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पूछता है महकमा…कौन सी काबिलियत थी पूर्व पुलिस महानिदेशक में?

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संजय वर्मा
17 अगस्त 2023

Patna : यह स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा है कि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की दिलचस्पी अब ‘कानून का राज’ में नहीं रह गयी है. इसकी वानगी देखिये.पता नहीं, उन्हें कौन-सा विशिष्ट गुण दिखा कि गुप्तेश्वर पांडेय (Gupteshwar Pandey) की स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद कई वरीयतम आईपीएस (IPS) अधिकारियों पर ‘हुकुम चलाने’ का अधिकार संजीव कुमार सिंघल (S K Singhal) को दे दिया. पहले कार्यवाहक और फिर नियमित पुलिस महानिदेशक के रूप में. हालांकि, स्थिति आपातकालीन थी. तब भी इसे सर्वोच्च अदालत (Supreme Court) के आदेश-निर्देश की अवहेलना ही माना गया. सर्वोच्च अदालत में अवमानना याचिका (Contempt Petition) भी दायर हुई. यहां गौर करने वाली बात है कि सर्वोच्च अदालत ने राज्यों में पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति के संदर्भ में 03 जुलाई 2018 को एक महत्वपूर्ण आदेश पारित किया था.

सेवा विस्तार भी दे दिया
उस आदेश में साफ कहा गया है कि राज्य सरकार किसी भी स्थिति में कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक (Director General of Police) की नियुक्ति नहीं करेगी. एस के सिंघल के मामले में इस आदेश का अनुपालन नहीं हुआ. 22 सितम्बर 2020 को कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक बने एस के सिंघल को तीन माह बाद 20 दिसम्बर 2020 को आठ माह की ही सेवा शेष रहने के बावजूद पूर्णकालिक पुलिस महानिदेशक बना दिया गया. उनकी सेवानिवृत्ति 31 अगस्त 2021 को होती. कार्यकाल दो साल का करने के लिए 19 दिसम्बर 2022 तक का सेवा विस्तार दे दिया गया. सर्वोच्च अदालत का नियमन है कि पुलिस महानिदेशक का पद वैसे ही अधिकारी को मिलेगा जिसकी सेवा अवधि कम से कम दो साल या उससे अधिक बची हो. मतलब यह कि पुलिस महानिदेशक का कार्यकाल कम से कम दो साल का अवश्य हो.

होने लगा वैसा ही कुछ
पुलिस महानिदेशक के चयन में पहले राज्य सरकार (State Government) की मर्जी चलती थी. वरीयता का कोई विशेष महत्व नहीं रहता था. पद के लायक योग्यता एवं दक्षता-क्षमता की बजाय सत्ताशीर्ष की ‘कृपा’ ही पात्रता होती थी. चयन की यह शैली नीतीश कुमार के शासन के शुरुआती कुछ वर्षों तक नहीं दिखी. बाद के दिनों में कुछ-कुछ वैसा होने लगा. 2005 से पहलेे कांग्रेस (Congress) और फिर लालू-राबड़ी (Lalu-Rabri) शासनकाल में प्रायः ऐसा ही होता था. सर्वोच्च अदालत ने राज्य सरकारों की मर्जी की सीमा निर्धारित कर दी है. 03 जुलाई 2018 के उसके आदेश में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि राज्य सरकार पदस्थापित पुलिस महानिदेशक के कार्यकाल पूरा होने के तीन माह पूर्व वरीय पुलिस अधिकारियों की सूची संघ लोकसेवा आयोग (UPSC) को भेजेगी. संघ लोकसेवा आयोग तीन अधिकारियों का पैनल बनायेगा. राज्य सरकार उसी में से किसी एक का चयन करेगी.


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रास नहीं आया
सर्वोच्च अदालत का यह आदेश बिहार (Bihar) समेत कई राज्य सरकारों को रास नहीं आया. इसमें संशोधन के लिए बिहार और पंजाब (Punjab) की सरकारों ने सर्वोच्च अदालत में याचिका दायर की. तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई (Ranjan Gogoi) और न्यायाधीश एस के कौल (S K Kaul) की खंडपीठ ने उस याचिका को खारिज कर दिया. यानी पुलिस महानिदेशक की पदस्थापना के संदर्भ में सर्वोच्च अदालत का नियमन यथावत रहा. इसके बाद भी कई राज्य सरकारें संबद्ध आदेश की मनमाफिक व्याख्या कर उसके अनुपालन में अगर-मगर कर रही हैं, मर्जी चला रही हैं. उनमें बिहार की नीतीश कुमार की सरकार भी शामिल है. एस के सिंघल के मामले में वैसा ही कुछ होने की बात कही गयी.

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