किस्सा कोठी का : 12 जनपथ… हो गयी थीगति उनकी अतिथि की!
विकास कुमार
29 नवम्बर 2024
PATNA : दिवंगत लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान (Ramvilash Paswan) की राजनीतिक विरासत (Political Legacy) का विवाद अक्सर सुर्खियों में आ जाता है. कुछ ही दिनों पूर्व केन्द्रीय मंत्री जीतनराम मांझी (Jeetanram Manjhi) ने पूर्व केन्द्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस (Pashupati Kumar Paras) को उनका वास्तविक उत्तराधिकारी बता इसे नये सिरे से सुलगा दिया था. भारतीय परम्परा में उत्तराधिकार पुत्र को मिलता है. रामविलास पासवान का उत्तराधिकार चिराग पासवान (Chirag Paswan) को मिला. इस पर विवाद की गुंजाइश नहीं बनती है.परन्तु, पशुपति कुमार पारस का रामविलास पासवान के प्रति भाई भरत सरीखा जो समर्पण और निष्ठा थी, पार्टी और परिवार में उसके अनुरूप महत्व मिलना चाहिए था. वैसा मिला क्या?
विदाई की पृष्ठभूमि थी वह
जीतनराम मांझी ने मूलतः इसी मुद्दे को उठाया था. पासवान परिवार, चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस की कथा बहुत लंबी है. इसमें कई प्रसंग हैं. शुरुआत मध्य दिल्ली के लुटियंस जोन (Lutyens Zone) की 12 नम्बर कोठी यानी 12 जनपथ (12 Janpath) से करते हैं. वैसे तो बात बहुत पुरानी है, पर प्रासंगिकता उसकी बनी हुई है. 2014 के मई महीने की झुलसाती गर्मी में 12 जनपथ में बने अतिरिक्त निर्माण ढहाये जा रहे थे. उस वक्त शायद किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि असल में वह इस आलीशान रिहाईश से रामविलास पासवान की विदाई की पृष्ठभूमि थी.
चलने लगा था चिराग का शासन
कांग्रेस (Congress) की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी (Soniya Gandhi) के आवास-10 जनपथ के ठीक बगल की इस कोठी को रामविलास पासवान ने बड़े जतन से पाला था. लगाव ऐसा कि 2009 के संसदीय चुनाव में हार के बाद जब वह किसी सदन के सदस्य नहीं रह गये थे, इस बंगले को सरकारी दर पर भारी किराया देकर बचाये रखा था. 2014 में उनके परिवार में चार-चार सांसद थे. नयी दिल्ली सहित कई शहरों में मकान थे. लेकिन, 12 जनपथ वाली कोठी में वह शरीर के रहने के बावजूद मन से नहीं रह रहे थे. क्योंकि बहुत पहले से ही इस परिसर में रामविलास पासवान के बदले उनके इकलौते पुत्र चिराग पासवान का शासन चलने लग गया था.
आह नहीं निकली उनकी
ऐसा स्वाभाविक भी था. चिराग पासवान कानूनी तरीके से लोजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष (National President) बन गये थे. इसकी तैयारी पहले से चल रही थी. इस रूप में पशुपति कुमार पारस को पहला सदमा मिला. लेकिन, बड़े भाई के प्रति अगाध श्रद्धा ही थी कि आह नहीं निकली. यह हर किसी को मालूम है कि मई 2014 में चिराग पासवान के सांसद बनने से पहले रामविलास पासवान की कोठी का बड़ा हिस्सा अतिथिशाला के रूप में इस्तेमाल होता था. इलाज, नौकरी की पैरवी, दिल्ली के विश्वविद्यालयों के कालेजों में दाखिला या किसी और काम से दिल्ली गये राज्य के आम लोग बिना किसी पूछताछ के वहां जा सकते थे. रात में ठहर सकते थे और रामविलास पासवान के बड़े संपर्कों का लाभ उठाकर अपना काम करा सकते थे.
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नहीं कर सके पीड़ा का इजहार
चिराग पासवान ने सबसे पहले 12 जनपथ के अतिरिक्त निर्माण को ध्वस्त कराया. लोगों को इससे तकलीफ हुई. उन्होंने रामविलास पासवान से शिकायत की. बड़ी ही मासूमियत से उन्होंने बेटे का बचाव किया-लुटियंस जोन के बंगले में अतिरिक्त निर्माण को नहीं रखा जा सकता है. इसलिए इन्हें तोड़ दिया गया है. विडम्बना देखिये, अपनी पीड़ा का यह कहकर वह इजहार नहीं कर सके कि इस घर में कुछ दिनों बाद वह भी अतिथि बन जायेंगे. राजनीति ने महसूस किया कि पांच साल बाद यानी 2019 के संसदीय चुनाव के बाद जतन से बचाये गये 12 जनपथ में वह सचमुच ‘अतिथि की गति’ को प्राप्त हो गये.
कोठी खाली करा दी गयी
08 अक्तूबर 2020 को रामविलास पासवान का निधन (Ram Vilas Paswan passes away) हो गया. उनकी स्मृतियों को 12 जनपथ में सहेजे रखने की चिराग पासवान ने भरपूर कोशिश की. मंशा पूरी नहीं हो पायी. तकरीबन तीस वर्षों तक रामविलास पासवान के कब्जे में रहे 12 जनपथ को जून 2022 में खाली करा दिया गया. रामविलास पासवान से जुड़ी तमाम स्मृतियों को बड़ी बेरहमी से सड़कों पर बिखेर दिया गया. कारण जो रहा हो, सामान्य धारणा यही बनी कि बिहार विधानसभा के 2020 के चुनाव में चिराग पासवान के एनडीए से अलग चुनाव लड़ने की यह परिणति थी. 12 जनपथ में अब पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद रह रहे हैं.
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