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जी कृष्णैया प्रकरण: राजनीतिक चरित्र देखिये, नीतीश कुमार का!

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तापमान लाइव ब्यूरो
29 अप्रैल, 2023
PATNA : अतीत पर नजर डालें, तो जी कृष्णैया हत्याकांड (G Krishnaiah Murder Case) में जब गिरफ्तारी हुई थी तब आरोपित नेताओं से मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur) के खुदीराम बोस आदर्श कारा में मिलने दिवंगत केन्द्रीय मंत्री जार्ज फर्नांडिस (George Fernandes)के साथ नीतीश कुमार(Nitish Kumar), पूर्व मुख्यमंत्री रामसुंदर दास(Ramsundar Das), पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्वर्गीय हरिकिशोर सिंह (Harikishor Singh) आदि गये थे. आनंद मोहन (Anand Mohan) उस वक्त इन्हीं नेताओं की राजनीति से जुड़े थे. सहानुभूति जताते हुए निर्दोष लोगों को फंसाने की बात कही थी. न्याय दिलाने का भरोसा दिलाया था. उसी नीतीश कुमार की सरकार ने 2009 में आनंद मोहन को छोड़ अन्य आरोपितों की दोषमुक्ति व रिहाई संबंधित पटना उच्च न्यायालय (Patna High Court) के फैसले को उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) में चुनौती दी. राज्य सरकार के तत्कालीन गृहसचिव अफजल अमानुल्लाह (Afzal Amanullah) की इस टिप्पणी के साथ कि जी कृष्णैया हत्याकांड के मामले को वह अंजाम तक पहुंचायेंगे.

साजिश मानते रहे परिजन
इसी तरह निचली अदालत से सजा मुकर्रर होने से पहले तत्कालीन विधि मंत्री पी के शाही ने 2006 में कहा था कि जिलाधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के मामले की स्पीडी ट्रायल (Speedy trial) करा आरोपितों को फांसी की सजा दिलायी जायेगी. जैसा उन्होंने कहा था, 2007 में निचली अदालत का

आनंद मोहन के परिजनों के साथ नीतीश कुमार.

फैसला करीब-करीब वैसा ही आया. उनका यह बयान विधि मंत्री के तौर पर जी कृष्णैया की विधवा टी उमा देवी एवं उनकी छोटी-छोटी दो पुत्रियों को न्याय दिलाने के संदर्भ में आया होगा. कानूनी प्रक्रिया के तहत वैसी सजा हो गयी. आनंद मोहन के परिजन उस बयान को षड्यंत्र से जोड़कर देखते रहे . फांसी की सजा मिलने के बाद आनंद मोहन की भी ऐसी ही कुछ प्रतिक्रिया आयी थी. कहा था कि नीतीश कुमार की सरकार की नाइंसाफी के खिलाफ उन्होंने आवाज उठायी थी. सरकार उसी का बदला ले रही है. वह साजिश का शिकार हुए हैं क्योंकि सरकार के विद्रोही रहे हैं. सरकार की तानाशाही के खिलाफ वह आवाज बुलंद करते रहेंगे. विश्लेषकों की समझ में आनंद मोहन की वही ‘प्रतिक्रिया’ उनकी जेल से रिहाई के मार्ग को अवरुद्ध किये हुए रहा.

ऐसी हुई टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट की
आरोपितों की दोषमुक्ति (आनंद मोहन को छोड़) पर नीतीश कुमार की सरकार द्वारा दायर अपील पर उच्चतम न्यायालय का फैसला 11 जुलाई 2012 को आया. न्यायाधीश एम के पटनायक तथा स्वतंत्र कुमार की खंडपीठ ने पटना उच्च न्यायालय के 10 दिसम्बर 2008 के फैसले को सही मानते हुए अभियुक्तों को दोषमुक्त करने संबंधी आदेश को बरकरार रखा. आजीवन कारावास की सजा पाये आनंद मोहन के संदर्भ में खंडपीठ की टिप्पणी हुई


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कि वह सश्रम आजीवन कारावास (Rigorous Life Imprisonment) के हकदार हैं. हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने जी कृष्णैया हत्याकांड को ‘रेयररेस्ट आफ दि रेयर’ (Rarest of the Rare ) नहीं माना. कुछ लोगों का कहना रहा कि भीड़ द्वारा की गयी हत्या के इस मामले में आनंद मोहन के पक्ष को अदालत में मजबूती से नहीं रखा गया. इसके लिए अन्य के अलावा आनंद मोहन को भी जिम्मेवार माना गया.

प्रदेश का पहला मामला
जानकारों के मुताबिक पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani) एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री जार्ज फर्नांडिस (George Fernandes) की पहल पर देश के प्रसिद्ध अधिवक्ता राम जेठमलानी (Ram Jethmalani)आनंद मोहन के मामले में बहस करने को राजी हो गये थे. बाद में आनंद मोहन के रवैये से क्षुब्ध होकर इससे अलग हो गये. उनके जुड़ाव से कानूनी लड़ाई में राहत मिल सकती थी. बिहार विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र नेता डाॉ हरेन्द्र कुमार के मुताबिक जी कृष्णैया हत्याकांड संभवतः प्रदेश का पहला मामला था जिसमें पुलिस ने टाईपराइटर से टाईप कर प्राथमिकी दर्ज की थी. जबकि सामान्य तौर पर हस्तलिखित प्राथमिकी ही दर्ज होती है. पुलिस की यह करतूत आरोपितों के प्रति लालू प्रसाद (Lalu Prasad) की सरकार की कुत्सित मंशा को दर्शाती है. डाॉ हरेन्द्र कुमार (Dr. Harendra Kumar) ने अदालत में सुनवाई के दौरान इस बिन्दु को उठाया भी था. पर, इस पर ध्यान नहीं दिया गया.

चौथी कड़ी :

जी कृष्णैया प्रकरण: आनंद मोहन के खिलाफ षड्यंत्र के पीछे लालू प्रसाद?

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