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बात द्विज जी कीः सड़क पर बिखर गयीं थातियां!

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अश्विनी कुमार आलोक
12 अगस्त 2023

भागलपुर के साहित्यकारों और देश-राज्य के साहित्यकारों को यह उचित भी नहीं लगा कि पं. द्विज के नाम पर रामपुरडीह में किसी चौक-चौराहे का नामकरण हो या कि उस विद्यालय ही का नाम द्विज जी की स्मृति में रखा जाये, जहां उन्होंने आरंभिक शिक्षा प्राप्त की थी. मनमोहन चौधरी (Manmohan Choudhary) ने द्विज स्मृति समिति का गठन किया है. उनकी यह भी योजना है कि उनकी रचनाओं की ग्रंथावली प्रकाशित की जाये, एक पुस्तकालय भी उनके नाम पर स्थापित किया जाये. परंतु, यह इतना सरल नहीं. पं. जनार्दन प्रसाद झा ‘द्विज’ (Pt. Janardan Prasad Jha ‘Dvij’) की कुल आठ ही पुस्तकें छप पायी थीं. कितनी पुस्तकें उन्होंने लिखी थीं, कह नही सकते. क्योंकि उनके निधन के बाद उनकी पत्नी सरोजनी देवी की मानसिक स्थिति बिगड़ गयी थी, बाल-बच्चों ने पांडुलिपियों को सहेजना उपयुक्त नहीं समझा. फिर हुआ यह कि सरोजनी देवी ने पं. जनार्दन प्रसाद झा ‘द्विज’ की पांडुलिपियों को अनेक बार पूर्णिया की सड़क पर पैरों से उड़ाती हुई दिख जाती थीं.

कोई सचेत नहीं हुआ
पति की लिवावट के प्रति वितृष्णा के अनेक कारण हो सकते हैं, परन्तु किसी साहित्यकार के दैहिक पुत्र ही नहीं होते, मानस-पुत्र भी होते हैं. कोई सचेत हुआ होता, तो उस विलक्षण कवि की थातियां सहेजी जा सकती थी. जब मनमोहन चौधरी ने पं. जनार्दन प्रसाद झा ‘द्विज’ के साहित्य पर शोध करने की योजना बनायी, तो उन्हें उनकी रचनाओं को तलाशने में कठिन परिश्रम करना पड़ा. वह बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (Banaras Hindu University), बिहार राष्ट्रभाषा परिषद और पटना (Patna) में रह रहे द्विज जी के प्रशंसक आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव (Acharya Sriranjan Suridev) के पास आये-गये, परंतु कोई उल्लेखनीय सफलता नहीं मिली. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में द्विज जी और लक्ष्मीनारायण सुधांशु (Laxminarayan Sudhanshu) ने साथ-साथ विद्यार्जन किया था, साहित्य भी रचे थे. परंतु बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में द्विज जी से संबंधित कुछ शैक्षिक पत्र अवश्य मिले, कोई साहित्य न मिला. भागलपुर के केन्द्रीय पुस्तकालय में तीन-चार पुस्तकें मिलीं. पूर्णिया के कैलाशनाथ तिवारी के यहां कुछ साहित्य मिला.

हर जगह उपेक्षा
पं. जनार्दन प्रसाद झा ‘द्विज’ की उपेक्षा का एक ही दृश्य नहीं है. गांव-घर से लेकर जिला-जवार तक तो उनकी उपेक्षा होती ही रही, जिस पूर्णिया (Purnea) में उन्होंने जीवन गुजार दिया, वहां भी उनके नाम-स्मरण की कोई उल्लेखनीय व्यवस्था नहीं हो पायी. उन पर शोध-मूल्यांकन का भी कोई बड़ा काम नहीं हुआ. ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय (Lalit Narayan Mithila University), दरभंगा में सरला अग्रवाल ने डा. जितेन्द्र कुमार के निर्देशन में ‘पं. जनार्दन प्रसाद झा ‘द्विज’ व्यक्तित्व और कृतित्व’ नामक शोध प्रबंध प्रस्तुत कर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की थी. डा. वरुण कुमार तिवारी के संपादन में ‘विश्ववेदना के उद्गाता’ पुस्तक प्रकाशित हुई. अशोक कुमार आलोक ने अपने संपादन में प्रकाशित होने वाली साहित्य-पत्रिका ‘अर्थ संदेश’ का एक विशेषांक लक्ष्मीनारायण सुधांशु एवं जनार्दन प्रसाद झा ‘द्विज’ पर निकालने की योजना बनायी है.

नहीं पनप पायी रुचि
भागलपुर (Bhagalpur) के रामपुरडीह में जनार्दन प्रसाद झा ‘द्विज’ का जन्म हुआ, आरंभिक शिक्षा भी हुई, लेकिन उनके जीवन का बहुमूल्य समय बाहर-बाहर ही बीता. उनके पिता उचित लाल झा (Uchit Lal Jha) की तीन संतानें थीं – हिया लाल झा, जनार्दन प्रसाद झा ‘द्विज’ और शारदा प्रसाद झा. जनार्दन प्रसाद झा ‘द्विज’ की कुल दस संतानें हुईं. छह बेटे सुधाकर प्रसाद झा, विभाकर प्रसाद झा, दिवाकर प्रसाद झा, करुणाकर प्रसाद झा, सलिलाकर प्रसाद झा एवं सुषमाकर प्रसाद झा तथा चार बेटियां माधुरी राय, सजला झा, मृदुला झा और रंजना मिश्र. उनके सभी पुत्र छोटी-बड़ी नौकरियों में रहे, दो बेटे तो महाविद्यालय में प्राध्यापक थे. परंतु, किसी पुत्र में साहित्य की रुचि नहीं पनप पायी.

जयंती पर कार्यक्रम
पं. जनार्दन प्रसाद झा ‘द्विज’ की बड़ी पुत्री माधुरी राय की दो संतानों में बड़ी निरुपमा राय उसी पूर्णिया कालेज में संस्कृत की प्राध्यापक हैं, जिसमें जनार्दन प्रसाद झा ‘द्विज’ संस्थापक प्राचार्य थे. निरुपमा राय (Nirupam Rai) में नाना का साहित्सिक संस्कार आया. उन्होंने ‘विष्णुपुराण’ पर पीएचडी की उपाधि एवं ‘संस्कृत साहित्य (Sanskrit literature) में वैष्णव धर्म दर्शन का प्रभाव’ विषय पर डिलिट् की उपाधि प्राप्त की है. कथा, कविता और उपन्यास विद्या में उनकी आठ-दस किताबें हैं. निरुपमा राय जब से पूर्णिया कालेज में प्राध्यापक बनकर गयी हैं, तब से कालेज के प्राचार्य मोहम्मद कमाल के सहयोग से उनकी जयंती पर कार्यक्रम आयोजित कर रही हैं.


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यह भी नहीं हुआ
द्विज जी जिस प्रकोष्ठ में रहते थे, कालेज का वह प्रकोष्ठ उनका स्मरण रूप ले लेता और उसका जीर्णोद्धार हो जाता, यह भी नहीं हुआ. कालेज भले किसी साहित्यकार की स्मृति के रूप में द्विज जी की प्रतिमा अपने परिसर में न स्थापित करे, परंतु यह सर्वथा अन्याय जैसा है कि अपने संस्थापक प्राचार्य की एक प्रतिमा स्थापित करने की भी कूबत वह नहीं रखता. निरुपमा राय प्रतिवर्ष जनार्दन प्रसाद झा ‘द्विज’ के नाम पर एक-एक साहित्यकार को चादर और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित कर रही हैं.

बहुत चिंता है
वर्ष 2018 में द्विज स्मृति साहित्य सम्मान से सम्मानित और साहित्य- पत्रिका ‘संवदिया’ के संपादक मांगन मिश्र ‘मार्त्तण्ड’ को इस बात की बहुत चिंता है कि पं. जनार्दन प्रसाद झा ‘द्विज’ की प्रतिमा एवं साहित्यिक देन पर किसी राजनेता ने भी कृतज्ञता ज्ञापित करने की आवश्यकता नहीं समझी. उन्होंने बताया कि न सिर्फ अररिया (Araria), बल्कि पूर्णिया में भी फणीश्वर नाथ ‘रेणु’(Phanishwar Nath ‘Renu’) की स्मृति में अनेक स्मारक कार्यक्रम आयोजित होते हैं, लेकिन, जनार्दन प्रसाद झा ‘द्विज’ ने अपने स्वाभिमान को आदर्श मानते हुए चाटुकारिता से परहेज किया, प्रशंसा को अपना लक्ष्य नहीं मानकर अपनी प्रतिभा को साहित्य का मानवीय मूल्य बताया. जनार्दन प्रसाद झा ‘द्विज’ जैसे साहित्य का इस प्रकार विलोपित होना समाज का दुर्भाग्य जैसा है.

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