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बिहार और निशांत कुमार : धड़कने बेतहाशा तड़पने लगी

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विष्णुकांत मिश्र
23 मार्च 2025
 नीतीश कुमार (Nitish Kumar) निर्विकार हैं. कह सकते हैं कि रहस्यमयी चुप्पी साध रखे हैं. राजनीति से विरत उनके पुत्र निशांत कुमार (Nishant Kumar) में स्पष्ट तौर पर उसके प्रति कोई राग-भाव पैदा होता नहीं दिख रहा है. तब भी उनके एक बयान ने बिहार की सियासत में ऐसी गर्मी पैदा कर दी है कि उसकी तपिश से तमाम सत्ताकामी नेताओं का स्वार्थ झुलस-सा गया है. विशेष कर पक्ष और विपक्ष के वैसे नेताओं को अपने पांव के नीचे की जमीन खिसकने का अहसास हो रहा है जिन्होंने नीतीश कुमार की राजनीति के अवसान से खुद के इस रूप में उत्थान का हसीन ख्वाब पाल रखा है. निशांत कुमार बिहार (Bihar) की सत्ता पर तकरीबन बीस वर्षों से काबिज राज्य के सबसे ताकतवर नेता नीतीश कुमार के पचास वर्षीय इकलौते अविवाहित इंजीनियर पुत्र हैं.

वक्त्वय-दर-वक्तव्य
कारण क्या रहा क्या नहीं, आम अवाम को इससे कोई खास मतलब नहीं है. यह उनका व्यक्तिगत मामला है. पूर्व के हालात क्या थे क्या नहीं यह भी. लेकिन, लोगों ने यह अवश्य देखा-सुना और महसूस किया कि पिता के दीर्घकालिक सत्ताकाल में भी निशांत कुमार राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य से प्रायः ओझल रहे हैं. पारिवारिक आयोजनों में ही कभी-कभार उनका दरस हुआ है. वही निशांत कुमार इन दिनों अचानक से सक्रिय हो मीडिया की सुर्खियों में हैं. राजनीति का चकित होना स्वाभाविक है कि मीडिया (Media) से दूर-दूर रहने वाले निशांत कुमार खुद आगे बढ़ कर वक्तव्य- दर-वक्तव्य दे रहे हैं. सियासत से नाक-भौं सिकोड़ने, कभी इस क्षेत्र में कदम नहीं रखने का सिद्धांत बघारने वाले निशांत कुमार राजनीति की बड़ी-बड़ी बातें करने लगे हैं.

अलग-अलग व्याख्या
पिता नीतीश कुमार के साथ सामाजिक आयोजनों का हिस्सा बनने लगे हैं. इतना भर ही नहीं, बिहार के विकास में नीतीश कुमार के बड़े योगदान की तारीफ कर मुख्यमंत्री (Chief Minister) के रूप में उन्हें एक और मौका मिलने की वकालत कर रहे हैं. इस ‘एक और मौका’ में बिहार का हित समाहित है या पिता के प्रति अनुराग, यह कहना कठिन है. निशांत कुमार की सत्ता पक्ष के कतिपय बड़े नेताओं की धड़कनें बढ़ा देने वाली सक्रियता और सुलझे-सधे बयानों की राजनीतिक हलकों में अलग-अलग व्याख्या हो रही है. उनके सक्रिय राजनीति में कदम रखने की बात की जा रही है. राजद (RJD) में लालू प्रसाद (Lalu Prasad) के पुत्र तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejashwi Prasad Yadav) , लोजपा (LJP) में रामविलास पासवान (ram vilas paswan) के पुत्र चिराग पासवान (chirag paswan)और ‘हम’ (Ham) में जीतनराम मांझी (jitan ram Manjhi) के पुत्र संतोष कुमार सुमन (Santosh Kumar Suman) की तरह निशांत कुमार को जदयू (JDU) में नीतीश कुमार के राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाने लगा है.


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भावनात्मक अभिव्यक्ति
राजनीति में उतरने या नहीं उतरने की बात अपनी जगह है, फिलहाल निशांत कुमार जिस बेबाकी से मीडिया के समक्ष अपने पिता नीतीश कुमार को 2025 में भी बिहार की सत्ता सौंपने की बात रख रहे हैं, उसने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में ला दिया है. निशांत कुमार का कहना है कि उनके पिता यानी नीतीश कुमार ने बिहार (Bihar) के लिए बहुत कुछ किया है. भाजपा (BJP) समेत एनडीए (NDA) के तमाम घटक दलों को ऐलान करना चाहिये कि नीतीश कुमार ही उनके चेहरे होंगे, 2025 में भी बिहार की सत्ता संभालेंगे. विश्लेषकों की समझ में निशांत कुमार के समझदारी भरे इस पहले सार्वजनिक बयान का एनडीए की राजनीति में अतिरिक्त हलचल पैदा करने के अलावा और कोई महत्व नहीं है. ‘2025 फिर से नीतीश’ एनडीए का घोषित संकल्प है. इसी लक्ष्य के साथ उसका राज्यव्यापी अभियान भी चल रहा है. इस दृष्टि से निशांत कुमार का बयान पिता के लिए पुत्र की भावनात्मक अभिव्यक्ति भर है, इससे ज्यादा कुछ नहीं.

भाजपा क्यों उठायेगी जोखिम?
लेकिन, सवाल यहां यह उठता है कि निशांत कुमार ने ऐसी बयानबाजी क्यों की? क्या उन्हें भी चुनाव बाद महाराष्ट्र (Maharashtra) जैसे हालात पैदा हो जाने की आशंका है? महाराष्ट्र में भाजपा महायुति गठबंधन में एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) को मोर्चे पर रख चुनाव में उतरी थी. खुद बहुमत के करीब पहुंच गयी तब उन्हें पीछे धकेल उसने देवेन्द्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) को मुख्यमंत्री के तौर पर थोप दिया. हालांकि, निशांत कुमार या जदयू के दूसरे नेताओं की ऐसी आशंकाओं का कोई ठोस आधार नहीं है.बिहार की गठबंधन आधारित राजनीति का समीकरण इतना पेचीदा है कि महाराष्ट्र जैसी चालाकी यहां सफल नहीं हो सकती है. इसलिए भी नहीं कि सौ के आसपास सीटों पर चुनाव लड़ने वाली भाजपा बिहार में महाराष्ट्र जैसी हैसियत में आ ही नहीं सकती है. भाजपा में कोई वैसा लोकप्रिय प्रादेशिक नेतृत्व भी नहीं है जिसके लिए वह गठबंधन टूटने की हद तक जोखिम उठाये.

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