आंदोलनकारियों (Agitators) के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करा दी. प्राथमिकी करीब 300 लोगों के खिलाफ दर्ज हुई. 32 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. स्वाभाविक रूप से प्रशासन की इस अनीति से इंसाफ कांप उठा. ओडिसा के भरतपुर थाने में गुंडागर्दी की शिकायत लेकर गयी कैप्टन की मंगेतकर के साथ महिला और पुरुष पुलिसकर्मियों ने जो हैचानियत की वह भी ऐसा ही कुछ मामला है.

हालात बिल्कुल नहीं बदले

09 अगस्त 2024 को पश्चिम बंगाल से दुष्कर्म (Rape) के बाद महिला चिकित्सक की हत्या (Murder) का मामला उठा. सोशल मीडिया (Social Media) पर उनके लिए इंसाफ की गुहार (Plea for justice) लगायी गयी. इस क्रूरतम घटना (Cruelest Incident) ने इंसानियत को इस कदर झकझोर दिया कि हर किसी को 2012 में दिल्ली में निर्भया के साथ हुई वीभत्सता की याद ताजा हो गयी. लेकिन, निर्भया के साथ नृशंसता सुनसान सड़क पर रात के अंधेरे में हुई थी. कोलकाता में महिला चिकित्सक (Female Doctor) पर बर्बरता दिन के उजाले में सरकारी अस्पताल के सेमिनार हॉल में हुई, जहां लोगों का हर वक्त आना-जाना लगा रहता है. यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि निर्भया कांड के 12 साल बीत जाने के बाद भी ऐसे मामले में समाज के हालात बिलकुल नहीं बदले हैं. यह वाकई गंभीर चिंता का विषय है. दुष्कर्म और हत्या का मामला आज भी हर जगह गरमाया हुआ है.


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तब भी नहीं लग पा रहा अंकुश

ताज्जुब की बात यह कि ऐसी जघन्यतम वारदातों पर भी महिला सांसदों और महिला मंत्रियों के मुंह नहीं खुलते हैं. एक-दो अपवादों को छोड़ प्रायः सभी के मुंह में दही जम जाते हैं. बच्चियों- महिलाओं से दुष्कर्म और उनकी हत्या की घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि को लेकर पूरे देश में गुस्सा उफना रहा है. लोग चिंता जता रहे हैं, महिलाओं के अधिकारों से लेकर उनकी आजादी का मुद्दा उठा रहे हैं. कहीं कानून सख्त करने की मांग हो रही है तो कहीं आरोपितों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई की आवाज उठायी जा रही है. पश्चिम बंगाल से लेकर दिल्ली (Delhi) तक में लोग सड़कों पर मुट्ठियां लहरा रहे हैं. ऐसा लग रहा है मानो हर कोई लड़कियों को आजाद देखना चाहता है. उनके साथ कुछ भी गलत होते देखना-सुनना उन्हें बर्दाश्त नहीं है. लड़कियां भी समाज को इसी तरह अपने पक्ष में खड़ा देखना चाहती हैं. लेकिन, अजीब बात यह है कि जो समाज दुष्कर्म की बढ़ती घटनाओं के विरुद्ध आक्रोशित है उसी समाज में ऐसी घटनाएं हो रही हैं, उन पर कोई अंकुश नहीं लग पा रहा है.

बुजुर्ग महिला को भी नहीं छोड़ा!

चिंतन कीजिये, 9 अगस्त 2024 की घटना को लेकर जिस तरह का विरोध प्रदर्शन हुआ, बहसीपना (Argumentativeness) पर उसका कोई असर दिखा? ऐसी घटनाओं में कमी आयी? ऐसा बिलकुल नहीं हुआ. यहां हर रोज हैवानियत की सीमा तय होती है. बदलापुर के ही मामले को देखिये. यह 9 अगस्त 2024 के बाद की घटना है. महाराष्ट्र के ठाणे की है जहां तीन और चार साल की बच्चियों का यौन उत्पीड़न उसी स्कूल के एक सफाई कर्मी ने किया. बच्चियां उस सफाईकर्मी को ‘दादा’ कहती थीं, उन्हें अपना समझती थीं. लेकिन, उस जानने वाले ने उनके साथ क्या किया? मौका मिला नहीं कि कपड़े उतारकर उनके नाजूक अंगों को छूने का पाप किया. आपराधिक कुकृत्य किया. यह कहने में संकोच नहीं कि मौका मिलते ही लड़कियों को दबोचा जा रहा है. हैवानियत की हद पार कर उसकी निर्मम हत्या की जा रही है. रोंगटे खड़े कर देने वाला उदाहरण बिहार (Bihar) के मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur) के पारू (Paroo) थाना क्षेत्र का है. 12 अगस्त 2024 को महादलित बालिका की जिस निर्ममता से हत्या हुई उससे मानवता सिहर उठी. इस घटना के कुछ ही दिनों बाद 16 अगस्त 2024 को राजस्थान (Rajasthan) के सिरोही (Sirohi) जिले के आबूरोड रीको थाना क्षेत्र में बहशियों ने घर में घुसकर एक 63 वर्षीया महिला के साथ सामूहिक दुष्कर्म (Gang Rape) किया. लानत है ऐसे दरिंदों को कि एक बुजुर्ग महिला को भी नहीं छोड़ा. हवस का शिकार बना लिया.

सोच बदलनी होगी समाज को

गौर कीजिये उक्त दोनों घटनाओं पर. एक मामले में छोटी बच्चियां पीड़िता हैं और दूसरे में बुजुर्ग महिला. हर इंसान के मन में बच्चियों और बुजुर्ग महिला के लिए अलग-अलग भाव होते हैं. बच्चियों को देख मन में स्नेह उमड़ता है तो बुजुर्ग महिला के प्रति श्रद्धा और सम्मान का भाव जगता है. लेकिन, दुष्टात्मा को इनमें न छोटी बच्ची दिखती है न बुजुर्ग अवस्था, उन्हें सिर्फ वासना दिखायी देती है. ये हैवान बच्ची हो या बुजुर्ग, उन्हें सड़क पर भी दबोच ले सकते हैं और बंद कमरे में भी. ऐसे दुष्कांडों पर अंकुश लगाने के लिए समाज सख्त कानून की जरूरत महसूस करता है. लेकिन, बड़ा सवाल यह है कि सिर्फ कानून को सख्त बना देने से इस दुष्प्रवृति से मुक्ति मिल जायेगी? नहीं, कतई नहीं. इसके लिए समाज को अपनी सोच और मानसिकता बदलनी होगी. इसलिए कि अपराधी आसमान से नहीं टपकते हैं, इसी समाज के होते हैं. सरकार के स्तर पर सख्ती की तो जरूरत है ही, कुमार्गियों को रास्ते पर समाज ही ला सकता है. लेकिन, सोचने वाली बात यह भी है कि क्या अभी का समाज इतना समर्थ है ?

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