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अंतर्कथा ‘सृजन’ की : हर दबंग शख्स ने पाल रखी थी माशूका!

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शिवकुमार राय
25 अगस्त 2023

Bhagalpur : सरकारी धन के फर्जीवाड़े की गति अबाध रहे, किसी भी स्तर पर कोई अड़चन न पैदा हो इसके लिए ‘सृजन’ के ‘पापियों ’ ने हर तरह का कच्चा- पक्का इंतजाम कर रखा था. धन तो मुख्य था ही, दारू का दरिया बहा करता था. इतने पर बात नहीं बनती थी तब उसके ऊपर की सेवा उपलब्ध करायी जाती थी. इसके लिए चंद चयनितों का आवश्यकतानुसार उपयोग होता था. चयन की जिम्मेवारी उस कालखंड में पत्र-उद्योग से जुड़े शहर के एक चर्चित शख्स ने संभाल रखी थी. इससे उक्त उद्योग के कुछ अन्य लोग भी जुड़े थे. ऐसी चर्चाएं चौक-चौराहों पर खूब होती थीं. पत्र-उद्योग से जुड़े ऐसे फटेहाल लोग देखते ही देखते ‘सृजन (Srijan)’ के सौजन्य से करोड़पति बन बेशर्म की तरह शान की जिन्दगी जीने लगे.

जिसने जो चाहा, पाया और भोगा
उक्त तमाम अस्त्रों के निष्प्रभावी हो जाने पर अंतिम विकल्प ऊंची पहुंच का धौंस या फिर गुंडों की मदद था. बड़े अधिकारियों के समक्ष विनम्रता दिखायी जाती थी तो छोटे को धौंसपट्टी से अपने बस में रखा जाता था. पर, पैसे और अन्य सुविधाओं के मामले में हैसियत के हिसाब से पूरी आजादी मिली हुई थी. कहीं कोई रूकावट नहीं थी. वैसे भी फर्जीवाड़े (Forgeries) के अजस्र स्रोत से धन इतना आ जाता था कि अन्य सुविधाओं के लिए कभी किसी को दूसरे का मुखापेक्षी नहीं होना पड़ता था. सुलभता इतनी सहज थी कि जो जिस लाइन के थे वे उसमें आकंठ डूबे रहे. किसी ने अथाह सम्पत्ति बनायी तो किसी ने अय्याशी में अपने हिस्से का धन बहा दिया. सरकारी धन (Government Money) के फर्जीवाड़े के कथित मास्टरमाइंड के बारे में चर्चा है कि उसने अकूत संपत्ति भी बनायी और भरछोह अय्याशी भी की.

मौत पर उठे सवाल
उस दरम्यान सृजन की संचालिका मनोरमा देवी (Manorama Devi) की मौत को लेकर भी चर्चाओं का बाजार गर्म रहा. कहा जाता है कि एक चर्चित बड़े नेता की बढ़ी दखलंदाजी से वह नाखुश थीं. उस बड़े नेता के कथित अंतरंग जुड़ाव को लेकर उनके मन में कुछ और बात बैठ गयी थी. कहते हैं कि इसका वह अक्सर इजहार करती रहती थी. इससे ‘सृजन परिवार’ में कलह पसर गया था. मास्टरमाइंड का बढ़ा ‘प्रभुत्व’ भी इसका एक बड़ा कारण था. इसी गहराये कलह के बीच मनोरमा देवी की सांसें टूट गयीं. मनोरमा देवी अस्वस्थ थीं, पर बीमारी कोई दम टूटने वाली नहीं थी. वैसे तो कभी भी किसी की मृत्यु हो सकती है, पर मनोरमा देवी की जिन परिस्थितियों में मृत्यु हुई उसको लेकर कई तरह के सवाल उठे. कुछ लोगों ने आशंका जतायी कि ‘कलह’ से त्रस्त होकर उन्होंने आत्महत्या (Suicide) कर ली. एक चर्चा यह भी हुई कि अस्वस्थता के बहाने सुनियोजित ढंग से उनसे ‘मुक्ति’ पा ली गयी. यह सब सिर्फ संदेह भर है या इसमें कुछ सच्चाई भी है, इसका खुलासा सीबीआई (CBI) जांच में ही हो सकता है.

भागलपुर स्थित मनोरमा देवी का मकान.

व्यवस्था सब कुछ की
कालांतर में सरकारी धन के फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ तब इससे जुड़े अन्य गोरखधंधों के रहस्य भी परत-दर-परत खुलने लगे. सच या झूठ, कई तरह की बातें सार्वजनिक होने लगीं और चर्चाएं पसरने लगीं. वैसी ही चर्चाओं में एक यह भी है कि फर्जीवाड़े से जुड़े बड़े चेहरों ने लाभ पहुंचाने और संरक्षण देनेवालों को उनकी इच्छा के अनुरूप ‘सुख-सुविधा’ उपलब्ध कराने की भी मुकम्मल व्यवस्था कर रखी थी. इसके साथ ही फर्जीवाड़े के मास्टरमाइंड की माशूकाओं की लंबी फेहरिश्त भी चर्चा में आयी थी. उसकी माशूकाओं में एक भागलपुर के इशाकचक की थी. उस दौरान मीडिया (Media) में जो बातें आयी थीं उसके मुताबिक दीवानगी ऐसी कि उस माशूका की इच्छाओं व अदाओं पर उन्होंने लाखों न्योछावर कर दिया.

धन-धान्य से भर दिया
जानकारों के अनुसार उसे उसने कीमती गहनों से तो लाद दिया ही, देवघर (Deoghar) के एक अपार्टमेंट में फ्लैट भी खरीद दिया. पति मुंह नहीं खोले इसके लिए उसे भी धन से भर दिया . अपनी दुकान में नौकरी भी दे दी. चर्चाओं पर भरोसा करें तो मास्टरमाइंड की एक अन्य माशूका धनबाद (Dhanbad) की थी. उसकी एक बहन भागलपुर में रहती थी. बहन के यहां आने-जाने के क्रम में मास्टरमाइंड की समृद्धि के चकाचौंध में फंस वह उसकी माशूका बन गयी. फिर तो वह प्रायः भागलपुर में ही रहने लगी. कहा यह भी गया कि उसके जरिये उसकी बहन का भी मास्टरमाइंड से मधुर संबंध हो गया है. बताया जाता है कि मास्टरमाइंड ने एक बहुचर्चित शिक्षण संस्थान के निचले तले को अपना अय्याशगाह बना रखा था. माशूकाओं से मिलन प्रायः वहीं हुआ करता था.

अय्याशगाह भी था
उस अय्याशगाह में उनके कुछ ‘खास लोग’ पहुंचा करते थे. उन ‘खास लोगों’ में बड़े राजनीतिज्ञ, अधिकारी, व्यवसायी, पत्रकार और सफेदपोश भी होते थे. धनबाद वाली माशूका को भी मास्टरमाइंड ने भागलपुर में जमीन और फ्लैट खरीद दी. जानकारों के मुताबिक उसकी एक बहन पटना (Patna) में रहती थी. छज्जूबाग के एक अपार्टमेंट में मास्टरमाइंड ने उसके नाम फ्लैट खरीद रखा था. उसी में उस माशूका का निवास था. कहते हैं कि जब कभी मास्टरमाइंड पटना जाता था तो अमूमन वहीं डेरा डालता था. उस माशूका को वह अपने साथ अन्य शहरों में भी ले जाया करता था. एक बार मुम्बई (Mumbai) ले गया था. वहां किसी लफड़े में फंस गया तब एक संरक्षक बड़े राजनीतिज्ञ ने उससे त्राण दिलाया था. एक बार एक बड़े अधिकारी के साथ एक माशूका की विदेश यात्रा (Travel Abroad) भी करायी थी.


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पानी की तरह बहाया पैसा
चर्चा यह भी है कि सृजन की दिवंगत संचालिका मनोरमा देवी से जुड़े जितने खास लोग थे प्रायः सबने माशूकाएं पाल रखी थी. उनकी सुख- सुविधाओं पर फर्जीवाड़े का पैसा पानी की तरह बहाया जाता था और आवश्यकता के अनुसार उनका इस्तेमाल किया जाता था. कहते हैं कि ऐसी तमाम माशूकाएं सीबीआई के रडार पर हैं. रहस्य (Mystery) उगलवाने के लिए उन सबसे भी पूछताछ हो सकती है. लाभ पहुंचाने वालों के लिए विशिष्ट ‘सुख-सुविधा’ की चर्चा को विगत वर्षों हुई कुछ घटनाओं से भी बल मिला. सृजन से जुड़ी एक महिला की मौत को लोगों ने उसी नजरिये से देखा. संभवतः वह वहां सेल्स गर्ल (Sales Girl) थी. 2008 में अचानक उसकी तबीयत खराब हुई और अस्पताल के रास्ते में उसका दम टूट गया.

और भी हुए कई पाप!
उक्त महिला की मौत का मामला थाना पुलिस (Police) में नहीं गया. संभवतः इसलिए कि सृजन के एक संरक्षक राजनीतिज्ञ ने स्वजातीय पुलिस अधिकारी के सहयोग से उसे रफा-दफा करा दिया. शहर में चर्चा उसकी हत्या की पसरी. इस रूप में कि पाप छिपाने के लिए सुनियोजित तरीके से उसे मौत की नींद सुला दी गयी. भगवान को प्यारी हो गयी उक्त सेल्स गर्ल के परिजनों को मुआवजे के रूप में कुछ हासिल हुआ या नहीं, पर मामले को रफा-दफा कराने वाले पुलिस अधिकारी की तिजोरी जरूर भर दी गयी. उन वर्षों में ऐसी और भी कई घटनाएं हुईं जिनके तार किसी न किसी रूप में सृजन से जुड़े होने के संदेह पैदा हुए. उन तमाम घटनाओं पर भी सीबीआई की नजर है, ऐसा आम लोगों का मानना है.

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