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इजरायल बनाम फिलिस्तीन : एक दूसरे से भी लड़ते रहते हैं हमास और फताह

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विकास कुमार झा
17 अक्तूबर 2023

हराते इजरायल-फिलिस्तीनी विवाद से चिंतित अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन (Bill Clinton) ने 11 जुलाई 2002 को कैंप डेविड शिखर सम्मेलन आयोजित किया. इजरायल के उस वक्त के प्रधानमंत्री एहूद बराक और पीए के चेयरमैन यासिर अराफात अंतिम दौर की वार्ता में शामिल हुए. उसका भी कोई नतीजा नहीं निकला. उसके बाद भी सुलह के कई अंतरर्राष्ट्रीय प्रयास (International Efforts) हुए. सबके सब बेकार गये. 2004 में यासिर अराफात का निधन हो गया. महमूद अब्बास उनकी जगह पीए का चेहरा बने. उनके पास न तो यासिर अराफात जैसा समर्थन था और न स्वीकार्यता थी. इसके चलते हमास का कद और बढ़ गया. इसकी धमक 2006 में दिखी. उस साल पीए के चुनाव हुए. इसमें हमास (Hamas) को बहुमत मिल गया. वेस्ट बैंक और गाजा, दोनों पर उसका दबदबा कायम हो गया.

फताह का दबदबा
इस जीत ने हमास और पीए के बीच की दरार को और चौड़ा कर दिया. पीए में फताह का दबदबा है. वह हमास का कट्टर प्रतिद्वंद्वी है. पीए को अंतर्राष्ट्रीय समर्थन हासिल है. आधार यह कि वह इजरायल से समझौते का पक्षधर है. उसे अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी से मोटा धन भी मिलता है.कहते हैं कि इस धन ने पीए को बेहद भ्रष्ट बना दिया है. पीए, खासतौर पर फताह किसी कीमत पर वेस्ट बैंक (West Bank) पर नियंत्रण नहीं खोना चाहता था. उसने हमास को साइड लगाने की कोशिश की. इसका नतीजा हुआ बंटवारा. वेस्ट बैंक पर पीए का नियंत्रण हो गया और हमास गाजा का डी-फैक्टो रूलर बनकर रह गया. परिणामतः पूरी फिलिस्तीनी आबादी का नेतृत्व करने के लिए, उनकी बात रखने के लिए कोई मजबूत संगठन नहीं रहा.

पलायन का दर्द.

फिर कोई चुनाव नहीं हुआ
पीएलओ में फूट के चलते 2006 के बाद फिलिस्तीन (Palestine) में कोई चुनाव ही नहीं हुआ. हमास और फताह, एक-दूसरे से लड़ते रहते हैं. इजरायल इसका खूब फायदा उठा रहा है. उसने शांति वार्ता करने से इनकार कर दिया. कहा, जब तक हमास से गाजा की कमान नहीं छीनी जाती, तब तक बातचीत संभव नहीं. इजरायल (Israel) जानता है कि ऐसा कर पाना फिलहाल तो मुमकिन नहीं है. याहया सिनमार (Yahya Sinmar) अभी हमास का सबसे बड़ा नेता है. इसकी सैन्य इकाई एज्जेदीन अल-कसम ब्रिगेड की कमान मोहम्मद दियाब इब्राहिम जाएफ के जिम्मे है.2007 से गाजा (Gaza) पर हमास का नियंत्रण है. पहले हुए संघर्षों की तरह मई 2021 में इजरायल और हमास एक-दूसरे को ज्यादा-से-ज्यादा चोट देने में लगे रहे. वर्तमान में भी वैसा ही कुछ होता दिख रहा है. मई 2021 में 11 दिनों के बाद अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी की अपील पर ‘संघर्ष विराम’ हो गया. पूर्व की तरह इजरायल का कहना रहा कि उसने हमास को मुंहतोड़ सबक सिखाया. हमास ने भी इजरायल के दांत खट्टे कर देने का दावा किया. दोनों पक्षों ने खुद को विजेता माना. लड़ाई रुक गयी. पर, छिटपुट हिंसा जारी रही, जिसने 07 अक्तूबर 2023 को फिर से युद्ध (War)का रूप धारण कर लिया. इस नये संघर्ष (Conflict) पर कब विराम लगता है, यह अभी नहीं कहा जा सकता.

विरोधी भी हैं और समर्थक भी
हमास के विरोधी और समर्थक, दोनों हैं. विरोधी कहते हैं कि वह आतंकवादी (Terrorist) है. इजरायल के आम नागरिकों को निशाना बनाता है. स्कूलों तक को नहीं बख्शता. उसकी हिंसा से फिलिस्तीनियों का भी कोई भला नहीं होता. यह उसके दावे को कमजोर करती है. लेकिन, हमास के समर्थक इन तर्कों को गलत बताते हैं. उनका कहना है कि इजरायल ने फिलिस्तीनी इलाकों पर कब्जा किया. इतने दशकों बाद भी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं वह कब्जा खाली नहीं करवा सकीं. फिलिस्तीन को उसका अधिकार नहीं दिलवा सकीं. समय-समय पर फिलिस्तीनी आबादी के साथ हिंसा भी की. शांति प्रक्रिया को टरकाने की हर मुमकिन कोशिश की. ऐसे में इजरायल कैसे निर्दोष हुआ?


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ऐसे ही भड़कती रहेगी आग
यहां गौर करने वाली बात है कि मई 2017 में हमास ने एक डाक्यूमेंट जारी किया था. उसमें समझौते के संकेत दिये थे. 1967 से पहले की फिलिस्तीनी सीमा को स्वीकार करने की बाबत भी कुछ इशारा किया था. यानी उसने अपने रुख को नरम किया था. विशेषज्ञ कहते हैं कि इजरायल समेत अन्य संबद्ध देशों को भी इसी दिशा में आगे बढ़ना चाहिये. इजरायल को चाहिए कि वह फिलिस्तीनी इलाका खाली कर दे. अवैध यहूदी सेटलमेंट्स पर अपने पांव पीछे खींच ले. यह दिखाना बंद करे कि वह अंतर्राष्ट्रीय कानूनों (Laws) और जवाबदेहियों से ऊपर है. बदले में फिलिस्तीन को भी हिंसा (Violence) रोकने की गारंटी देनी होगी. जब तक ऐसा नहीं होता, गाहे-बगाहे युद्ध की आग ऐसे ही भड़कती रहेगी.

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