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डा. शिमाली सिन्हा : ‘रेकी’ है हर बीमारी का इलाज

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प्रवीण कुमार सिन्हा
04 दिसम्बर, 2021

स्वास्थ्य मनुष्य की सबसे बड़ी संपत्ति है. स्वस्थ रहने के लिए ऋषि-मुनियों ने प्रारंभिक आयुर्वेद पद्धति का इजाद किया था. कालांतर में सभ्यता के विकास के साथ चिकित्सा (Chikitsa) की अन्य कई पद्धतियां प्रचलित हुईं. एलोपैथ, होमियोपैथ, नेचरोपैथ आदि. इन पद्धतियों से तमाम तरह की बीमारियों का इलाज होता है. तब भी अलग-अलग बीमारी के लिए खास पद्धति उपयुक्त होती है. इन सब के बीच ‘रेकी’ (Reki) वर्तमान समय में ऐसी चिकित्सा पद्धति है, जिसमें दैहिक, दैविक तथा भौतिक सभी प्रकार की बीमारियों का इलाज है. ‘रेकी’ के माध्यम से बेहतर उपचार कर रहीं होप हॉस्पिटल की शिशु रोग विशेषज्ञ (Child Specialist) डा. शिमाली सिन्हा  (Dr. Shimali Sinha) से समकालीन तापमान के विशेष प्रतिनिधि प्रवीण कुमार सिन्हा की इस चिकित्सा पद्धति की विशिष्टता पर बातचीत हुई. प्रस्तुत है प्रमुख अंश:

‘रेकी’ चिकित्सा पद्धति क्या है?
उपचार संबंधी ऐसी आध्यात्मिक अभ्यास पद्धति या उपचार योग विद्या, जो शरीर, मन और आत्मा में सामंजस्य स्थापित करती है. अपने या दूसरों के शरीर के अंदर चक्रों में नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव के कारण होने वाले मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक रोग या परेशानी को बिना दवा या मालिश का उपयोग किये ब्रह्मांड में विद्यमान जीवन ऊर्जा को अलौकिक योग शक्ति से हाथों के द्वारा विशेष रीति से स्पर्श कर अपनी या दूसरों के शरीर के विभिन्न चक्रों में सकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव से नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव को नष्ट करके उपचार किया जाता है. इसे भारत में ‘स्पर्श चिकित्सा’, चीन मे ‘ची’, रूस में ‘बायो प्लास्टिक थैरेपी’ तथा जापान में ‘रेकी’ के नाम से जाना जाता है. ‘रेकी’ जापानी दो शब्दों ‘रे’ और ‘की’ से बना है. ‘रे’ का मतलब है ब्रह्मबोध या दिव्य ज्ञान और ‘की’ का मतलब जीवन ऊर्जा, जिसे संस्कृत में प्राण कहते हैं. इस तरह ‘रेकी’ का अर्थ ब्रह्मबोध जीवन ऊर्जा या दिव्य प्राण है.

‘रेकी’ की उत्पत्ति एवं विकास का इतिहास क्या है?
इस अद्भुत हीलिंग थैरेपी (Healing Therepi) की उत्पत्ति हजारों वर्ष पहले भारत में हुई थी. इसका प्रमाण अथर्ववेद में गुरु-शिष्य परंपरा के रूप में है. उसके अंतर्गत यह विद्या मौखिक रूप से पीढ़ी-दर-पीढ़ी भारत में विद्यमान रही. परन्तु, ग्रंथों में दर्ज नहीं किये जाने के कारण धीरे-धीरे लुप्त-सी हो गयी. पर, भारतीय रीति-रिवाजों में बनी रही. जैसे, हाथ मिलाना, गले लगाना, बड़े तथा सांधु-संतों द्वारा सिर पर हाथ रख आशीर्वाद देना, हाथ जोड़कर प्रार्थना करना आदि ‘रेकी’ के ही रूप हैं. इसी क्रम में 2500 वर्ष पूर्व बुद्ध ने यह विद्या अपने शिष्यों को सिखायी ताकि देशाटन के समय जंगलों में घूमते हुए उन्हें चिकित्सा-सुविधा का अभाव न हो. इस तरह बौद्ध भिक्षुओं के द्वारा यह विद्या तिब्बत, चीन, रूस होते हुए जापान तक पहुंच गयी. बाद के वर्षों में वहां भी यह लुप्त हो गयी. संत डॉ. मिकाओ उसुई ने पुनः खोज कर 1922 में इस विद्या का विकास किया, जो आज ‘रेकी’ के रूप में पूरे विश्व में फैल रही है.


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रोगयुक्त व रोगमुक्त स्वास्थ्य का आधार क्या है? ‘रेकी’ कैसे काम करती है?
शरीर में जीवन ऊर्जा का स्वच्छंद प्रवाह होना ही रोगमुक्त या अच्छे स्वास्थ्य का आधार होता है. रोगमुक्त रहने पर मन शांत और तनावमुक्त रहता है. ऐसा तभी संभव है, जब शरीर में मौजूद दस इंद्रियों में ‘छठी’ इंद्री मन ज्ञानेन्द्रियों द्वारा एकत्रित बाहरी सूचना तथा ऊर्जा का विश्लेषण कर उसे प्रभामंडल तथा सात चक्रों द्वारा अवचेतन मन में प्रवाहित करता है. इसके विपरीत शरीर में जीवन ऊर्जा के प्रवाह में रुकावट रोगयुक्त या अस्वस्थता का आधार होता है. ऊर्जा के अविरल प्रवाह में रुकावट आने से कई चक्र असंतुलित हो जाते हैं. इस कारण कोई अंग विशेष या संपूर्ण शरीर निष्क्रिय और रोगग्रस्त हो जाता है. मन अशांत और तनावयुक्त रहता है. ‘रेकी’ मानसिक, शारीरिक और आत्मिक तीनों स्तरों पर कार्य करती है. इसकी नींव पूरी तरह रोगी और चिकित्सक दोनों के विचारों, भावों, श्रद्धा और भावों के ऊपर टिकी है. उपचार में उपचारक अपने हाथों के द्वारा एक विशेष रीति से स्पर्श कर ब्रह्ममंडलीय जीवन ऊर्जा को रोगी को छूकर या बिना छुए रोगी के प्रभामंडल और चक्रों में प्रवाहित करते हैं. यह ऊर्जा अंतःस्रावी ग्रंथियों, अंगों और न्यूरो टॉस्मीटर्स में आयी रुकावट को दूर करती है.

‘औरा’ (Aura) क्या है? व्यक्ति के मनोबल, इच्छाशक्ति, दृढ़ शक्ति और संकल्प शक्ति को कैसे बढ़ाया जा सकता है?
मानव शरीर के चारो ओर चार से छह इंच के घेरे में शारीरिक ऊर्जा क्षेत्र होता है, जिसे हिन्दी में प्रभामंडल और अंग्रेजी में ‘औरा’ कहते हैं. रोग या तनावग्रस्त व्यक्ति में यह सिकुड़कर कुछ सेंटीमीटर का हो जाता है. इसके विपरीत जो साधक या सिद्धपुरुष (‘रेकी’ मास्टर) होते हैं उनका औरा एक मीटर या उससे भी बड़ा होता है. वे अपने स्पर्श के माध्यम से ही रोगी के रोगों को हर लेने या नष्ट कर देने की क्षमता रखते हैं. इसके प्रभाव से रोगी के मनोबल, इच्छा शक्ति, दृढ़ शक्ति और संकल्प शक्ति को बढ़ाया जा सकता है.

मनोमय शरीर क्या है? इसकी उपयोगिता क्या है?
मानव के शरीर के चारो ओर छह से आठ इंच के घेरे में एक और सतह होती है, जिसे मनोमय शरीर के नाम से जाना जाता है. वह विचारों या मनःस्थिति का घेरा होता है. हम अपने आम जीवन में महसूस करते हैं कि जब भी हम किसी स्वस्थ मानसिकता वाले मनुष्य के सान्निध्य में होते हैं, तो अच्छा महसूस होता है. वहीं किसी रूग्न या तनावग्रस्त मनुष्य के संपर्क में आने पर उस व्यक्ति से नकारात्मक तरंगों का मनोमय शरीर के द्वारा अनुभव होता है.

‘रेकी’ से क्या-क्या लाभ है?
रेकी उपचारक (‘रेकी’ मास्टर) डिस्टेंस हीलिंग के द्वारा दुनिया के किसी भी कोने में बैठे किसी भी प्रकार के रोगग्रस्त व्यक्ति का उपचार घर बैठे कर सकता है. यह शरीर में ऊर्जा के उन्मुक्त प्रवाह में आयी रूकावट को दूर करती है. यह शरीर के प्रभामंडल और चक्रों को शुद्ध बनाती है. शरीर में व्याप्त नकारात्मकता को दूर करती है. रक्षा प्रणाली को प्रभावी बनाती है. शरीर को शांत करती है. शरीर और मन दोनों का उपचार करती है. इसके अलावा और भी अन्य कई लाभ होते हैं.

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