इजरायल बनाम फिलिस्तीन : इसलिए भड़क उठती है युद्ध की आग
महेन्द्र दयाल श्रीवास्तव
12 अक्तूबर 2023
14 मई का इतिहास और 35 एकड़ का छोटा-सा भूखंड… इजरायल और फिलिस्तीन के बीच युद्ध का मूल कारण है, जो धर्म से भी जुड़ा है और अस्तित्व से भी. तभी तो इस भूखंड के लिए जितना संघर्ष हुआ है, जितना खून बहा है, उतना शेष दुनिया में शायद कहीं नहीं हुआ होगा. यह क्रम अब भी बना ही हुआ है. रक्तरंजित कहानी कुछ इस प्रकार है.14 मई1948 को इजरायल (Israel) राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया था. तब से उस तारीख को वह ‘राष्ट्रीय अवकाश’ मनाता है. इजरायल का अलग राष्ट्र बनना फिलिस्तीन (Palestine) के लिए त्रासदी के समान है. यह भी कि धर्म से जुड़ा 35 एकड़ का भूखंड भी इजरायल ने उससे छीन लिया है. इसी सदमे में वह 15 मई को हर साल ‘त्रासदी दिवस’ मनाता है. 35 एकड़ के इसी भूखंड को फसाद की जड़ माना जाता है.
तीन बड़े धर्मों का दावा
यह तकरीबन 51 करोड़ वर्ग किलोमीटर में फैली धरती के करीब 15 करोड़ वर्ग किलोमीटर जमीन वाले हिस्से का दशमलव से भी कम है. इसके बाद भी दुनिया की सर्वाधिक विवादित जगहों में महत्वपूर्ण स्थान बनाये हुए है. ऐसा इसलिए कि तीन बड़े धर्मों- यहूदी, ईसाई और इस्लाम के अनुयायी इस पर दावा जताते हैं. अधिकार की बात आर्मिनियाई लोग भी करते हैं जिनकी आस्था इसाई धर्म (Christianity) में ही है. इस विरोधाभासी दावेदारी को लेकर कई युद्ध हुए. आज की तारीख में भी हो रहा है और आगे भी होने की आशंका बनी हुई है. मामला दुनिया के सबसे पुराने एवं पवित्र शहरों में शामिल येरुशलम (Jerusalem) का है. यह जीसस क्राइस्ट (Jesus Christ) के जन्म के चार हजार साल पहले से बसा हुआ है. अरब भाषा में इस शहर को अल-कुदस कहा जाता है. इजराइल और फिलिस्तीन दोनों इसको अपनी राजधानी बताते हैं.
यहीं हुआ एडम का सृजन!
येरुशलम शहर के पुराने हिस्से में एक पहाड़ी पर है 35 एकड़ क्षेत्रफल का आयताकार भूखंड. यह परिसर यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों, तीनों के लिए पवित्र है. इस परिसर को यहूदी (Jewish) ‘हर हबायित’ कहते हैं. यह इब्रानी यानी हिब्रू भाषा का शब्द है. अंग्रेजी में इसे ‘टेम्पल माउंट’ कहा जाता है. इसी परिसर को मुसलमान हरम-अल-शरीफ कहते हैं. इन दोनों संप्रदायों के अलावा ईसाई भी इस जगह को खुद के लिए पवित्र मानते हैं. यहूदियों का मानना है कि इसी जगह पर उनके ईश्वर ने वह मिट्टी संजोयी थी जिससे एडम (Adam) का सृजन हुआ. एडम माने वह पहला पुरुष जिससे इंसानों की पीढ़ियां अस्तित्व में आयीं. यहूदियों की टेम्पल माउंट से जुड़ी एक और मान्यता है. यह कि उनके पैगम्बर हजरत अब्राहम (Prophet Hazrat Abraham) के दो बेटे थे. ईस्माइल और इसहाक.
राजा सुलैमान ने मंदिर बनवाया
एक दफा ईश्वर ने अब्राहम से उनके बेटे इसहाक की बलि मांगी. बलि देने के लिए अब्राहम ईश्वर की बतायी जगह पर पहुंचे. वहां वह इसहाक को बलि चढ़ाने ही वाले थे कि ईश्वर ने एक फरिश्ता भेजा. अब्राहम ने देखा, फरिश्ते के पास एक भेड़ खड़ा है. ईश्वर ने अब्राहम की भक्ति, उनकी श्रद्धा से प्रसन्न हो इसहाक को बख्श दिया. उनकी जगह बलि देने के लिए भेड़ को भेजा. यहूदियों के मुताबिक बलिदान की वह घटना इसी टेम्पल माउंट (Temple Mount) पर हुई थी. इसलिए इजरायल के राजा सुलैमान ने 1000 ईसा पूर्व यहां एक भव्य मंदिर बनवाया. यहूदी इसे फर्स्ट टेम्पल कहते हैं. 586 ईसा पूर्व में यह शहर बेबिलोनियन राजाओं के कब्जे में चला गया. उस सभ्यता के लोगों ने मंदिर को नष्ट कर दिया.
पवित्र से भी पवित्र
तकरीबन पांच सदी बाद 516 ईसा पूर्व यहूदियों ने इसी जगह पर दोबारा मंदिर बनवाया. वह मंदिर सेकेंड टेम्पल कहलाया. इस मंदिर के अंदरुनी हिस्से को यहूदी होली ऑफ होलीज (Holi of Holies) कहते हैं. मतलब पवित्र से भी पवित्र. वह ऐसी जगह थी जहां आम यहूदियों को पांव रखने की इजाजत नहीं थी. केवल श्रेष्ठ पुजारी ही प्रवेश पाते थे. सेकेंड टेम्पल करीब 6 सौ साल तक अस्तित्व में रहा. उस समय इस्लाम धर्म आया भी नहीं था और ईसाई धर्म का कोई प्रभाव नहीं था. मंदिर की एक दीवार आज भी मौजूद है, जिसे वेस्टर्न वॉल कहा जाता है. यहूदी उसी वेस्टर्न वॉल के पास प्रार्थना करते हैं.
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मुसलमानों का हरम-अल-शरीफ
इसके उलट मुसलमानों का अपना दावा है. उनके मुताबिक इस्लाम (Islam) की सबसे पवित्र जगहों में पहले नम्बर पर मक्का, दूसरे पर मदीना और तीसरे पर हरम-अल-शरीफ है. उम्मैद खलीफाओं ने वहां भव्य मस्जिद बनवायी थी. नाम अल-अक्सा रखा था. अरबी भाषा में अक्सा का मतलब सबसे ज्यादा दूर होता है. इसी अल- अक्सा मस्जिद के सामने है सुनहरे गुम्बद वाली इमारत जिसे ‘डोम ऑफ दी रॉक’ कहा जाता है. ये दोनों इमारतें उसी 35 एकड़ वाले आयताकार परिसर में हैं. (शेष अगली कड़ी में )
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