टिक्कर सिंह ने भी तलाशी थी पत्नी के जरिये राजनीति में संभावना
विशेष संवाददाता
27 सितम्बर, 2021
BARAHIYA. राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद तब अक्सर कहा करते थे कि अपराधियों की जिन्दगी बारह साल की होती है. कुत्ते की आयु भी बारह वर्ष की होती है. लालू प्रसाद (Lalu Prasad) के ऐसा कहने का तात्पर्य यही था. यानी आतंक का पर्याय बन गया अपराधी (Criminal) कुत्ते की मौत मरता है. पाताल लोक में पांव रखने के बारह वर्षों के अंदर पुलिस से मुठभेड़ या गैंगवार में सुरधाम का रास्ता धर लेता है.
हालांकि, इसके कुछ अपवाद भी होते हैं. टिक्कर सिंह (Tikkar Singh) और खिखर सिंह (Khikhar Singh) वैसे ही अपवाद रहे. अपवाद कैसे बन गये यह कथा काफी रोचक है. खासकर टिक्कर सिंह की कथा. अरुण कुमार सिंह उर्फ खिखर सरदार ने सरगनाओं के सिंडिकेट से जुड़ अपनी आयु लम्बी खींच ली. वह अब इस धरती पर नहीं है.
अब भी फहर रहा टिक्कर सिंह
सुनील सिंह उर्फ टिक्कर सिंह अब भी फहर रहा है. आतंक भले मिट गया है, अनेक जानी दुश्मनों के इर्द-गिर्द मंडराते रहने के बावजूद अस्तित्व बना हुआ है, तो आखिर इसकी वजह क्या है? यह जानने की जिज्ञासा जरूर जगी होगी. एक वाक्य में इसका जवाब है कि बड़हिया की तब की बारूदी गंध से दूर हो जाने से उसकी जान बची रह गयी.
टिक्कर सिंह की अपराध यात्रा काफी लंबी है. बड़हिया के लोग बताते हैं कि उस यात्रा में कभी पूर्व बाहुबली सांसद सूरजभान सिंह (Surajbhan Singh) भी शामिल थे. किस रूप में यह बताना शायद अब उनको नागवार गुजरेगा. पूर्व की बातों को अभी छोड़ दें. उस पर कभी विस्तार से चर्चा की जायेगी.
देवन सिंह की हत्या का आरोप
16 जनवरी1982 को गांव के ही दुर्दांत देवन सिंह (Devan Singh) की हत्या हो गयी. उस मामले में 1989 की शुरुआत में टिक्कर सिंह की गिरफ्तारी हुई थी. उसी साल 26 अगस्त को जमानत भी मिल गयी. जेल से वह सीधे बड़हिया आ गया. सरगनाओं के घात-प्रतिघात से वहां ‘गृह युद्ध’ जैसे हालात थे. टिक्कर सिंह और खिखर सिंह के बंदूकबाजों की भी उसमें संलिप्तता थी.
चार वर्षों तक उस हालात से जूझने के बाद 1993 में टिक्कर सिंह वाराणसी (Varanashi) चला गया. लगभग साल भर बाद 06 मई 1994 को रूबी सिंह (Rubi Singh) से उसने शादी कर ली. रूबी सिंह लखीसराय (Lakhisarai) जिले के पिपरिया प्रखंड के रामचन्द्रपुर (वलीपुर) की है. शादी वाराणसी के संकट मोचन मंदिर में हुई थी.
जगी राजनीतिक महत्वाकांक्षा
शादी के कुछ समय बाद रूबी सिंह के दबाव पर टिक्कर सिंह बड़हिया लौट गया. उसी दौरान राजनीतिक महत्वाकांक्षा जगी. समझ यह कि चुनावों में दूसरे की तकदीर चमका सकता है तो फिर अपनी क्यों नहीं?
सच या झूठ, नब्बे के दशक में बड़हिया के पूर्व कांग्रेस विधायक अश्विनी शर्मा (Ashwini Sharma) के लिए चुनावों में बंदूक लहराने की खूब चर्चा हुई थी.
कपिलदेव सिंह ने दिलवायी उम्मीदवारी!
1995 के विधानसभा चुनाव में अवसर मिल गया. टिक्कर सिंह की पत्नी रूबी सिंह को जमुई जिले के चकाई से समाजवादी पार्टी की उम्मीदवारी मिल गयी. बड़हिया निवासी समाजवादी नेता पूर्व मंत्री कपिलदेव सिंह (Kapildeo Singh) तब इस पार्टी के प्रधान महासचिव थे.
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अनुमान के अनुरूप चकाई में रूबी सिंह की जमानत जब्त हो गयी. 6 हजार 776 मतों में ही सिमट गयी. हार-जीत अपनी जगह है, उसकी समाजवादी पार्टी की उम्मीदवारी से राजनीति चौंक गयी. टिक्कर सिंह समाजवादी नेता कपिलदेव सिंह को फूटी आंखों नहीं सुहाता था. वैसी स्थिति में उसकी पत्नी को उनकी पार्टी की उम्मीदवारी मिल गयी!
‘समर्पण’ पर उठा था सवाल
तब चर्चा हुई थी कि उनका यह ‘समर्पण’ एक अतिकरीबी को ‘महासंकट’ से उबारने की विवशता आधारित था. बड़हिया में रहने के दरम्यान टिक्कर सिंह के भाई नरेश सिंह की हत्या हो गयी. आरोप दिवंगत सरगना देवन सिंह के भाई वशिष्ठ सिंह (Vashisth Singh) एवं योगी सिंह (Yogi Singh) पर लगा. इलाकाई जानी दुश्मन देर-सबेर उसे भी मौत के मुंह में झोंक देते, इससे पहले जुलाई 1997 में परिवार समेत वह फिर से वाराणसी आ गया. वहीं जमीन और मकान खरीद गुप्त रूप से रहने लगा.
वाराणसी प्रवास के दौरान ही दो पुत्रियां-नेहा सिंह और तनूजा सिंह तथा एक पुत्र उज्ज्वल सिंह का जन्म हुआ. इस बीच बड़हिया के प्रतिद्वंद्वियों को उसके वहां रहने की पक्की सूचना मिल गयी. वहां वह ठेकेदारी के धंधे से जुड़ा था. जिस साझेदार के साथ ठेकेदारी कर रहा था, संभवतः पैसे को लेकर उससे तकरार हो गयी. दुष्परिणाम स्वरूप जून 2000 में उसकी हत्या की कोशिश की गयी.
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इससे भय खाकर 2001 में उसने वाराणसी का जमीन-मकान बेच दिया और 06 अप्रैल 2004 से इलाहाबाद (Allahabad) में रहने लग गया. चर्चाओं में जो बातें हैं उसके मुताबिक वाराणसी के मकान बेचने को लेकर पत्नी रूबी सिंह से झगड़ा हो गया. ऐसा कि 2003 में तलाक भी हो गया. वैसे, तलाक की बात बड़हिया के लोग वास्तविकता से परे मानते हैं. उनके मुताबिक यह महज कागजी है, धरातली नहीं. जो होे बेटा उज्ज्वल सिंह मां के साथ कोटा में पढ़ाई करने लगा. बेटियां पिता के साथ इलाहाबाद में.
2016 में हुई थी गिरफ्तारी
टिक्कर सिंह इलाहाबाद के मुट्ठीगंज थाना क्षेत्र के काशीराज नगर में प्रमोद सिंह के नाम से 17 वर्षों तक किराये के मकान में रहा. 21 मार्च 2016 को वहीं उसकी गिरफ्तारी हुई. बिहार पुलिस के एसटीएफ ने उसे दबोचा. उस वक्त शिवदीप लांडे (Shivdeep Lande) एसटीएफ (STF) के पुलिस अधीक्षक थे.
गिरफ्तारी के वक्त तक टिक्कर सिंह की बेटियां यह नहीं जान रही थीं कि वह 20 वर्षों से फरार चल रहा सुनील सिंह उर्फ टिक्कर सिंह है और उसके खिलाफ बिहार के बड़हिया, लखीसराय, मुंगेर, बेगूसराय, खगड़िया आदि जगहों में तीन दर्जन से अधिक मामले दर्ज हैं. सरकार ने भगोड़ा बता उस पर 50 हजार रुपये का इनाम घोषित कर रखा है.
अगली कड़ी …
इस कारण बच गयी टिक्कर सिंह की जान