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सिमरिया धाम : इस संत ने दिलायी नयी आध्यात्मिक पहचान

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राजकिशोर सिंह
23 अगस्त 2023

Begusarai : मिथिला, मगध और अंग क्षेत्र का मिलन स्थल है सिमरिया धाम (Simariya Dham). समुद्र मंथन के बाद यहां शाल्मली वन में अमृत वितरण से सामृता और मिथिलांचल की दक्षिणी सीमा की आदि होने के कारण यह सिमरिया कहलाता है. शास्त्र में वर्णित है कि अमृत वितरण के वक्त शाल्मली वन में देवता और दानव दोनों मौजूद थे. मोहिनी रूप में भगवान विष्णु (Lord Vishnu) ने अमृत वितरण किया था. अमृतपान के लिए देवता का रूप धारण कर कपटी राहु भगवान सूर्य और चन्द्रमा के बीच बैठा था. सूर्य और चन्द्रमा ने उसकी इस धूर्तता को सार्वजनिक कर दिया. इससे गुस्साये राहु ने दोनों को ग्रसने के लिए हाथ बढ़ाया. पुराण में उसे ही ग्रहण योग कहा जाता है.

सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण
विज्ञान कहता है कि चन्द्रमा और पृथ्वी सूर्य से प्रकाशित हैं. सूर्य (Sun) की परिक्रमा पृथ्वी करती है और पृथ्वी (Earth) की परिक्रमा चन्द्रमा. पृथ्वी जब सूर्य और चन्द्रमा के मध्य आ जाती है तो चन्द्रमा (Moon) का जो भाग प्रकाशित नहीं होता है वह चन्द्रग्रहण (Lunar Eclipse) में आता है. इसी से आंशिक या पूर्ण चन्द्रग्रहण वेदाङ्ग ज्योतिष के आधार पर निर्धारित होता है. सूर्य व पृथ्वी के मध्य चन्द्रमा के आ जाने से सूर्यग्रहण (Solar Eclipse) होता है. वह भी अध्यात्म विज्ञान वेदाङ्ग ज्योतिष के आधार पर तय होता है. इसी तरह जब तुला राशि पर सूर्य, चन्द्र और वृहस्पति का योग होता है तब कुंभ योग बनता है.यहां जानने लायक बात यह भी है कि प्रयाग में गंगा और जमुना, गंगासागर में गंगा और समुद्र तथा आदि कुंभ स्थली सिमरिया में गंगा और गंगा (Ganga) का संगम होता है.

उनमें सिमरिया भी था
सनातन शास्त्र (Sanatan Shastra) के मुताबिक उत्तरायणी गंगा देव और पितर दोनों कार्य के लिए अतिश्रेष्ठ मानी जाती हैं. पश्चिम वाहिनी गंगा मात्र पितर कार्य के लिए ही हैं. प्रयाग में पश्चिम वाहिनी गंगा हैं. हरिद्वार, काशी, सिमरिया, सुल्तानगंज और गंगासागर में उत्तरवाहिनी हैं. किसी श्राप के कारण काशी का जल काशी से बाहर नहीं जाता. और जगहों का जल उठता है और देव एवं पितर दोनों कार्यों में प्रयुक्त होता है. वेदाङ्ग ज्योतिष के आधार पर भारत में 12 जगहों पर कुंभ योग बनता है, जो उसी स्थान पर प्रत्येक 12 वर्षों पर आता है. लेकिन, कुंभ व अर्द्धकुंभ के आयोजन की परंपरा चार जगहों पर ही थी. प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में.जिन आठ जगहों पर यह नहीं लग रहा था उनमें एक सिमरिया भी था.

चौंसठ योगिनी मंदिर में अनुष्ठान.

कल्पवास की परंपरा
सुशासन में यह योग जग जाता है और कुशासन में लुप्त हो जाता है. इन 12 जगहों में न्याय के प्रतीक तुला राशि पर जब सूर्य, चन्द्र और वृहस्पति का योग बनता है तो उसे तुलार्क कुंभ योग कहा जाता है. यह वैदिक काल से चला आ रहा है. ऐसा कहा जाता है कि मिथिला में विदेह कुल के अवसान के बाद कायम हुए कुशासन के कारण कुंभ (Kumbh) योग लुप्त हो गया. किसी तरह कल्पवास की परंपरा जीवित रही. बताते हैं कि यह परंपरा राजा जनक (Raja Janak) के समय से चली आ रही है. सैकड़ों वर्षों बाद सुशासन कायम हुआ तब सिमरिया में 2011 में अर्द्धकुंभ एवं 2017 में महाकुंभ लगा. शुभारंभ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने किया और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) का शुभकामना संदेश मिला.

सौभाग्य मानते हैं
महत्वपूर्ण बात यह भी कि मिथिला (Mithila) के लोग सिमरिया धाम के पवित्र गंगा तट पर अंतिम संस्कार को सौभाग्य मानते हैं. परिस्थितिवश वहां अंतिम संस्कार (Funeral) संभव नहीं हो पाता है, तो गंगा में अस्थि विसर्जन कर भी धन्य हो जाते हैं. मिथिला ही नहीं, मगध (Magadh), अंग  (Ang) क्षेत्र और नेपाल (Nepal) तक के लाग अस्थि विसर्जन के लिए सिमरिया आते हैं. बहुत सारे लोग श्राद्ध आदि कर्म भी वहां करते हैं. बड़े पैमाने पर मुंडन संस्कार एवं अन्य अनुष्ठान भी होते हैं. विभिन्न धार्मिक अवसरों पर असंख्य लोग गंगा स्नान के लिए पहुंचते हैं.


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साक्षात दर्शन
सिमरिया धाम को आदि कुंभ स्थली के रूप में पुनर्जागृत करने वाले 70 वर्षीय संत परमहंस स्वामी चिदात्मन जी महाराज (Saint Paramahansa Swami Chidatman Ji Maharaj) ने वहां अपना आश्रम बना रखा है – सर्वमंगला सिद्धाश्रम. वह बेगूसराय जिले के रूद्रपुर गांव के रहने वाले हैं. आध्यात्मिक ज्ञान से परिपूर्ण परिवार में जन्म के सातवें वर्ष में ही उन्हें शाश्वत ज्ञान की अनुभूति हो गयी और वैराग्य की राह बढ़ गये.17 वर्षों तक उन्होंने परिव्राजक रूप में देश भ्रमण किया. इसी क्रम में 1976 में सिमरिया के गंगा घाट पर आदि शक्ति मां जगदम्बा (Maa Jagdamba) का साक्षात दर्शन हुआ. ऐसा कहा जाता है कि मां जगदम्बा की आज्ञा से सिमरिया के महाश्मशान को उन्होंने अपनी तप स्थली बना लिया और वहीं से वेद, योग एवं भक्ति के प्रकाश को देश के कोने-कोने में फैलाया.

चौंसठ योगिनी मंदिर
जगत के कल्याण के लिए 1967 में ‘अखंड दुर्गा अम्बा महायज्ञ’ का संकल्प लिया. अभी तक उसकी 70 करोड़ आहूतियां हो चुकी हैं. यह ‘अनंत श्री कोटि हवनात्मक अम्बा महायज्ञ’ के रूप में सर्वमंगला सिद्धाश्रम में चल रहा है.सर्वमंगला सिद्धाश्रम मां काली (Maa Kali) धाम में चौंसठ योगिनी मंदिर है, जो बेगूसराय के तत्कालीन जिलाधिकारी मिथिला निवासी तेज नारायण लाल दास के सौजन्य से निर्मित हुआ. चौंसठ योगिनी के साथ रक्तकाली एवं महायंत्र की स्थापना हुई. मां रक्तकाली (Maa Raktkali) की प्रतिमा बेगूसराय नगर निगम के पूर्व महापौर उपेन्द्र प्रसाद सिंह ने उपलब्ध कराया था.

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