तब तक इस्पात का झुनझुना बजाते रहेंगे आरसीपी सिंह!
अरविन्द कुमार झा
02 अगस्त, 2021
पटना. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का ‘क्रोध’ शांत नहीं हुआ, तो मई 2022 आते-आते जद(यू) के निवर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष केन्द्रीय इस्पात मंत्री आरसीपी सिंह की राजनीति शून्य में समा जा सकती है. नीतीश कुमार की नाराजगी आरसीपी सिंह के कथित रूप से मनमाने ढंग से केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जगह हासिल कर लेने को लेकर है. इस राजनीतिक गुनाह की ‘त्वरित सजा’ के रूप में उन्हें जद(यू) के राज्यसभा संसदीय दल के नेता पद से हटा दिया गया. वह जगह रामनाथ ठाकुर को मिल गयी. ‘एक व्यक्ति एक पद’ के फार्मूले पर हुई उक्त कार्रवाई के अनुरूप उन्हें पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से भी हाथ धोना पड़ गया. यह पद सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को हासिल हो गया. अब राज्यसभा की उनकी सदस्यता पर खतरा मंडराने लगा है. 2022 के मध्य में राज्यसभा की सदस्यता का उनका छह वर्षीय कार्यकाल पूरा हो जायेगा. जद(यू) सुप्रीमो की इच्छा के विपरीत केन्द्रीय मंत्री के पद के लोभ में नीतीश कुमार की नजर में उन्होंने अपनी जो स्थिति बना ली है उसमें राज्यसभा की सदस्यता का दोहराव शायद ही हो पायेगा. बहरहाल, वह जद(यू) की राजनीति में टिमटिमाते रहेंगे, केन्द्रीय मंत्री के तौर पर इस्पात का झुनझुना बजाते रहेंगे.
एक व्यक्ति एक पद का फार्मूला तुरंत-तुरंत आरसीपी सिंह पर लागू हुआ है तो न चाहते हुए भी इसे जद(यू) के नये राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह पर भी लागू करना लाजिमी है. ललन सिंह जद(यू) संसदीय दल के नेता हैं. यह पद अब उन्हें छोड़ना पड़ जायेगा. इस पर किसकी ताजपोशी होगी यह अभी अस्पष्ट है. वैसे, अतिपिछड़ा को जगह मिलने की संभावना के तहत जहानाबाद के सांसद चन्देश्वर चन्द्रवंशी के नाम की चर्चा है. लेकिन, ऐसा शायद ही संभव हो पायेगा. कारण कि अति पिछड़ा समाज के रामनाथ ठाकुर राज्यसभा में जद(यू) संसदीय दल के नेता पद पर जमे हैं. अतिपिछड़ा वर्ग के सांसद दिलकेेश्वर कामत प्रदेश जद(यू) संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष का पद संभाल रहे हैं. इस दृष्टि से अत्यंत पिछड़ा समाज से संसदीय दल का नेता बनना असंभव-सा दिखता है. जद(यू) का जो सामाजिक समीकरण है उसमें कुर्मी और कुशवाहा को प्राथमिकता प्राप्त है. लेकिन, इस मामले में वह लागू नहीं होता. कुशवाहा समाज से तीन सांसद हैं. काराकाट से महाबली सिंह, वाल्मीकिनगर से सुनील कुमार और पूर्णिया से संतोष कुशवाहा. सुनील कुमार पहली बार सांसद बने हैं. पार्टी के संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष पद उपेन्द्र कुशवाहा को और प्रदेश अध्यक्ष का पद उमेश कुशवाहा को मिला हुआ है. इसके मद्देनजर कुशवाहा समीकरण फिट नहीं बैठ रहा है. इसके बावजूद यदि महाबली सिंह या संतोष कुशवाहा को संसदीय दल का नेता बना दिया जाता है तो फिर उपेन्द्र कुशवाहा की संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष का पद विधिवत पाने की राह कठिन हो जा सकती है. एक नाम बांका के सांसद गिरधारी यादव का भी चल रहा है. विश्लेषकों का मानना है कि सामाजिक संतुलन बनाये रखने के लिए इन्हें अवसर उपलब्ध कराया जा सकता है. वैसे, सीवान की सांसद कविता सिंह भी चाहेंगी कि यह पद उन्हें मिले. ऐसे में कोई चैंकाने वाला निर्णय भी हो सकता है.