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जीतनराम मांझी : ‘घरौना’ में सिमट गयी राजनीति !

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विष्णुकांत मिश्र

22 नवम्बर 2024

Patna : गांव-समाज में दो लोकोक्तियां काफी प्रचलित हैं. ‘चलनी दूसे सूप के, जेह में खुदे बहत्तर छेद’ और ‘अप्पन टेटर देखे न, दूसरे के फुंसी निहारे’. मतलब खुद की कमियों को न देख-समझ दूसरे में खामियां खोजना. केन्द्रीय मंत्री जीतनराम मांझी (Union Minister Jitan Ram Manjhi) इन लोकोक्तियों का प्रयोग अक्सर करते हैं. अन्य मुद्दों के अलावा राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद (Lalu Prasad) की राजनीति में परिवारवाद (Parivaravad) पर भी गाहे-बगाहे इसे उद्धृत कर तंज कसते रहते हैं. लेकिन, इधर इमामगंज (Imamganj) के उपचुनाव (by-election) में पुत्रवधू दीपा मांझी (Deepa Manjhi) को अपनी पार्टी का उम्मीदवार बना वह खुद इसके दायरे में आ गये हैं.

समर्पण का सम्मान नहीं

दिलचस्प बात यह कि इस फैसले से इनका परिवार भी लालू प्रसाद के ‘राजनीतिक घराना’ (Political family) की तरह नहीं सही, ‘राजनीतिक घरौना’ के तौर पर स्थापित अवश्य हो गया है. ठीक वैसे ही जैसे कभी रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) का परिवार स्थापित था. हालांकि, वर्तमान में परिवारवाद व वंशवाद राजनीति के लिए परित्यज नहीं रह गया है. कुछ अपवादों को छोड़ प्रायः सभी बड़े प्रभावशाली नेता वंश मोह में समक्ष-समर्थ दलीय कार्यकर्ताओं की निष्ठा को नजरंदाज कर रहे हैं. लाख आलोचनाओं के बाद भी उनके समर्पण का सम्मान नहीं कर रहे हैं. अवसर उन्हें नहीं उपलब्ध करा उनकी राजनीतिक आकांक्षाओं पर अक्षम- असमर्थ परिवारजनों को थोप रहे हैं.

परिवार में हैं कई सियासी चातक

जीतनराम मांझी की राजनीति का चरित्र भी उससे अलग नहीं है. बात वह जो करें, अपने ‘घरौना’ से अलग जा ही नहीं सकते हैं. सामान्य स्थिति में परिवार से इतर निष्ठावान नेता-कार्यकर्ता को चुनाव लड़ने का अवसर उपलब्ध करा नहीं सकते हैं. ऐसा इसलिए भी नहीं कर सकते हैं कि परिवार में ही ऐसे कई ‘सियासी चातक’ (Siyasi Chatak) हैं जो सत्ता की बूंद के लिए टकटकी लगाये रहते हैं. कौन-कौन हैं और कैसे-कैसे हैं, इसे इस रूप में समझिये. जीतनराम मांझी खुद सांसद हैं, केन्द्र में मंत्री भी हैं. उनके बड़े पुत्र संतोष कुमार सुमन (Santosh Kumar Suman) विधान परिषद के सदस्य हैं और नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की सरकार में मंत्री हैं. हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.

पूरी नहीं हुई मनोकामना

जीतनराम मांझी की समधिन यानी संतोष कुमार सुमन की सास ज्योति देवी (Jyoti Devi) बाराचट्टी (Barachatti) से विधायक (MLA) हैं. 2020 में महागठबंधन (grand alliance) का घटक रहते जीतनराम मांझी ने अपने इंजीनियर दामाद देवेन्द्र मांझी (Devendra Manjhi) को मखदुमपुर (Makhdumpur) से चुनाव लड़वाया. मुंह की खा गये. देवेन्द्र मांझी की नजर इमामगंज के उपचुनाव पर थी. मनोकामना पूरी नहीं हो पायी. 2015 में भी जीतनराम मांझी की पार्टी एनडीए (NDA) का हिस्सा थी. खुद दो निर्वाचन क्षेत्रों मखदुमपुर और इमामगंज से लड़ गये. बाराचट्टी में समधिन ज्योति देवी को उम्मीदवार बना दिया तो औरंगाबाद (Aurangabad) जिले के कुटुम्बा (kutumba) में पुत्र संतोष कुमार सुमन को. संतोष कुमार सुमन तो हार ही गये, मखदुमपुर (Makhdumpur) में जीतनराम मांझी भी मात खा गये.

नहीं मिली उम्मीदवारी

एक ‘सियासी चातक’ जीतनराम मांझी के छोटे पुत्र प्रवीण कुमार सुमन (Praveen Kumar Suman) भी हैं. अक्सर विवादों में घिर जाने के कारण चुनाव लड़ने का अवसर उन्हें नहीं मिल पाया है. पिता के सांसद बन जाने के बाद इमामगंज की विरासत संभालने की उम्मीद जगी थी. पर, वह उम्मीद ही रह गयी. उपचुनाव में उम्मीदवारी नहीं मिल पायी. जीतनराम मांझी की बेटी सुनैना देवी (Sunaina Devi) गया नगर निगम (Gaya Municipal Corporation) की राजनीति करती हैं. 2022 में महापौर पद की उम्मीदवार थीं. पिता के खूब जोर लगाने के बावजूद हार गयीं. कहते हैं कि संभावना तनिक भी नहीं रहने के बावजूद इमामगंज की विरासत संभालने की इच्छा उनकी भी कुलबुला रही थी.


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नहीं हुई कोई हैरानी

परन्तु, अवसर सोशल मीडिया में सक्रिय रहने वालीं जीतनराम मांझी की बहू , विधायक ज्योति देवी की पुत्री और संतोष कुमार सुमन की पत्नी पूर्व जिला पार्षद दीपा मांझी (Deepa Manjhi) को मिल गया. इस पर अवसर से वंचित रह गये परिवारजनों के अलावा अन्य किसी को कोई हैरानी नहीं हुई. इसलिए कि यही अनुमानित था. निराशा उन कार्यकर्त्ताओं को जरूर हुई, जो परिवारवाद के घटाटोप अंधेरे में खुद के लिए जुगनू तलाश रहे थे. नियति उनकी झोला टांगने वाली ही बनी रह गयी.

सौतेलापन की झलक

जीतनराम मांझी के ‘राजनीतिक घरौना’ का स्याह पक्ष यह है कि इसमें उनके छोटे पुत्र प्रवीण कुमार सुमन के लिए कोई जगह नहीं है. राजद के नेता हैं अनिल कुमार साधु. दिवंगत लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान के दामाद. उनके मुताबिक जीतनराम मांझी की दो शादियां हुई थी. प्रवीण कुमार सुमन दूसरी पत्नी के पुत्र हैं. यानी संतोष कुमार सुमन के सौतेला भाई हैं. ऐसा माना जाता है कि ‘हम’ की संपूर्ण राजनीति संतोष कुमार सुमन के चंगुल में है. प्रवीण कुमार सुमन के प्रति उसमें सौतेलापन की झलक दिखती है. आम आवाम महसूस कर रहा है कि जीतनराम मांझी चाह कर भी छोटे पुत्र पर प्यार नहीं उड़ेल पा रहे हैं. वैसे, सच क्या है यह उनके सिवा और कोई नहीं बता सकता है.

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