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जी कृष्णैया प्रकरण : भुटकुन शुक्ला ने झोंक दी बेजान शरीर पर…!

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तापमान लाइव ब्यूरो
28 अप्रैल, 2023
PATNA : दलित (Dalit) समाज के जिलाधिकारी जी कृष्णैया (G Krishnaiah) की हत्या और उस मामले में लालू प्रसाद (Lalu Prasad) के घोर पिछड़ावाद के खिलाफ मोर्चा खोल रखे सवर्ण नेताओं की गिरफ्तारी से राजनीति खलबला उठी थी. उसी खलबलाहट के बीच गिरफ्तारी के महज 17 दिनों बाद ही 23 दिसम्बर 1994 को आनंद मोहन (Anand Mohan) को छोड़ सबको पटना उच्च न्यायालय (Patna High Court) से जमानत मिल गयी. आनंद मोहन को जमानत क्यों नहीं मिली, इस पर गंभीर सवाल उठे. षड्यंत्र के संदेह की बुनियाद वहीं पड़ गयी. लालू प्रसाद मुख्यमंत्री  (Chief Minister) थे. राज्य सरकार इस जमानत के खिलाफ उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) गयी. उच्चतम न्यायालय ने पटना उच्च न्यायालय के निर्णय को बरकरार रखा. जेल में बंद जमानत से वंचित आनंद मोहन के संदर्भ में उसकी टिपण्णी हुई कि अगर इस आदेश के अगले छह माह के अंदर मामले की सुनवाई पूरी नहीं होती है तो निचली अदालत उन्हें जमानत दे सकती है. हुआ वैसा ही. छह माह के अंदर सुनवाई पूरी नहीं हुई. आनंद मोहन निचली अदालत से मिली जमानत पर जेल से बाहर आ गये. वैसे, जेल में रहते ही वह 1996 में शिवहर (Sheohar)  से सांसद निर्वाचित हो चुके थे.

भुटकुन शुक्ला भी मारा गया
जी कृष्णैया मामले में निचली अदालत का फैसला हत्या के तकरीबन 13 साल बाद 03 अक्तूबर 2007 को आया. आनंद मोहन, अखलाक अहमद एवं प्रो. अरुण कुमार सिंह को फांसी तथा लवली आनंद, विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला, डा. हरेन्द्र कुमार एवं शशिशेखर ठाकुर को आजीवन

टी उमा देवी एवं मुन्ना शुक्ला.

कारावास की सजा मिली. सभी जेल में डाल दिये गये. छोटन शुक्ला का भाई अवधेश शुक्ला उर्फ भुटकुन शुक्ला (Bhutkun Shukla)भी आरोपित था. जिलाधिकारी को गोली उसी ने मारी थी. बेजान शरीर पर गोलियां झोंक दी थी. 1997 में भुटकुन शुक्ला की हत्या हो गयी. जिस कुख्यात दीपक सिंह (Deepak Singh) को अंगरक्षक बना रखा था उसी ने उसी के घर में उसी के ए के 47 राइफल से उसका सीना छेद दिया. चर्चा हुई थी कि बृजबिहारी प्रसाद से ‘सौदा’ कर उसने ऐसा किया. छोटन शुक्ला चार भाई थे. वह और उनसे छोटे अवधेश शुक्ला उर्फ भुटकुन शुक्ला खूनी वर्चस्व की जंग में खेत रहे.

काबिज हो गये मुन्ना शुक्ला
अपराध सत्ता की बदौलत छोटन शुक्ला (Chhotan Shukla) ने सियासत में जो पैठ बनायी थी, उससे उनकी विधवा किरण शुक्ला (Kiran Shukla) को बेदखल कर तीसरे भाई विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला (Munna Shukla) उस पर काबिज हो गये. किरण शुक्ला के हितों का


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थोड़ा बहुत ख्याल आनंद मोहन ने ही रखा. छोटन शुक्ला की हत्या के बाद केसरिया से उन्हें बिपीपा का उम्मीदवार बना दिया. लेकिन, पति की हत्या से उत्पन्न सहानुभूति भी उन्हें जीत नहीं दिला पायी. 26 हजार 799 मतों में अटक गयीं. बाद में किरण शुक्ला घर-परिवार में सिमट गयीं. विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला को दो और उनकी पत्नी अन्नु शुक्ला (Annu Shkula) को एक बार लालगंज से विधायक बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. पर, 2015 में जो पांव उखड़ गया वह फिर से जम नहीं पा रहा है. छोटन शुक्ला के सबसे छोटे भाई हैं मारू मर्दन शुक्ला उर्फ ललन शुक्ला (Marumardan Shukla urf Lalan Shukla). वह मुजफ्फरपुर नगर निगम के उपमहापौर रहे हैं. आगे कौन सा मुकाम पाते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा.

उम्र कैद के रूप में मिली राहत
जिलाधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के मामले में निचली अदालत के फैसले के खिलाफ तमाम आरोपितों ने पटना उच्च न्यायालय में अपील दायर की. उच्च न्यायालय ने एक-एक कर लवली आनंद, डा. हरेन्द्र कुमार तथा शशिशेखर ठाकुर को जमानत दे दी . प्रो. अरुण कुमार सिंह और अखलाक अहमद की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया. आनंद मोहन की सजा-ए-मौत पर कोई विचार नहीं हुआ. कुछ समय बाद 10 दिसम्बर 2008 को पटना उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश शिवकीर्ति सिंह तथा महफूज आलम की खंडपीठ ने आनंद मोहन को छोड़ शेष सभी को दोषमुक्त कर दिया. प्रो. अरुण कुमार सिंह और अखलाक अहमद को भी. आनंद मोहन को राहत इतनी भर मिली कि निचली अदालत द्वारा उन्हें दी गयी फांसी की सजा को सश्रम आजीवन कारावास में बदल दिया गया. निचली अदालत से लेकर पटना उच्च न्यायालय तक का फैसला नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की सरकार के कार्यकाल में आया. उस नीतीश कुमार की सरकार में जिन्होंने उनकी (आनंद मोहन) आंखों में ‘न्याय’ की आस बसा रखी थी.

तीसरी कड़ी : 
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