नवरात्र : इस मंदिर के गर्भगृह से सुनाई पड़ती है पायल की झनकार!
एस एन श्याम
19 अक्तूबर 2023
Patna : ऐसी किंवदंती है कि आधी रात के बाद मंदिर के गर्भगृह से पायल की झनकार सुनाई पड़ती है. अन्य किसी को नहीं, सिर्फ मंदिर के पुजारी को. गर्भगृह से निकलकर यह आवाज मंदिर (Temple) के मुख्य द्वार तक गूंजती है, केवल और केवल पुजारी के कानों में. गौर करने वाली बात यह भी कि गर्भगृह से शुरू होकर आवाज धीरे-धीरे मुख्य द्वार तक जाती है और फिर उसी तरह वापस हो जाती है. लोग भले इस पर विश्वास नहीं करें, पर पुजारी का ऐसा ही कुछ दावा है. इसके साथ मंदिर के और भी कई चमत्कारिक रहस्य (Wondrous Mystery) हैं.पायल की झनकार वाली बात राजधानी पटना के पटन देवी मंदिर की है, जो सनातन धर्म (Sanatan Dharm) की 51 शक्तिपीठों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है.
शक्तिपीठ व सिद्धपीठ
यहां यह जान लेना आवश्यक है कि शक्तिपीठ और सिद्धपीठ एक नहीं हैं, उनकी अलग- अलग पहचान और मान्यता है. इस धर्म की गहन जानकारी रखने वालों के मुताबिक सती के शरीर के अलग-अलग अंग जिन 51 स्थानों पर गिरे, धर्मशास्त्र (Theology) में उन्हें शक्तिपीठ की मान्यता मिली. जिन स्थानों पर ऋषि- मुनियों और साधु-संतों ने साधना-उपासना से सिद्धि प्राप्त की उन्हें सिद्धपीठ के रूप में जाना-पहचाना जाता है. इस दृष्टि से पटनदेवी के रूप में ज्यादा प्रचलित मां पटनेश्वरी शक्तिपीठ है, सिद्धपीठ नहीं.
कालिक मंत्र की सिद्धि
वैसे, इस मंदिर को भी तंत्र-मंत्र साधना का एक प्रमुख स्थल माना जाता है. मुख्य रूप से कालिक मंत्र की सिद्धि के लिए यह प्रसिद्ध है. सनातन धर्मावलंबियों की सामान्य धारणा है कि पटनेश्वरी मंदिर में मां दुर्गा (Maa Durga) स्वयं विराजमान हैं. आधी रात के बाद वह मंदिर में विचरण करती हैं. मंदिर के पुजारी को उनकी ही पायल की झनकार (Anklet Jingle) सुनाई पड़ती है. धर्म-कर्म में जिन्हें कोई आस्था नहीं है, उन्हें यह बकवास लग सकता है. पर, ऐसे ढेर सारे आस्थावान लोग हैं, जो इस पर आंख मूंदकर विश्वास करते हैं.
दो पटनदेवी हैं पटना में
पटना में पटन देवी (Patan Devi) दो हैं- बड़ी पटन देवी और छोटी पटन देवी. दोनों के अलग-अलग जगह पर अलग-अलग मंदिर हैं. धर्मग्रंथों में वर्णित है कि बड़ी पटन देवी में माता सती की वस्त्र समेत दाहिना जांघ गिरी थी. इसी कारण ‘पटन देवी’ नाम दिया गया. सर्वविदित है कि माता सती को ही पार्वती, दुर्गा, काली, गौरी, उमा, जगदम्बा, गिरिजा, अम्बे, शेरावाली, शैलपुत्री, पहाड़ावाली, चामुण्डा, तुलजा, अम्बिका आदि अनेक नामों से जाना जाता है.
सती से जुड़ी है कथा
पुराणों के अनुसार प्रजापति ब्रह्मा (Brahma) के मानस पुत्रों में एक प्रजापति दक्ष भी थे. उनकी दो पत्नियां थीं-प्रसूति और वीरणी. स्वायंभुव मुनि की तीसरी पुत्री प्रसूति से सोलह कन्याएं और वीरणी से साठ पुत्रियां हुईं. प्रसूति की सोलह कन्याओं में ही एक सती थीं, जिन्होंने पिता की इच्छा के विरुद्ध रूद्र से विवाह किया था. भगवान शिव (Lord Shiva) को रूद्र कहा जाता है. शक्तिपीठ की कथा उसी सती से जुड़ी हुई है. पिता के यज्ञ के दौरान सती की मृत्यु से क्रोधित-विचलित भगवान शिव के तांडव को रोकने के लिए भगवान विष्णु (Lord Vishnu) ने उनके (सती) पार्थिव शरीर को सुदर्शन चक्र से खंडित कर दिया था.
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पटल का अपभ्रंश है पटना
सती के अंग अलग-अलग 51 जगहों पर गिरे थे. पटल समेत दाहिना जांघ पटना के महाराजगंज (आलमगंज) इलाके में गिरी थी. वह इलाका गुलजारबाग रेलवे स्टेशन के करीब है. पटल का अर्थ वस्त्र होता है. इसी कारण इसका नाम पटल देवी पड़ा जिसका अपभ्रंश पटन देवी है. जगह को पटला कहा जाने लगा. पटना उसी का अपभ्रंश है. धर्मग्रंथों में पटन देवी की व्याख्या मां सर्वानंदकरी के रूप में भी है. शक्ति, विद्या और धन आधारित सभी तरह का आनंद देने वाली देवी सर्वानंदकरी. तंत्र चूड़ामणि के अनुसार:
‘मागधे वहा जंघा में व्योमकेशस्तु
सर्वानंदकरी देवी सर्वानंद फलभद्रा।।
पटनदेवी खंदा
पटन देवी में स्वर्णाभूषणों, छत्र एवं चंवर के साथ शक्ति के तीनों स्वरूप विराजमान हैं – महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती. मंदिर में मां का ये तीनों विग्रह काले पत्थरों के बने हैं. एक तरफ महाकाली हैं और दूसरी तरफ महासरस्वती, बीच में महालक्ष्मी. जनश्रुतियों (Public Opinion) में ऐसा कहा जाता है कि मां सती (Maa Sati) की वस्त्र समेत दाहिना जांघ जब गिरी थी तब वहां बहुत बड़ा गड्ढा हो गया था. वह गड्ढा ‘पटन देवी खंदा’ के नाम से जाना जाता है. वहां पर वेदी बनी हुई है. उसी पटन देवी खंदा में मिलीं देवी की मूर्तियां मंदिर में प्रतिष्ठापित हैं. वहां भैरव की भी प्रतिमा है.
राजमहिषी पटलावति
इतिहासकारों (Historians) का मानना है कि ये तमाम प्रतिमाएं सतयुग की हैं. इस संदर्भ में ऐसा कहा-सुना जाता है कि प्राचीन काल में पाटलिपुत्र की राजमहिषी पटलावति को माता की मूर्त्तियों की बाबत स्वप्न हुआ था. संबंधित जगह की उन्होंने खुदाई करवायी तो उक्त मूर्त्तियां मिलीं. मंदिर में एक योनिकुंड है. इस कुंड में हवन होता है. इसके बारे में कहा जाता है कि इसमें डाली जाने वाली हवन सामग्री के अवशेष कभी निकाले नहीं जाते हैं. वे स्वतः भूगर्भ में समा जाते हैं. नवरात्र (Navratri) के दौरान हवन सामग्री के अवशेष तकरीबन दस फीट तक जमा हो जाते हैं. फिर भी उन्हें हटाया नहीं जाता है. वे खुद-ब-खुद जमीन के अंदर चले जाते हैं. मंदिर में बलि प्रथा (Sacrificial Ritual) की परंपरा अब भी निभायी जाती है.
बलि प्रथा की परंपरा
शक्तिपीठ बड़ी पटन देवी के महंत विजय शंकर गिरि के अनुसार इस मंदिर में वैदिक और तांत्रिक दोनों विधि से माता की पूजा होती है. वैदिक विधि (Vedic Method) से पूजा खुले रूप में होती है. इसके बरक्स तकरीबन 10 मिनट की तांत्रिक पूजा के दौरान गर्भगृह का कपाट बंद रखा जाता है. देवी को दिन में कच्ची और रात में पक्की भोज्य सामग्र्री का भोग लगता है. कुछ समय पहले तक वहां एक कामधेनु गाय (Kamadhenu Cow) थी. मात्र एक साल की उम्र से ही दूध देने लग गयी थी. उस दूध से बनी खीर से ही माता का पहला भोग लगता था. कुछ साल पूर्व कामधेनु गाय का अचानक निधन हो गया.
(यह आस्था और विश्वास की बात है. मानना और न मानना आप पर निर्भर है.)
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