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नजर लागी …: शर्म उनको मगर नहीं आती!

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विष्णुकांत मिश्र
02 अगस्त 2023

Patna : ‘कितने चार्जशीट आये और गये, तेजस्वी पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. लेकिन, जब तू सत्ता से हटब ऽ तब तोहार का होई मोदी …!’ ‘नौकरी के बदले जमीन’ मामले में सीबीआई की दिल्ली की विशेष अदालत में अन्य कुछ के साथ उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव  (Tejashwi Prasad Yadav) के खिलाफ दाखिल अभियोग पत्र पर ऐसी टिप्पणी राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद (Lalu Prasad) की आयी थी. यह हर किसी को मालूम है कि ‘नौकरी के बदले जमीन’ के मामले में वह और उनकी पूर्व मुख्यमंत्री पत्नी राबड़ी देवी (Rabri Devi) भी अभियुक्त हैं. लालू प्रसाद की इस टिप्पणी का मतलब क्या है? यही न कि उन्हें इसकी कोई परवाह नहीं है. इस परिवार के साथ जो हो रहा है उससे ज्यादा और क्या होगा! हो रहा है तो हो. इसे उनकी अकड़ मानें या विवशता, इसको समझने के लिए थोड़ा अतीत में चलना होगा.

बात चारा घोटाले की
तकरीबन साढ़े सत्ताइस साल पहले जनवरी 1996 में राज्य की राजनीति की दिशा बदल देने वाले बहुचर्चित चारा घोटाले (Chara Ghotala) का आधिकारिक खुलासा हुआ था. तब के विपक्षी दल भाजपा (BJP) और समता पार्टी (वर्तमान में जदयू) के बड़े नेताओं की याचिका पर पटना उच्च न्यायालय (Patna High Court) ने उसी साल मार्च में इसकी जांच का जिम्मा केन्द्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को सौंप दिया था. जांच उच्च न्यायालय की निगरानी में हुई. थोड़ा विलंब हुआ, पर जांच पूरी हुई. परिणाम सामने है. अदालत के आदेश से आयकर विभाग (Income tax department) भी सक्रिय हुआ था. आय से अधिक संपत्ति के आरोपों की आंच तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आंगन तक पहुंच गयी थी. लेकिन, उन्हें झुलसा नहीं पायी.चारा घोटाले की सीबीआई जांच का नतीजा क्या हुआ, हर किसी को मालूम है.

त्राण पाना मुश्किल
चारा घोटाला से जुड़े चार मामलों में लालू प्रसाद को सजा मिल चुकी है. संभवतः एकाध और में मिलने वाली है. लंबे समय तक जेल में सजा काटने के बाद फिलहाल जमानत पर स्वास्थ्य सुधार रहे हैं. इस बीच वह और उनका परिवार चारा घोटाले के बाद की उनकी ‘करतूतों’ को लेकर सीबीआई, आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) के शिकंजे में इस कदर फंस गये हैं कि उससे त्राण पाना मुश्किल-सा प्रतीत होता है. इस परिवार के लिए चिंता की बड़ी बात यह है कि चारा घोटाले में लालू प्रसाद अकेले घिरे थे, वर्तमान में परिवार के ग्यारह सदस्यों में आठ कानून के चंगुल में हैं.

करीब-करीब तय है
लालू प्रसाद के साथ पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी तो हैं ही, उनकी पारिवारिक राजनीति के केन्द्र और राजद (RJD) के कर्णधार उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव की गर्दन भी पूरी तरह फंसी दिख रही है. ‘नौकरी के बदले जमीन’ मामले में अभियोग पत्र दाखिल होने के बाद आज न कल, जेल जाना करीब-करीब तय है. गिरफ्तारी की गहराती आशंकाओं के बीच लालू प्रसाद एवं तेजस्वी प्रसाद यादव के तल्ख बयान और नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की बार-बार बदल रही भंगिमा राज्य की राजनीति को सरगर्म कर रही है. वैसे, नीतीश कुमार हाव-भाव जो दिखायें, राजद के खूंटे से बंधी राजनीति ही अब वह कर पायेंगे.

प्रवर्तन निदेशालय का कार्यालय.

हरि अनंत हरि…
बात अब लालू प्रसाद की. सामाजिक न्याय की राजनीति के ‘गुदड़ी के लाल’ लालू प्रसाद की हथुआ महाराज सरीखी ‘हैसियत’ में आने के पीछे की कहानी ‘हरि अनंत हरि कथा अनंता’ की तरह है. भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी (Sushil Kumar Modi) ने ‘लालू लीला’ नाम की पुस्तिका के जरिये इसे सार्वजनिक कर रखा है. उसमें अनेक गंभीर आरोप हैं. वर्तमान में जिन दो मामलों में तेजस्वी प्रसाद यादव की गिरफ्तारी आशंकित है, ‘लालू लीला’ में उसकी भी चर्चा है. दिलचस्प बात यह कि 2008-09 में इन मामलों को जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह (Rajeev Ranjan Singh urf Lalan Singh), पूर्व अध्यक्ष शरद यादव (Sharad Yadav) आदि ने उठाया था, केन्द्र की सरकार को सबूत उपलब्ध कराये थे. तब जदयू (JDU) में जमे राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी (Shivanand Tiwari) की भी कुछ न कुछ भूमिका थी.

जाल तो जदयू ने ही फैलाया था
इन सबने राजद की सहभागिता वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की सरकार के प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह (Dr. Manmohan Singh) पर सीबीआई जांच के लिए दबाव बनाया था. सीबीआई जांच का निर्णय उसी शासनकाल में हुआ था. भ्रष्टाचार के इन मामलों को ललन सिंह तकरीबन पौने तीन साल पहले- 2020 के विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) तक उठाते-उछालते, लालू प्रसाद और तेजस्वी प्रसाद यादव को कोसते-धिक्कारते रहे. राजनीति की थोड़ी- बहुत भी समझ रखने वाले लोग हैरान हैं कि आज की तारीख में वही ललन सिंह कथित रूप से राजद नेता शिवानंद तिवारी की तरह नैतिकता को नाले में डाल लालू प्रसाद को ‘गरीबों का मसीहा’ मानने-बताने में तनिक भी हिचक नहीं रहे हैं. वैसे लोगों की समझ में निर्लज्जता की कोई सीमा नहीं छोड़ भ्रष्टाचार (Corruption) और भ्रष्टाचारियों का सबसे बड़ा पैरोकार बन गये हैं.


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आरोपों में है दम
ललन सिंह जिस ढंग से लालू परिवार की ‘बेगुनाही’ बांच रहे हैं, उससे यह भी खुद-ब-खुद प्रमाणित हो जा रहा है कि इस परिवार को बेवजह परेशानी में डालने के लिए उन्होंने आधारहीन तथ्यों का सहारा लिया था, गहरी साजिश रची थी. जनता को गुमराह किया था. हालांकि, अभी वह जो बक रहे हैं, हकीकत में वैसा है नहीं. लालू परिवार पर जो आरोप हैं, सच है या झूठ इसका निर्धारण अदालत करेगी, पर उन आरोपों में काफी दम हैं. ऐसे में ललन सिंह के इस अवांछित अपवित्र राजनीतिक आचरण से ‘किसी भी सूरत में भ्रष्टाचार से समझौता नहीं करने’ का नीतीश कुमार का ‘ढोंग’ बेनकाब हो रहा है. ‘जीरो टॉलरेंस (Zero Tolerance)’ का मजाक उड़ रहा है. विश्लेषकों की नजर में यह जदयू के बचे-खुचे जनाधार को तो समेट देगा ही, राजनीति के राष्ट्रीय फलक पर फैलने के ऊंचे ख्वाब को भी खंडित कर देगा.

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