सभा गाछी : गाछी तो है, सभा समा गयी है औपचारिकता में…
मैथिल ब्राह्मणों की शादी की अनूठी पद्धति से जुड़ी सौराठ सभा पान, मखान, मांछ और मीठी मुस्कान के लिए विख्यात मिथिलांचल की अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर है. पाश्चात्य सभ्यता जनित आधुनिकता इसकी पौराणिकता को निगल रही है. इससे मिथिलांचल के ब्राह्मणों के विश्व के इस इकलौते सामाजिक-सांस्कृतिक आयोजन के अस्तित्व पर संकट गहरा गया है. क्या है सौराठ सभा का सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व और क्यों उत्पन हो गया है इसके अस्तित्व पर खतरा, इस आलेख में इसपर दृष्टि डाली गयी है. प्रस्तुत है उसकी पहली कड़ी :
विजयशंकर पांडेय
04 जुलाई, 2022
MADHUBANI : वक्त बदलता है, तो सब कुछ बदल जाता है-सभ्यता-संस्कृति, परंपरा, प्रथा, रीति-रिवाज, सोच-विचार व आचार-व्यवहार भी. वैसे ही बदलाव की चपेट में पान, मखान और मीठी मुस्कान के लिए विख्यात मिथिलांचल (Mithilanchal) भी है. यहां की पौराणिक गरिमा को पाश्चात्य सभ्यता जनित आधुनिकता निगल रही है. इसकी खुद की गरिमामयी सभ्यता-संस्कृति मिट रही है. परंपराएं – प्रथाएं लुप्त हो रही हैं. रीति-रिवाज महत्व खो रहे हैं. मिथिला की अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर सौराठ सभा (Saurath Sabha) पर इसका कुछ अधिक असर दिख रहा है. ‘दूल्हों का मेला’ (Dulhon ka Mela) के रूप में चर्चित मिथिलांचल के ब्राह्मणों (Brahman) का अपने ढंग का यह विश्व का इकलौता सामाजिक-सांस्कृतिक आयोजन (Ayojan) है जो अस्तित्व संकट से जूझ रहा है. इस सांस्कृतिक तीर्थ में प्रति वर्ष आषाढ़ माह में वैवाहिक सभा का आयोजन होता है.
पसरा रहता है सन्नाटा
शादी-विवाह का शुद्ध लग्न खत्म होने से पूर्व कभी सात, कभी नौ और कभी-कभी ग्यारह दिनों तक. अतीत में वर पक्ष व कन्या पक्ष के लोग जुटते थे. शादियां (Marriage) तय होती थीं, सिद्धान्तों का पंजीयन होता था. इसे इसका दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि मिथिलावासियों के तिरस्कार व सरकार (Government) के उपेक्षापूर्ण व्यवहार के चलते यह वृहत् आयोजन वर्ष-दर-वर्ष आधुनिकता (Modernity) में घुल लघुता में सिमटता चला गया. अब वहां गाछी (Gachhi) है, सभा औपचारिकता में समा गयी है. सामान्य दिनों की बात छोड़ दें, वैवाहिक सभा के आयोजन काल में भी गाछी में सन्नाटा पसरा रहता है. कुछ वयोवृद्ध पंजीकार (Panjikar) प्रतीकात्मक रूप में ही सही, इसके वजूद होने के भाव को अपने कंधों पर रखे हुए हैं, पहचान बनाये हुए हैं.
पाग भी गायब हैं सिर से
इनके बाद क्या होगा? सौराठ सभा (Saurath Sabha) के दीर्घ सन्नाटे को चीरते हुए हर साल यह सवाल (Question) मिथिलावासियों से जवाब मांगता है. पर, पाग (Paag) का लगभग परित्याग कर अपनी सांस्कृतिक पहचान मिटा रहे मैथिल समाज के पास भरोसा जमाने लायक कोई जवाब नहीं है. ‘जय मिथिला, जय मैथिली’ (Jai Mithila, Jai Maithali) का नारा उछाल चेहरा चमकाने वालों के पास भी नहीं. हालांकि, कुछ गैर राजनीतिक लोग और स्वयंसेवी संगठन इस अतिप्राचीन परंपरा (Prampra) की गरिमा, गौरव और ग्राह्यता फिर से कायम करने की सामूहिक व अलग-अलग भी, कोशिश कर रहे हैं.
बदलनी होगी सोच
उनका प्रयास सराहनीय है, पर घने अंधेरे में टिमटिमाते दीये की तरह है. इस कारण अभी इसका कोई खास असर नहीं दिख रहा है. समग्र रूप में यह तभी कामयाब होगा जब मैथिल (Maithil) समाज अपनी सोच बदले. पर, आधुनिकता (Modernity) में सराबोर समाज की सोच आसानी से बदल जायेगी, ऐसा नहीं दिखता. वैसे, समाज की सोच बदलने का अभियान (Campaign) चलाने वालों की खुद की सोच कितना परिष्कृत है यह भी एक बड़ा सवाल है. तब भी इस तरह का अभियान ठहरे हुए पानी में कंकड़ उछाल हलचल तो पैदा कर ही देता है.
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