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बताता है इतिहास : ऐसे बना बिहार स्वतंत्र राज्य

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महेन्द्र दयाल श्रीवास्तव
21 सितम्बर 2023

Patna : एक समय था कि ब्रिटेन (Britain) के लोग ‘बिहार’ शब्द से परिचित नहीं थे. कारण शायद यह कि इस नाम से भारत में कोई राज्य नहीं था. उस कालखंड में वहां वकालत की पढ़ाई कर रहे सच्चिदानंद सिन्हा एवं अन्य बिहारी छात्रों व युवकों को यह नागवार गुजरा. भारत (India) लौटने पर उन तमाम क्षुब्ध छात्रों-युवकों ने संकल्प लिया कि वे बिहार को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए सघन अभियान चलायेंगे. योजनाबद्ध तरीके से सभी इस संकल्प को सिद्धि तक ले जाने में जुट गये. वर्षों संघर्ष के बाद उन्हें सफलता मिली. 22 मार्च 1912 को ब्रिटिश शासनाधीन भारत के मानचित्र पर बिहार (Bihar) को अलग प्रांत के रूप में सम्मानजनक स्थान मिल गया. इसका वर्णन डा. सच्चिदानंद सिन्हा की1944 में प्रकाशित पुस्तक ‘सम इमिनेंट बिहार (तब Behar) कंटेंपररीज’ में है. पुस्तक की भूमिका अमरनाथ झा ने लिखी थी. दरभंगा जिला निवासी अमरनाथ झा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्राध्यापक थे.

‘बिहार टाइम्स’ से ‘बिहारी’
पुस्तक की भूमिका में ही वर्णित है कि पिछली सदी में ‘बिहार’ शब्द ब्रिटेनवासी जानते ही नहीं थे. यह बात उन्हें (डा. सच्चिदानंद सिन्हा) चुभने लगी.1893 में वह बिहार लौटे. यहां एक कांस्टेबल के कंधे पर लगे बिल्ले पर दूसरे प्रांत का नाम देख उनकी भावना को गहरा आघात लगा. उन्होंने बिहार को अलग पहचान दिलाने का व्रत ठान लिया. तब बिहार से कोई ‘जर्नल’ प्रकाशित नहीं होता था. जनवरी 1894 में ‘बिहार टाइम्स’ का प्रकाशन (Publication) प्रारंभ हुआ. महेश नारायण को संपादक (Editor) बनाया गया. बाद में उस जर्नल का नाम ‘बिहारी’ पड़ गया. अमरनाथ झा के अनुसार यह बिहार के पुनर्जागरण का समय था. इस काम में डा. सच्चिदानंद सिन्हा के साथ अधिसंख्य कायस्थ जाति के लोग ही थे. कारण कायस्थों में शिक्षित लोगों का अधिक होना माना गया.


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बिहार का मतलब गया!
1907 में ‘बिहारी’ के संपादक महेश नारायण का निधन हो गया. आंदोलन (Movement) थम गया. उसी समय बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर एलेक्जेंडर मैगजीन गया आये थे. उस कालखंड में बिहार का मतलब गया हुआ करता था. संभवतः बौद्ध विहारों के कारण. बिहार को उसी विहार का अपभ्रंश माना जाता है. तब बिहार, बंगाल और उड़ीसा (Orissa) एक ही राज्य था. एलेक्जेंडर मैगजीन ने अलग बिहार प्रांत की मांग को सिरे से खारिज कर दिया. डा. सच्चिदानंद सिन्हा (Dr. Sachchidanand Sinha) की भाषा में, विरोधी कहने लगे, सिर्फ ‘चार दरवेश’ बच गये. डा. सच्चिदानंद सिन्हा, महेश नारायण, नंदकिशोर लाल और रायबहादुर कृष्णा सहाय. सात वर्षों तक आंदोलन बंद रहा, लेकिन आंदोलनकारी चुपचाप घर में बैठे नहीं रहे.अलग बिहार प्रांत के लिए जनमत बनाते रहे.

लंबा चला आंदोलन
1905 में बंगाल का विभाजन हुआ. पूर्वी बंगाल और पश्चिम बंगाल (West Bengal) के रूप में. 1906 में ऐंड्रू फ्रेजर विभाजित पश्चिम बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर बनाये गये जो बिहार में बहुत ही लोकप्रिय हुए. बिहारियों ने फ्रेजर मेमोरियल ट्रस्ट बनाया और अलग बिहार प्रांत की मांग को लेकर आंदोलन तेज कर दिया. 1908 में डा. सच्चिदानंद सिन्हा के प्रयास से अली इमाम के नेतृत्व में बिहार प्रांतीय सम्मेलन हुआ. उसमें बिहार को अलग प्रांत बनाने का प्रस्ताव पारित किया गया. चार वर्ष बाद 1912 में बिहार-उड़ीसा अलग प्रांत बन गया. 1935 में उड़ीसा को अलग राज्य बना दिया गया. तब बिहार का अपना स्वतंत्र अस्तित्व (Independent Existence) बन गया.

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