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जितवारपुर : बसा है कला का अद्भूत संसार

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शिवकुमार राय
08 सितम्बर 2023

Madhubani : मधुबनी का जितवारपुर (Jitwarpur) गांव फिर सुर्खियों में रहा. किसी शिद्धहस्त कलाकार को पद्मश्री सम्मान (Padmashree Award) या राष्ट्रीय स्तर के किसी नये पुरस्कार को लेकर नहीं, कण-कण में कला रचा-बसा रखे इस सुविख्यात गांव की दीर्घ उपेक्षा पर उठी आवाज को लेकर. गांव की दूरस्थ प्रसिद्धि मधुबनी पेंटिंग की समृद्ध कला और अप्रतिम कलाकारी एवं इसमें दक्षता व शिद्धता के लिए मिले तीन पद्मश्री सम्मान, 25 राष्ट्रीय एवं सौ से अधिक राज्य स्तरीय पुरस्कारों से है. पर, गांव और वहां के बाशिंदे कलाकारों की जिंदगी की फटेहाली सचमुच में अकल्पनीय-अकथनीय है. इस हालात से उबरने के लिए गांव वालों ने कुछ अलग तरीका अपनाया. पिछले चुनाव में रुचि नहीं दिखायी. संभवतः मतदान का बहिष्कार (Vote Boycott) किया.

गुस्सा व्यवस्था पर
उनका गुस्सा किसी खास राजनीतिक दल या राजनेता पर नहीं, व्यवस्था पर था. समझ यह कि सरकार (Government) पुश्तैनी कलाकारों के इस गांव के सम्यक विकास के प्रति गंभीर नहीं है. इस कारण बदहाली है. मुख्य रूप से मधुबनी पेंटिंग पर आश्रित कलाकार अभाव में जीने को बाध्य हैं. हाल के वर्षों में सरकार ने ख्वाब बहुत दिखाये, पर जमीन पर हकीकत कुछ नहीं दिखी. धीरे-धीरे तमाम ख्वाब खंडित हो गये.

त्रेतायुग से जुड़ा है इतिहास
मधुबनी पेंटिंग (Madhubani Painting) का गौरवशाली इतिहास सहेज रखे छोटा सा जितवारपुर गांव जिला मुख्यालय मधुबनी से तकरीबन10 किलोमीटर दूर बसा है. यह रहिका प्रखंड की नाजिरपुर पंचायत का हिस्सा है. सरकारी रिकार्ड के अनुसार इस गांव में 670 परिवार रहते हैं. वैसे तो मधुबनी, दरभंगा और पड़ोसी देश नेपाल (Nepal) के सीमावर्त्ती क्षेत्रों में लोक कला के रूप में स्थापित मधुबनी पेंटिंग (मिथिला पेंटिंग) के सृजन का इतिहास त्रेता युग से जुड़ा माना जाता है, पर किंवदंतियों में इसकी शुरुआत इसी जितवारपुर गांव से होने की बात कही जाती है.


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हर घर में दक्ष कलाकार
गांव के प्रायः हर घर में एक न एक दक्ष कलाकार अवश्य हैं. वहां कला का अद्भुत संसार बसा है, मनोरम छटा है. लगभग सभी घरों, आंगनों और दीवारों पर अलग-अलग तरह की मधुबनी पेंटिंग मंद-मंद मुस्कुराती नजर आती है. यहां तक कि खिड़कियों और दरवाजों से भी इतराती-इठलाती झांकती दिखती है. उसका इठलाना-इतराना कतई गैरमुनासिब नहीं. क्योंकि सांस्कृतिक विलक्षणता (Cultural Uniqueness) और गहन सृजनधर्मिता की उत्कृष्टता (Excellence) का इसका इतिहास स्वर्णिम है.

सदियों से है विद्यमान
कोहबर, अरिपन, अष्टदल, रासलीला जैसे प्राकृतिक प्रेम (Natural Love) को दर्शाती एक से बढ़कर एक चित्रकारी को देख यह कहना सचमुच कठिन हो जाता है कि किस घर की कला सर्वाधिक सुंदर और मोहक है. यह कला कुछ ही पीढ़ियों की नहीं है, बल्कि सदियों से इसी रूप में विद्यमान है. अपेक्षाकृत कम पढ़ी-लिखी उम्रदराज कला साधिकाओं की परंपरागत चित्रशैली (Traditional Painting Style) को पीढ़ी- दर-पीढ़ी लोग सीखते आ रहे हैं. इसके प्रति इतने समर्पित और संवेदित हैं कि होश संभालते ही बच्चों को इसके गुर सिखाने लग जाते हैं. अनवरत अभ्यास (Continuous Practice) से पारंगता प्राप्त हो जाना स्वाभाविक है. पहले मधुबनी पेंटिंग शौक में शामिल थी. 1967 के दुर्भिक्ष के बाद जीविका का जरिया बन गयी.

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