विश्वविद्यालयी शिक्षा : ‘कुर्सीवाहक’ और ‘कार्यवाहक’ का खेल निराला!
विजयशंकर पांडेय
18 अप्रैल 2023
PATNA : निवर्तमान कुलाधिपति फागू चौहान (Fagu Chauhan) राज्यपाल पद से तबादले की अधिसूचना जारी होने के बाद राजभवन (Rajbhawan) से निकलते-निकलते ऐसा अनेक निर्णय कर गये जिससे इस पद की गरिमा पर आंच आ गयी. वैसे तो कुलाधिपति के निर्णयों पर अंगुली नहीं उठायी जा सकती, आलोचना नहीं की जा सकती. तब भी यह कहने में हिचक नहीं कि वह ऐसा नहीं करते, तो नैतिकता की सीमा शायद नहीं टूटती. उन निर्णयों की बाबत वर्तमान कुलाधिपति राजेन्द्र विश्वनाथ अर्लेकर (Rajendra Vishwanath Arlekar) द्वारा उठाये गये कदम से इस धारणा को मजबूती मिली कि निवर्तमान के निर्णय नैतिकता की दृष्टि से सही नहीं थे. वैसे, स्पष्ट शब्दों में उन्होंने कहा भी है कि जरूरत के मुताबिक पूर्व के कुछ निर्णयों की समीक्षा की जायेगी.
सवाल उठ गये
12 फरवरी 2023 को फागू चौहान का तबादला हो गया. हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के राज्यपाल राजेन्द्र विश्वनाथ अर्लेकर को बिहार (Bihar) का नया राज्यपाल (Governor) बनाया गया.17 फरवरी 2023 को उन्होंने पदभार ग्रहण कर लिया. बीच के पांच दिनों में फागू चौहान द्वारा किये गये कुछ निर्णयों से सिर्फ उच्च शिक्षा जगत ही नहीं, पढ़े-लिखे सामान्य लोग भी चकित रह गये. कई तरह के सवाल भी उठ गये. उस अवधि का सबसे बड़ा निर्णय पटना के प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान एएन कालेज (AN College) के बहुचर्चित प्रधानाचार्य प्रो. एस पी शाही (Prof. S. P. Shahi) को मगध विश्वविद्यालय (Magadh University) का कुलपति बनाया जाना रहा.
समय सही नहीं था
निवर्तमान कुलाधिपति की खास मंशा के कारण तकरीबन सवा साल से अतिरिक्त प्रभार वाले कुलपति को झेलने को अभिशप्त मगध विश्वविद्यालय को पूर्णकालिक (नियमित) कुलपति की सख्त जरूरत थी. जेल की सलाखों के पीछे अपने पाप गिन रहे प्रो. राजेन्द्र प्रसाद (Prof. Rajendra Prasad) इसी विश्वविद्यालय के कुलपति थे. निगरानी जांच के मामले में उनके ‘भूमिगत’ हो जाने के बाद से यह पद ‘प्रभार’ में चल रहा था. सवा साल की अवधि में थोड़े-थोड़े समय के लिए अतिरिक्त प्रभार वाले चार कुलपति आये और गये. प्रो. एस पी शाही (Prof. S. P. Shahi) हर दृष्टि से कुलपति पद के योग्य हैं, इसमें कोई संदेह नहीं. लेकिन, इस रूप में उनकी नियुक्ति (Appointment) का समय शायद सही नहीं था.
तब तूल नहीं पकड़ता
सिर्फ प्रो. एस पी शाही की कुलपति (Vice Chancellor) पद पर नियुक्ति का मामला रहता, तो शायद इतना तूल नहीं पकड़ता. फागू चौहान ने उस दौरान दो अलग-अलग तारीखों में कई विश्वविद्यालयों में प्रतिकुलपति (Pro VC) और कुलसचिव (Registrar) भी बहाल कर दिये. मगध विश्वविद्यालय में प्रो. ब्रजराज कुमार सिन्हा प्रतिकुलपति बनाये गये. यह पद भी सवा साल से प्रभार में चल रहा था. कुलसचिव का पद भी. राजभवन छोड़ने से पहले फागू चौहान ने 13 एवं 15 फरवरी को अलग-अलग मगध विश्वविद्यालय, बोधगया में डा. वेदप्रकाश चतुर्वेदी, कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा में डा. कृष्ण कन्हैया, वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा में डा. संजय कुमार, मुंगेर विश्वविद्यालय, मुंगेर में डा. सी के मिश्रा, पटना विश्वविद्यालय, पटना में प्रो. रवीन्द्रनाथ ओझा, पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय, पटना में प्रो. अभयानंद सुमन तथा मौलाना मजहरुल हक अरबी एवं फारसी विश्वविद्यालय, पटना में कर्नल कामेश कुमार को कुलसचिव के रूप में पदस्थापित कर दिया.
सुकून मिला शिक्षा जगत को
इन ‘असामयिक’ नियुक्तियों पर आवाज उठी. नये कुलाधिपति राजेन्द्र विश्वनाथ अर्लेकर का ध्यान इस ओर गया. कुलाधिपति पद से तबादले की अधिसूचना के बाद की इन नियुक्तियों को उन्होंने नैतिक दृष्टि से उचित नहीं माना. राज्यपाल सचिवालय ने 11 मार्च 2023 को अधिसूचना जारी कर एक झटके में ऐसे तमाम कुलसचिवों के सभी तरह के कार्यों एवं कर्त्तव्य निर्वहन पर अगले आदेश तक के लिए रोक लगा दी. तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर (Bhagalpur) के वित्त पदाधिकारी कौलेश्वर प्रसाद साह (Kauleshwar Prasad Sah) और वित्त परामर्शी (अतिरिक्त प्रभार) कैलाश राम (Kailash Ram) के कार्यों एवं कर्त्तव्य निर्वहन पर भी. अधोगति को प्राप्त बिहार की विश्वविद्यालयी शिक्षा को इससे सुकून मिला, बदलाव की उम्मीद जगी.
‘पदमुक्ति’ क्यों नहीं?
अब बात कुलसचिवों की. वर्तमान कुलाधिपति ने फागू चौहान द्वारा अंतिम बेला में नियुक्त कुलसचिवों को पद पर रखते हुए बेकाबिल बना दिया. विश्वविद्यालयों में कुलपतियों के ‘पसंदीदा’ कुलसचिव की व्यवस्था करा इन सबको ‘कुर्सीवाहक’ बना दिया. इस रूप में कि पद पर बनाये रख उनके हाथ बांध दिये. इधर, 12 अप्रैल 2023 को जारी राज्यपाल सचिवालय की एक अधिसूचना में कार्यवाहक (प्रभारी) कुलसचिवों को वित्तीय अधिकार भी दे दिये गये. यह सब तो ठीक है, पर, यहां बड़ा सवाल यह है कि जब कुलसचिवों की बहाली ‘संदिग्ध’ है, तो उन्हें ‘पदमुक्त’ क्यों नहीं कर दिया जा रहा है. मामले को लटकाये रख अतीत के अनुभवों पर आधारित तरह-तरह की बातें क्यों फैलने-फैलाने दी जा रही है?
‘अभयदान’ क्यों?
विश्लेषकों को कुलाधिपति के निर्णयों में पारदर्शिता का अभाव भी झलकने लगा है. मसलन भ्रष्टाचार (Corruption) के गंभीर आरोपों में घिरे डा. रवि प्रकाश बबलू (डा. आर पी बबलू) को जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा (Jaiprakash University, Chhapra) के कुलसचिव पद से हटा दिया गया. संबद्ध अधिसूचना में डा. आर पी बबलू पर निर्णय प्रशासनिक एवं शैक्षणिक हित में करने की बात कही गयी. उनके इस निर्णय पर शायद ही किसी को आपत्ति होगी. बल्कि, लोग इसे ‘शुद्धिकरण’ की शुरुआत मानेंगे. पर, उच्च शिक्षा जगत अचंभित इस बात को लेकर है कि करीब-करीब भ्रष्टाचार के ऐसे ही आरोपों में लिपटे ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा (Lalit Narayan Mithila University, Darbhanga) के कुलसचिव डा. मुश्ताक अहमद (Dr. Mushtaq Ahmed) को ‘अभयदान’ क्यों मिल गया?
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