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मुंगेर शहर से हुई थी छठ महापर्व की शुरुआत, माता सीता ने दिया था पहला अर्घ्य

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रंजीत विद्यार्थी
08 नवम्बर, 2021

MUNGER : लोक आस्था का महापर्व छठ (Chhath) का अंग प्रदेश मुंगेर में विशेष महत्व है. इस पर्व को लेकर यहां चार लोककथाएं प्रचलित हैं. उनमें से एक कथा के अनुसार माता सीता ने यहां छठ व्रत कर इस पर्व की शुरुआत की थी. आनंद रामायण (Ramayan) के अनुसार मुंगेर जिले के बबुआ घाट (Babua Ghat) से दो किलोमीटर दूर गंगा के बीच स्थित पर्वत पर ऋषि मुद्गल के आश्रम में माता सीता (Sita) ने छठ किया था. उन्होंने जहां पर छठ किया था. वह स्थान वर्तमान में सीताचरण मंदिर (Sitacharan Mandir) के नाम से प्रसिद्ध है. तब से अंग व मिथिला (Mithila) सहित पूरे देश में पांच दिवसीय महापर्व छठ व्रत का अनुष्ठान किया जाने लगा.

आनंद रामायण में है वर्णन
आनंद रामायण के पृष्ठ संख्या 33 से 36 तक सीताचरण और मुंगेर के बारे में उल्लेख है. आनंद रामायण के अनुसार, भगवान श्रीराम ने ब्राह्मण रावण का वध किया था, इसलिए राम को ब्रह्म हत्या का पाप लगा था. पापमुक्ति के लिए अयोध्या के कुलगुरु मुनि वशिष्ठ ने तत्कालीन मुद्गल (मुंगेर के पूर्व का नाम) में मुद्गल ऋषि के पास भगवान राम व सीता माता को भेजा. भगवान राम को ऋषि मुद्गल ने वर्तमान कष्टहरणी घाट में ब्रह्महत्या मुक्ति यज्ञ कराया और माता सीता को अपने आश्रम में ही रहने के आदेश दिये थे.

माता सीता के पद चिह्न.

शिलापट्ट पर हैं सूप-डाला के निशान
चूंकि महिलाएं यज्ञ में भाग नहीं ले सकती थीं, इसलिए माता सीता ने ऋषि मुद्गल के आश्रम में रहकर ही उनके निर्देश पर सूर्याेपासना का पांच दिन तक चलने वाला छठ व्रत किया था. इस दौरान माता सीता ने अस्ताचलगामी सूर्य को पश्चिम दिशा की ओर तथा उदयाचलगामी सूर्य को पूरब दिशा की ओर अर्घ्य दिया था. आज भी मंदिर के गर्भ गृह में पश्चिम और पूरब दिशा की ओर माता सीता के चरणों के निशान मौजूद हैं. इसके अलावा शिलापट्ट पर सूप, डाला और लोटा के निशान हैं.

गंगा के गर्भ में है सीताचरण मंदिर
मंदिर का गर्भ गृह साल में छह महीने तक गंगा के गर्भ में समाया रहता है . जलस्तर घटने पर छह महीने ऊपर रहता है. मंदिर के महंत रामबाबा ने बताया कि पहले शिलापट्ट पर बने निशान की लोग यहां आकर पूजा-पाठ करते थे. 1972 में सीताचरण में संतों का सम्मेलन हुआ था. उसी समय लोगों के आग्रह पर सीताचरण मंदिर बनाने का फैसला लिया गया था. 1974 में मंदिर बनकर तैयार हुआ था. वहां छठ करने से लोगों की मनोकामना पूर्ण होती है.

पदचिह्नों में है समानता
यहां मौजूद माता सीता के चरणों के निशान एवं भारत के अन्य मंदिरों में मौजूद पद चिह्न एक समान हैं. इंग्लैंड के प्रसिद्ध यात्री-सह-शोधकर्ता जार्ज अब्राह्म ग्रियर्सन जब भारत आये थे, तो उन्होंने इस मंदिर के पदचिह्नों का मिलान माता सीता के जनकपुर मंदिर (Janakpur Mandir), चित्रकूट मंदिर (Chitrakut Mandir), मिथिला मंदिर (Mithila Mandir) आदि में मौजूद पदचिह्नों से करवाया तो सभी पैरों के निशान में समानता पायी गयी थी. इस तथ्य का उल्लेख उन्होंने अपनी पुस्तक में भी किया है.

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