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छोड़ नहीं रहा पीछा बोचहां का भूत

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विशेष प्रतिनिधि
20 जून, 2022

PATNA : विधानसभा (Assembly) और लोकसभा (Parliament) के चुनाव (Election) तो बहुत हुए, लेकिन बोचहां के परिणाम का भूत देर तक कई लोगों के सिर पर चढ़ कर नाच रहा है. इस उपचुनाव (By-Election) ने कई नेताओं को बेपर्द कर दिया है. भाजपा (BJP) के बड़े-बड़े नेता बोचहां का नाम सुनते ही मुंह बना लेते हैं, मानों किसी ने मुंह में कुछ कड़वा डाल दिया है. भाजपा के केंद्र वाले मंत्री जी अपने चहेते राज्य वाले मंत्रीजी के साथ इस चुनाव में पार्टी की जीत का ठेका लिये हुए थे. क्षेत्र में प्रचार किया गया कि बोचहां (Bochahan) का परिणाम आया और ये जो केंद्र वाले छोटे मंत्री हैं, बिहार की बागडोर संभाल लेंगे.

सावधान हो गए शांतिप्रिय लोग

तुर्रा यह कि जिले से ये सज्जन जो अभी राज्य सरकार में मंत्री (Minister) हैं, राज्य के गृह मंत्री बन जायेंगे. तब देखियेगा कि शराब (Liquor) की तस्करी से कौन किसको रोक लेगा. यूं तो वहां सत्तारूढ़ दल की हार के ढेर सारे कारण गिनाये जा सकते हैं, लेकिन, केंद्र वाले मंत्री के राज्य की बागडोर संभालने के प्रचार ने शांतिप्रिय लोगों को सावधान कर दिया. विचार का विषय यह बना कि ये जब राज्य के सर्वेसर्वा बन जायेंगे तो क्या सीन होगा. विचार के साथ ही लोगों ने तथाकथित जंगलराज से भी खराब राज्य (State) की कल्पना कर ली. बेशक यह दिल दहलानेवाला होगा.

अमर पासवान, बेबी कुमारी और गीता कुमारी.

उठ जाते हैं तब जाति व धर्म से ऊपर

मंत्रीजी की गिनती भू-अर्जन अधिकारी (Land Acquisition Officer) के रूप में होती है. इतिहास है कि राजधानी (Capital) से लेकर अपने क्षेत्र में जो कोई जमीन उन्हें पसंद आ जाती है, उस पर येन-केन प्रकारेण कब्जा जमा लेते हैं. बोचहां के चुनाव परिणाम की अगर समीक्षा हो तो उसमें यह पक्ष जोड़ना लाभप्रद हो सकता है. इस मामले में मंत्रीजी जाति धर्म से बहुत ऊपर उठे हुए हैं. जमीन के कारोबार का मामला हो तो वह किसी जाति, धर्म और दल के लोगों के साथ गठबंधन कर सकते हैं. उनकी इस तरह की दोस्ती के कई उदाहरण बड़ी-बड़ी इमारतों के रूप में राजधानी पटना और राज्य एवं देश के अन्य शहरों में मौजूद हैं. वैसे केंद्रीय मंत्री (Central Minister) की भूमिका को लेकर उनकी पार्टी में भी चर्चा हो रही है.

स्वजातीयों का भी नहीं मिला साथ

बताया जा रहा है कि उनकी अतिसक्रियता से उम्मीदवार को काफी नुकसान हुआ. फायदा कुछ नहीं हुआ. इस समझ को दमदार बनाने के लिए कागज भी जुटाये जा रहे हैं. कागज उन गांवों के बूथों का है, जहां मंत्रीजी के स्वजातीय वोटर अधिक हैं. किसी भी बूथ पर पांच-दस से अधिक वोट नहीं है. जवाब में मंत्रीजी के समर्थक प्रदेश अध्यक्ष की जाति के वोटरों का आंकड़ा जुटा रहे हैं. दावा यही है कि केंद्रीय मंत्री के साथ-साथ प्रदेश अध्यक्ष की जाति के वोटरों ने भी पार्टी का साथ नहीं दिया. कारण यह बताया जा रहा है कि राजद ने अपने विधायकों और नेताओं को भाजपा अध्यक्ष के स्वजातीय वोटरों के गांव में कैंप करवा दिया था. प्रभावित करने के मामले में राजद के नेता अध्यक्षजी पर भारी पड़ गये.

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