वास्तु शास्त्र: कैसी हो भूमि मकान के लिए
तापमान लाइव ब्यूरो
18 मई 2023
PATNA : खुद का मकान (House) बनानेे की योजना हो हो तो उसके लिए वास्तु शास्त्र (Vaastu Shaastra) के नियम क अनुरूप भूमि (Land) का चयन आवश्यक है. अनुकूल है या नहीं, इसकी जांच का अपना एक तरीका है. संबद्ध भूमि के मध्य में एक हाथ लंबा, एक हाथ चौड़ा व एक हाथ गहरा गड्ढा खोदें. खोदने के बाद निकली हुई सारी मिट्टी पुनः उसी गड्ढे में भर दें. यदि गड्ढा भरने में मिट्टी खप जाये तो वह उत्तम भूमि है. यदि मिट्टी गड्ढे के बराबर निकलती है तो वह मध्यम भूमि है और यदि गड्ढे से कम निकलती है तो वह अधम भूमि है. एक और तरीका है कि उपर्युक्त प्रकार से गड्ढा खोदकर उसमें पानी भर दें और उत्तर दिशा (North direction) की ओर सौ कदम चलें, फिर लौटकर देखें. यदि गड्ढे में पानी उतना ही रहे तो वह उत्तम भूमि है. यदि पानी कम (आधा) रहे तो वह मध्यम भूमि है और यदि बहुत कम रह जाये तो वह अधम भूमि है. अधम भूमि में निवास करने से स्वास्थ्य और सुख की हानि होती है.
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ऐसा भूखंड उपयुक्त नहीं
जिस भूमि में गड्ढा खोदने पर राख, कोयला, भस्म, हड्डी, भूसा आदि निकले, उस भूमि पर मकान बनाकर रहने से रोग होते हैं तथा आयु का ह्रास होता है. ऊसर, चूहों के बिल वाली, बांबी वाली, फटी हुई, ऊबड़-खाबड़, गड्ढों वाली और टीलों वाली भूमि का त्याग कर देना चाहिए. पूर्व, उत्तर और ईशान दिशा में नीची भूमि सब दृष्टियों से लाभप्रद होती है. आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम, वायव्य और मध्य में नीची भूमि रोगों को उत्पन्न करने वाली होती है. दक्षिण तथा आग्नेय के मध्य नीची और उत्तर एवं वायव्य के मध्य ऊंची भूमि का नाम ‘रोगकर वास्तु’ है, जो रोग उत्पन्न करती है. नींव खोदते समय यदि भूमि के भीतर से पत्थर या ईंट निकले तो आयु की वृद्धि होती है. यदि राख, कोयला, भूसी, हड्डी, कपास, लोहा आदि निकले तो रोग तथा दुःख की प्राप्ति होती है.
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