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जी कृष्णैया प्रकरण: असली गुनहगार तो कोई और था!

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तापमान लाइव ब्यूरो
27 अप्रैल, 2023
PATNA : राष्ट्रव्यापी विरोध के बीच आजीवन कारावास की सजा पाये आनंद मोहन (Anand Mohan) की जेल (Jail) से रिहाई के गर्म मुद्दे में जिलाधिकारी जी कृष्णैया (G Krishnaiah) की चर्चा खुद-ब-खुद हो रही है. यह स्वाभाविक भी है. इसलिए कि जी कृष्णैया की हत्या के मामले में ही आनंद मोहन जेल की काल कोठरी में उम्र कैद के रूप में तकरीबन 16 साल बीता ‘सुशासन’ की ‘सदाशयता’ से खुली हवा में आये हैं. परिजनों- समर्थकों व प्रशंसकों का खुश होना लाजिमी है. वैसे, उनकी रिहाई के ‘राजशाही तरीके ’ पर एक तबके को एतराज है, जो सरकार, कानून और अदालत से संबंध रखता है. गुरुवार 27 अप्रैल 2023 की अहले सुबह वह ‘आजाद’ हो गये. आखिर, आनंद मोहन जी कृष्णैया की हत्या के मामले में ऐसे हालात में क्यों और कैसे पहुंचे या पहुंचा दिये गये , उसका किस्तवार तथ्यात्मक विश्लेषण यहां प्रस्तुत है. पहली कड़ी में पढ़िये..

जन आक्रोश का खूनी विस्फोट
मामलेे की सुनवाई से लेकर फैसला सुनाने तक, अदालत का भी मानना रहा कि गोपालगंज के जिलाधिकारी जी कृष्णैया बेवजह जन आक्रोश के खूनी विस्फोट का शिकार हो गये. तात्कालिक तौर पर यह विस्फोट बिहार पीपुल्स पार्टी (बिपीपा) के बाहुबली नेता कौशलेन्द्र शुक्ला उर्फ छोटन शुक्ला की

जी कृष्णैया की विधवा टी उमा देवी.

हत्या के प्रतिशोध में हुआ था. बाहुबली छवि के छोटन शुक्ला (Chhotan Shukla ) वैशाली (Vaishali) के थे. पर, अपनी तमाम तरह की वैध-अवैध गतिविधियों का मुख्य केन्द्र उन्होंने मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur) को बना रखा था. 1990 में वह अपने गृह विधानसभा क्षेत्र लालगंज (Lalganj) से चुनाव लड़े थे, जीत नहीं पाये थे. 24 हजार 180 मतों के साथ तीसरे स्थान पर अटक गये थे. अपने इलाके में पांव नहीं जमते देख उन्होंने पूर्वी चंपारण के केसरिया विधानसभा क्षेत्र को नयी राजनीतिक कर्मभूमि बना ली थी. वहां उनकी सक्रियता कथित रूप से उनके जानी दुश्मन दिवंगत पूर्व मंत्री बृजबिहारी प्रसाद (EX Minister  Brijbihari Prasad) को नहीं पच रही थी. बृजबिहारी प्रसाद पूर्वी चंपारण के ही रहने वाले थे . आदापुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ते थे. छोटन शुक्ला की केसरिया में ‘घुसपैठ’ को वह खुद के लिए बड़ी चुनौती मानने लगे थे. वैसे, उनमें खूनी प्रतिद्वंद्विता मुजफ्फरपुर के ‘आर्थिक-आपराधिक साम्राज्य’ पर आधिपत्य को लेकर थी.

एक-एक कर मारे गये सभी
इस साम्राज्य पर तब बहुचर्चित पूर्व मंत्री रघुनाथ पांडेय (Raghunath Pandey) की सरपरस्ती में छोटन शुक्ला काबिज हो रहे थे. 04 दिसम्बर 1994 को वह केसरिया से मुजफ्फरपुर लौट रहे थे. ब्रह्मपुरा में संजय सिनेमा हॉल के समीप गोलियों की बौछार कर उन्हें और उनके साथ एम्बेसडर कार में बैठे चार अन्य लोगों को मौत के मुंह में झोंक दिया गया. आरोप बृजबिहारी प्रसाद और उनके विश्वस्त बंदूकबाज ठेकेदार ओंकार सिंह पर लगा. बाद में पहले ओंकार सिंह और फिर बृजबिहारी प्रसाद भी घात-प्रतिघात और हत्या-प्रतिहत्या के खूनी सिलसिला का ग्रास बन गये. छह शागिर्दों के साथ ओंकार सिंह मुजफ्फरपुर के जीरो माइल पर मारे गये. बृजबिहारी प्रसाद की हत्या 13 जून 1998 को पटना के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान परिसर में हुई. इसी क्रम में बृजबिहारी प्रसाद से पहले छोटन शुक्ला का भाई अवधेश शुक्ला उर्फ भुटकुन शुक्ला भी मारा गया.

अनुमति ‘मौन शवयात्रा’ की थी
वह सामाजिक न्याय की राजनीति से समाज में उत्पन्न गलाकाट कटुता का चरम काल था. छोटन शुक्ला की हत्या में वैश्य बिरादरी के बृजबिहारी प्रसाद की संलिप्तता के संदेह से सवर्ण समाज के लोगों का खून उबल पड़ा. हत्या के दूसरे दिन यानी 05 दिसम्बर1994 को छोटन शुक्ला की शवयात्रा निकली. मुजफ्फरपुर के स्पीकर चौक नया टोला स्थित आवास से वैशाली जिले के खंजाहाचक (लालगंज) तक की तकरीबन 25 किलोमीटर लंबी


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शवयात्रा! खंजाहाचक छोटन शुक्ला का पैतृक गांव है. वहीं उनका अंतिम संस्कार हुआ. शवयात्रा का नेतृत्व पूर्व सांसद आनंद मोहन तथा अन्य कई सवर्ण नेता कर रहे थे. चर्चित आईएएस अधिकारी राजीव गौवा (Rajeev Gauba) तब मुजफ्फरपुर के जिलाधिकारी थे. उन्हें ‘मौन शवयात्रा’ की सूचना दी गयी थी. जिलाधिकारी की अनुमति से शवयात्रा की मौन शुरुआत हुई, पर मौन रह नहीं पायी, ‘राजनीतिक शवयात्रा’ में तब्दील हो गयी. उसमें शामिल छोटन शुक्ला के समर्थक उग्र हो गये.

ईंट-पत्थर से कूच दिया
भगवानपुर में ‘श्रद्धांजलि सभा’ के बाद ब्रह्मर्षि बहुल खबड़ा और रामदयालु होते हुए शवयात्रा लालगंज जाती. ‘श्रद्धांजलि सभा’ में उत्तेजक भाषण हुए. गोपालगंज (Gopalganj) के जिलाधिकारी जी. कृष्णैया उसी अति उत्तेजना की भेंट चढ़ गये. पटना में सरकारी बैठक से मुजफ्फरपुर के रास्ते वह ‘लालबत्ती’ वाले सरकारी वाहन से गोपालगंज लौट रहे थे. शवयात्रा में शामिल लोग ‘लाल बत्ती’ देख भड़क उठे. उत्तेजक भीड़ की हिंसक मंशा को भांप वाहन चालक दीपक कुमार ने जी कृष्णैया को गाड़ी से उतरने से रोका. जिलाधिकारी की एम्बेसडर कार को तेजी से पीछे की ओर ले जाने लगा. लेकिन अंगरक्षक की चिंता में उन्होंने गाड़ी रूकवा दी. फिर जो होना था सो हो गया. गौर कीजिये, मौत सामने नाच रही थी. खुद की चिंता न कर जी कृष्णैया अंगरक्षक की चिंता कर रहे थे. पुलिसकर्मियों के हस्तक्षेप और नेताओं की रोकथाम के बावजूद ईंट-पत्थर से कूच-पीटकर उन्हें मौत के मुंह में डाल दिया. सांसें फिर से न चल पड़े, दिवंगत छोटन शुक्ला के कुख्यात भाई अवधेश शुक्ला उर्फ भुटकुन शुक्ला (Bhutkun Shukla )ने जिलाधिकारी के मृत निर्दोष शरीर पर दनादन गोलियां भी दाग दी.

आरोप भड़काऊ भाषण के
मामले में तब के बिपीपा सुप्रीमो पूर्व सांसद आनंद मोहन, उनकी पूर्व सांसद पत्नी लवली आनंद (Lovely Anand), पूर्व विधायक प्रो. अरुण कुमार सिंह, पूर्व मंत्री अखलाक अहमद, डा. हरेन्द्र कुमार, दिवंगत छोटन शुक्ला के पूर्व विधायक भाई विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला और अवधेश शुक्ला उर्फ भुटकुन शुक्ला, शशिशेखर ठाकुर समेत 36 लोगों को नामजद किया गया. भुटकुन शुक्ला पर हत्या करने और आनंद मोहन समेत उक्त तमाम नेताओं पर ‘भड़काऊ भाषण’ के आरोप लगे. उसी शाम हाजीपुर में गिरफ्तारी भी हो गयी. प्रो. अरुण कुमार सिंह को छह अन्य के साथ मुजफ्फरपुर के चन्द्रहट्टी के समीप पकड़ा गया. डा. हरेन्द्र कुमार एवं दो अन्य की गिरफ्तारी एक दिन बाद 06 दिसम्बर 1994 को मुजफ्फरपुर में हुई. इस पूरे प्रकरण पर गौर किया जाये तो यह साफ झलकता है कि जिलाधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के असली गुनहगार वे लोग हैं, जिन्होंने छोटन शुक्ला की हत्या करायी थी. मतलब यह कि छोटन शुक्ला की हत्या नहीं होती तो, जी कृष्णैया की जान नहीं जाती.

दूसरी कड़ी :
जी कृष्णैया प्रकरण: भुटकुन शुक्ला ने झोंक दी बेजान शरीर पर…!

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