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दो आदमी के फेर में फंस गये हैं नीतीश कुमार !

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विशेष प्रतिनिधि
29 अगस्त 2023

Patna : नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के फिर से पलटी मारने की चर्चा पर फिलहाल विराम लगा हुआ है. पर, पलटी मारने की संभावना पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है. इंतजार मुम्बई (Mumbai) में 31 अगस्त और 01 सितम्बर 2023 को होने वाली विपक्षी दलों की दो दिवसीय बैठक के फलाफल का‌ है. नीतीश कुमार को विपक्षी गठबंधन का संयोजक बनाया जाता है या नहीं , बैठक के बाद बिहार की सत्ता राजनीति में भारी उलटफेर की आशंका बड़ा आकार लिये हुए है. ऐसा माना जाता है कि संयोजक का पद मिल गया, तब नीतीश कुमार को तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejashwi Prasad Yadav) के लिए मुख्यमंत्री का पद त्यागना पड़ जायेगा. अगर -मगर की स्थिति में दबाव इतना पड़ेगा कि पद छोड़ने के सिवा दूसरा कोई विकल्प नहीं बचेगा. उस स्थिति में सत्ता बचाये रखने के लिए संयोजक पद का मोह छोड़ पलटी मार लें, तो वह हैरानी की कोई बात नहीं होगी. संयोजक का पद नहीं मिलने की स्थिति में उनका जो स्वभाव है उसके मद्देनजर विपक्षी गठबंधन का शायद ही उनके लिए कोई विशेष मतलब रह जायेगा.

अब खुद निर्णय लेंगे
वैसे, नीतीश कुमार बार- बार सफाई दे रहे हैं कि अब इधर – उधर नहीं करेंगे. मतलब यह कि पहले इधर-उधर करते थे. इसलिए कि दूसरों की सलाह पर चलते थे. अब अपनी मर्जी से निर्णय लेंगे. उनके यह सब कहने के बाद भी करीबी और दूर के लोग इस बात पर विश्वासपूर्वक कुछ बोलने के लिए तैयार नहीं हैं कि नीतीश कुमार सचमुच अब पलटी मारेंगे ही नहीं. करीब से जानने वाले लोग उन्हें भगवान का दर्जा दिये हुए हैं. वह कहते हैं न कि भगवान अपने हाथ में अपयश नहीं लेते हैं. अच्छे कार्यों का श्रेय तो लोग आसानी से भगवान (God) को दे देते हैं. बुरे कार्य के लिए दूसरे का सिर खोज लेते हैं. जैसे एक्सीडेंट (Accident) हो गया तो इसके लिए ड्राइवर, खराब मौसम या तकनीकी खराबी को जवाबदेह बता देते हैं.

श्रेय किसी को नहीं दिया
इतिहास पर नजर डालिये. नीतीश कुमार ने ढेर सारी योजनाएं बनायी, चलायी. उनका नाम हुआ. जयकारा लगा. लेकिन, किसी अच्छी उपलब्धि का श्रेय (Credit) उन्होंने किसी दूसरे को नहीं दिया. जबकि उनके कार्यकाल की सभी सफल योजनाओं का सूत्रण दूसरों ने किया था. वे अधिकारी थे. नेता थे और कई नीतीश कुमार के मित्र भी थे. यह भी याद कीजिये. उन्होंने भूल कर भी कभी किसी को सरकार (Government) की उपलब्धियों का श्रेय नहीं दिया. सत्ता के साझीदार दल को तो बिल्कुल ही नहीं. दूसरा पहलू भी गौर करने लायक है. उन्होंने जब कभी पलटी मारी तो उसका दोष दूसरों पर मढ़ दिया. दोष मढ़ने की यह प्रक्रिया पलटी मारने से पहले की होती है.

लालू प्रसाद से मिलते नीतीश कुमार.

दूसरों को जवाबदेह बता दिया
बहुत दिन नहीं हुए. राजग (NDA) से महागठबंधन में पलटी मारने के समय उन्होंने चार लोगों का नाम लिया कि इन्हीं लोगों ने उस समय पलटी मारने का प्रबंध किया था. जबकि जिन चार लोगों पर उन्होंने महागठबंधन से राजग में ले जाने का आरोप लगाया, वे सब उनके प्रिय रहे हैं. कुछ अब भी हैं. लेकिन, इतने बड़े निर्णय के लिए उन्होंने दूसरों को जवाबदेह बता दिया. करीब – करीब ऐसा ही प्रलाप इन दिनों दरबार के भीतरी हिस्से में चल रहा है. वैसे, दरबार दो विचारों में बंटा‌ है.

दो आदमी के फेर में
इस समय जब उन्हें राजद के बढ़ते दबाव से पीड़ा होती है, कह देते हैं कि हम दो आदमी के फेर में राजग से महागठबंधन में आ गये हैं. दो में से एक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह (Rajeev Ranjan Singh urf Lalan Singh) हैं. दूसरे वयोवृद्ध ऊर्जा मंत्री विजेंद्र प्रसाद यादव (Vijendra Prasad Yadav) हैं. दोनों पर पलटी मारने के लिए प्रेरित करने का आरोप वह कई बार लगा चुके हैं. इसे फिर से पलटी मारने का पूर्वाभ्यास माना जा रहा है. बस, समय की बात है. किसी भी समय पलटी मार सकते हैं. लेकिन, परेशानी यही हो रही है कि अबतक भाजपा (BJP) की ओर से सहारा मिलने का आश्वासन नहीं दिया गया है. जिस दिन यह आश्वासन मिल जाये, सुशासन बाबू पलटी मार देंगे.


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समझ नहीं पाये चाल
राजनीति (Politics) के विश्लेषकों की समझ है कि ऐसी स्थिति इस कारण भी पैदा हुई है कि इर्दगिर्द रहने वाले स्वार्थी नेताओं की कपट भरी चाल को वह समय पर समझ नहीं पाये. परिणामस्वरूप अपने राजनीतिक जीवन के सबसे बुरे दौर में घिर गये हैं . ऐसे नेताओं के बीच जबर्दस्त खींचतान है. पार्टी के लोग महसूस करते हैं कि जदयू (JDU) के फिर से महागठबंधन का हिस्सा बन जाने के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह कुछ अधिक ‘आक्रामक’ हो गये हैं. ऐसा लगता है कि राजद (RJD) का साथ मिल जाने से उनका बल दूना हो गया है. इस अतिरिक्त बल से भाजपा और नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) पर प्रहार तो ठीक है, पर राजनीति महसूस करती है कि इधर के दिनों में करीब- करीब उसी अंदाज में जदयू को भी हांकने लग गये हैं. सियासी हलकों में चर्चा है कि नीतीश कुमार का जदयू कार्यालय का निरीक्षण उसी‌ परिप्रेक्ष्य में हुआ था‌.

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