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हाल ‘बंजर भूमि’ का : ‘ब्राह्मण और बनिया की पार्टी’ की छवि ने कभी उभरने नहीं दिया

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तेजस्वी ठाकुर
27 अगस्त 2023

Sarhasa : कोशी अंचल की राजनीति की गहरी समझ रखने वालों के मुताबिक भाजपा (पूर्व में जनसंघ) द्वारा जाने-अनजाने मृत्युंजय नारायण मिश्र और शंकर प्रसाद टेकरीवाल सरीखे हाथों में बागडोर सौंप इस अंचल में छवि ब्राह्मण और बनिया की पार्टी (Brahmin and Bania’s party) की बना कर रखी गयी. परिणामतः जनाधार का दायरा आमतौर पर उतने में ही सिमटा रह गया. यहां तक कि नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) और अमित शाह (Amit Shah) की ‘समावेशी स्वरूपा भाजपा’ भी इस हकीकत से दूर है. 2020 में राजग की सरकार (NDA government) बनी तो कोशी अंचल (Koshi Zone) को प्रतिनिधित्व के रूप में शाहनवाज हुसैन, नीरज कुमार सिंह बबलू और आलोक रंजन को मंत्री पद से नवाजे जाने से भी यह स्पष्ट हुआ. इस अंचल में विधायक संख्या एक से दो होने पर मंत्रिमंडल में ‘छप्परफाड़ प्रतिनिधित्व’ का पुरस्कार राजनीति को चकित करने वाला रहा. लेकिन, आमलोग इस अप्रत्याशित मेहरबानी का मतलब नहीं समझ पाये.

समझ से परे रहा
भाजपा के लिए शाहनवाज हुसैन (Shahnawaz Hussain) की ताजपोशी के वोट से जुड़े राष्ट्रीय निहितार्थ हो सकते थे. परन्तु, पिछड़ों एवं अतिपिछड़ों की सघन आबादी वाले कोशी अंचल में सवर्ण समाज के नीरज कुमार सिंह बबलू (Neeraj Kumar Singh Bablu) (क्षत्रिय) एवं आलोक रंजन  (Alok Ranjan) (ब्राह्मण) को मंत्री बनाये जाने का मकसद सामान्य समझ से परे रहा. इससे भाजपा (B J P) को किस रूप में और कितना लाभ मिला यह सबके सामने है. नीरज कुमार सिंह बबलू और आलोक रंजन की काबिलियत सवालों से अलग है. पर, सामाजिक समीकरणों के आधार पर मंत्रिमंडल (cabinet) में उनके प्रतिनिधित्व से भाजपा को हुए नफा-नुकसान का आकलन-विश्लेषण तो किया ही जा सकता है.


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समर्पण पर संदेह नहीं
लगातार पांचवीं- दो बार राघोपुर (Raghopur) और तीन बार छातापुर (Chhatapur) से जीत दर्ज करने वाले नीरज कुमार सिंह बबलू की शुरूआती पहचान पूर्व सांसद आनंद मोहन (EX MP Anand Mohan) के ‘सिपहसालार’ की रही है. अपनी राह अलग बना लेने के बाद भी दबंगता को लेकर वह विवादों में घिरे रहे हैं. इसके बावजूद पार्टी के लिए उनकी सार्थकता करीब-करीब सिद्ध है. पार्टी और नेतृत्व के प्रति समर्पण पर भी संदेह नहीं किया जा सकता. मंत्री का पद मिलने के बाद उनकी पत्नी और लोजपा (LJP) की इकलौती विधान पार्षद नूतन सिंह (Nutan Singh) के भाजपा में ‘विलय’ से भी यह प्रमाणित हुआ. यह अलग बात है कि 2021 के चुनाव में नूतन सिंह विधान परिषद का चुनाव हार गयीं.

न हर्ष और न विशाद
नीरज कुमार सिंह बबलू को मंत्री बनाये जाने पर विश्लेषकों के मन-मिजाज में यह विचार उठा था कि उनकी जगह पिछड़ा-अतिपिछड़ा समाज के किसी सक्षम-समर्थ नेता को अवसर मिलता तो शायद उससे पार्टी के कमजोर जनाधार को मजबूती मिलती. बात अब आलोक रंजन  की. उन्हें मंत्री का पद ‘मैथिल ब्राह्मण’ कोटे से मिला था. यह अप्रिय लग सकता है, पर सच यही है कि इससे इस समाज में न कोई हर्ष हुआ था और न विशाद. कारण कि स्वजातीय समाज में उल्लेख करने लायक इनकी कोई सामाजिक-राजनीतिक पहचान नहीं है.

कोई असर नहीं पड़ा
मंत्री बनने का सौभाग्य उन्हें संभवतः इस वजह से प्राप्त हो गया कि पूर्व बाहुबली सांसद आनंद मोहन की पत्नी पूर्व सांसद लवली आनंद (EX MP Lovely Anand) के अरमानों को धोकर वह विधानसभा में पहुंच गये. पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी (Sushil Kumar Modi) के गुट से जुड़े रहने का भी फायदा मिला, ऐसा भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का मानना रहा. ऐसे में इनके मंत्री बनने या न बनने से ब्राह्मणों के भाजपा से जुड़ाव पर अनुकूल या प्रतिकूल, कोई असर न पड़ने वाला था और न पड़ा.

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