‘सृजन’ लूट-कथा : तो वह थे घोटाले के ‘गुरु घंटाल’!
‘सृजन’ महाघोटाला रूपी महापाप की सिरजनहार बहुत ही कम पढ़ी – लिखी अभावग्रस्त विधवा मनोरमा देवी थीं. मासूम चेहरा और शातिर दिमाग वाली मनोरमा देवी आखिर कौन थीं? यह जानने की जिज्ञासा हर किसी की होगी. यह भी कि कैसे इस महिला ने ‘सृजन’ की शुरुआत की? कैसे इस संस्था को बुलंदी दिलायी और फिर लूट-खसोट और अय्याशी की गिरफ्त में फंस यह कैसे अधोगति को प्राप्त हो गयी? इन तमाम सवालों का जवाब इस अंतर्कथा में है. संबद्ध आलेख की यह अंतिम कड़ी है:
शिवकुमार राय
17 अगस्त 2023
Bhagalpur : ऐसा माना जाता है कि मनोरमा देवी के अत्यंत करीबी सनदी लेखाकार प्रणव कुमार घोष (Pranab Kumar Ghosh) – सृजन (Srijan) के वित्तीय सलाहकार-घोटाले के ‘गुरु घंटाल’ थे. सरकारी खजाने में सेंध लगा उस धन को इस रूप में खपाने की तरकीब उन्हीं के शातिर दिमाग की उपज थी. पी के घोष के नाम से ज्यादा चर्चित प्रणव कुमार घोष भीखनपुर के इशाकचक में रहते हैं. उनका कपड़े का व्यवसाय है-बड़ा सा शो रूम भी है. विपिन शर्मा दिवंगत मनोरमा देवी (Manorama Devi) के मुंहबोला बेटा थे तो पी के घोष मुंहबोला भाई. सुनील कुमार के जीवित रहते पी के घोष कभी- कभार ही सृजन कार्यालय में आते थे. उनकी मौत के बाद प्रायः रोज आने लगे. सृजन की प्रबंधक सरिता झा (Sarita Jha) ने इस आशय की जानकारी एसआईटी (SIT) को दी थी. इस परिप्रेक्ष्य में संदेह स्वाभाविक है कि सुनील कुमार की हत्या के मामले में पुलिस का सृजन पर शक का आधार यही तो नहीं था? सृजन से गहरे रूप से जुड़े लोगों का कहना रहा कि मनोरमा देवी के बाद फर्जीवाड़े का सर्वाधिक लाभ विपिन शर्मा और पी के घोष ने उठाया.
अंग विहार कंस्ट्रक्शन कंपनी
पी के घोष (P K Ghosh) ने अंग विहार कंस्ट्रक्शन कंपनी बना रखी है. उसी के तहत सबौर और जीरो माइल के बीच रानी तालाब के समीप अंग विहार अपार्टमेंट (Ang Vihar Apartment) खड़ा कर रखा है. उसमें सृजन की रकम के निवेश की चर्चा हुई थी. उस अपार्टमेंट में सृजन से जुड़े दो महत्वपूर्ण व्यक्तियों-सतीश झा और सरिता झा को दो-दो और पी के घोष को पांच फ्लैट मिले. कुछ फ्लैट विपिन शर्मा को भी. अंग बिहार ने और कई अपार्टमेंट एवं व्यावसायिक प्रतिष्ठान खड़ा किये हैं. उस वक्त सरिता झा सबौर (Sabour) में मायके में रहती थीं. 1986 में मिथिलेश पाठक से उनकी शादी हुई थी. पति निठल्ला निकला. मजबूरन इन्हें सृजन का आसरा लेना पड़ा. जुड़ाव सिलाई- कढ़ाई के प्रशिक्षक के रूप में हुआ. बहुत जल्द प्रबंधक बना दी गयीं. कभी पैसे-पैसे को मुंहताज सरिता झा अथाह संपत्ति की स्वामिनी हो गयी हैं.
एन वी राजू भी महत्वपूर्ण पात्र
भागलपुर के कचहरी चौक पर स्थित इलेक्ट्रोनिक्स (Electronics) सामान की प्रमुख दुकान कलिंगा सेल्स के मालिक हैं एन वी राजू (N V Raju). सिंगर सिलाई मशीन के सेल्स रिप्रजेंटेटिव के रूप में वह इस शहर में रोटी के जुगाड़ में आये थे, देखते ही देखते करोड़ों में खेलने लग गये . आम धारणा है कि उनकी आर्थिक हैसियत में आयी इस पर्वतीय उछाल के मूल में सृजन ही था. आर्थिक हैसियत ऐसी कि उन्होंने नोट गिनने वाली मशीन लगा रखी थी. एन वी राजू जब सिंगर सिलाई मशीन बेचने भागलपुर आये थे तब के पी रमैया जिलाधिकारी (District Magistrate) थे. एन वी राजू की उनसे निकटता कायम हुई और उन्होंने उन्हें सृजन की संचालिका मनोरमा देवी के करीब पहुंचा दिया. मनोरमा देवी जिलाधिकारी के पी रमैया (K P Ramaiah) से ‘उपकृत’ थी हीं, उनकी संस्था को सिलाई मशीन की जरूरत भी थी, उन्होंने एन वी राजू को अवसर उपलब्ध करा दिया. उसी अवसर का मीठा फल कलिंगा सेल्स है.
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बड़ा व्यवसायी बना दिया
मनोरमा देवी ने एन वी राजू से छह हजार से अधिक सिंगर सिलाई मशीन (Singer Sewing Machine) तो खरीदी हीं, उन्हें काफी ऋण देकर शहर का बड़ा व्यवसायी भी बना दिया. एन वी राजू की अथाह संपत्ति का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि कचहरी चौक स्थित जिस इमारत में कलिंगा सेल्स है उसके तीन फ्लोर में तीन गोदाम थे. चार फ्लैट भी-दो एन वी राजू और दो उनकी पत्नी रुचि सेनापति के नाम. एन वी राजू ने सृजन से धन लेकर भुवनेश्वर (Bhubaneswar) के समीप सोलर प्लांट भी लगा रखा है, ऐसा सूत्रों का कहना है. सृजन के कतिपय कर्णधारों ने जीएमटी मॉल में भी निवेश कर रखा है. इस मॉल में विपिन शर्मा की सात दुकानें हैं, ऐसा कहा जाता है. घोटाले में संलिप्त करीब-करीब सभी आरोपितों ने अपने या फिर अपने रिश्तेदारों के नाम दुकान बुक कराये थे.
नौकरी गयी जयश्री ठाकुर की
एक बड़ा-सा मॉल शिवशंकर सहाय पथ में बना. लोग कहते हैं कि इस मॉल से शहर के एक चर्चित सामाजिक कार्यकर्त्ता व तथाकथित शिक्षाविद का जुड़ाव है. सच या झूठ, सृजन के धन के निवेश की बातें भी फिजां में घुली थीं. सृजन के जरिये सरकारी धन के फर्जीवाड़े के एक मुख्य पात्र भागलपुर के पूर्व जिला सहकारिता पदाधिकारी पंकज कुमार झा (Pankaj Kumar Jha) भी थे. लोग बताते हैं कि वह मनोरमा देवी के उतने ही करीबी थे जितनी भागलपुर की तत्कालीन भूमि सुधार उपसमाहर्त्ता जयश्री ठाकुर (Jaishree Thakur) थीं. बताया जाता है कि ये दोनों भी उन्हें फर्जीवाड़े का गुर सिखाया करते थे. आय से अधिक संपत्ति मामले में जयश्री ठाकुर निगरानी विभाग (Vigilance Department) की चपेट में आ नौकरी गंवा चुकी हैं.
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