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नाट्य उत्सव : कभी पृथ्वीराज कपूर भी पधारे थे यहां के मंच पर

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राजेश कुमार
21 अक्तूबर 2023

पंडारक (पटना) : डा. चतुर्भुज प्रसिद्ध नाटककार थे. राज्य के ग्रामीण रंगमंच पर अधिकतर उनके ही नाटकों का मंचन हुआ करता था, आज भी होता है. वह आकाशवाणी, पटना के निदेशक भी रहे. उन्होंने नाटकों के मंचन का इतिहास लिखा था. उसमें संयुक्त बिहार के जमशेदपुर, सोनपुर और पंडारक में नाटकों के मंचन की लम्बी ऐतिहासिक परम्परा (Historical Tradition) रहने का जिक्र है. कहते हैं कि वह अक्सर पंडारक पहुंच रंगकर्मियों की हौसला आफजाई भी करते थे. राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर, रामवृक्ष बेनीपुरी, गोपाल सिंह नेपाली, पंडित छविनाथ पांडेय तथा देवव्रत शास्त्री जैसे लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकारों ने भी अपनी रचनाओं एवं टिप्पणियों में पंडारक के हिन्दी रंगमंच के सृजनात्मक (Creative) पक्ष की प्रशंसा की है.

तांगे पर चढ़कर आये थे
कहा जाता है कि चौधरी रामप्रसाद शर्मा का रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar) से व्यक्तिगत मधुर संबंध था. यहां की नाट्य कला की चर्चा और प्रशंसा दूर-दूर तक पसरी हुई थी. अन्य की बात छोड़ दें, हिन्दुस्तानी थियेटर के आदर्श पुरुष रहे प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता पृथ्वीराज कपूर भी 1956 में पंडारक के हिन्दी नाटक समाज के मंच पर पधारे थे. राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के साथ बाढ़ से पंडारक तांगे पर सवार होकर आये थे. जानकारों के मुताबिक नाटकों के मंचन के सिलसिले में वह पटना आये हुए थे. अनुग्रह नारायण कालेज, बाढ़ के प्राचार्य ने भी उन्हें अपने यहां आमंत्रित किया था. बाढ़ में उन्हें पंडारक की समृद्ध नाट्य (Drama) परम्परा की जानकारी मिली. रामधारी सिंह दिनकर ने पंडारक चलने का अनुरोध किया, तो उसे वह ठुकरा नहीं पाये और उनके साथ वहां पहुंच गये.

साथ में शशिकपूर भी थे
पृथ्वीराज कपूर (Prithviraj Kapoor) के पुत्र फिल्म अभिनेता शशिकपूर और पृथ्वी आर्ट थियेटर के कई प्रमुख कलाकारों की मंडली भी साथ में थी. उस क्रम में पृथ्वीराज कपूर ने हिन्दी नाटक समाज की आगंतुक पुस्तिका में तत्कालीन रंगकर्मियों की नाट्य प्रतिभा की जमकर तारीफ की थी. गर्व की बात है कि हिन्दी नाटक समाज से जुड़े प्रेमशरण शर्मा, तनिक सिंह, संजय उपाध्याय तथा रमेश शर्मा लगभग 35 रंगकर्मियों के सहयोग से उसी तन्मयता व लगनशीलता से नाट्य परंपरा को जीवंत बनाये रखा, जिसकी बुनियाद पर यह संस्था अस्तित्व में आयी थी. इससे पटना की महिला रंगकर्मी अंजली शर्मा, शबाना आफरीन, गौतमी एवं ज्योर्तिमय श्रीवास्तव का भी जुड़ाव रहा.

नुक्कड़ नाटक का एक दृश्य.

बना ली अलग पहचान
पंडारक में ऐतिहासिक, धार्मिक और सामाजिक नाटकों का तो मंचन होता ही रहता है, आधुनिक शैली के नाटकों की प्रस्तुति से भी इसने अपनी एक अलग पहचान बना रखी है. विशेषकर 1977 में अस्तित्व में आयी नाट्य संस्था पुण्यार्क कला निकेतन ने. रंगमंच की विशिष्ट जानकारी रखनेवालों के मुताबिक स्थानीय स्तर पर इस क्षेत्र में लीक से अलग प्रयोग का मुख्य श्रेय इसी संस्था को जाता है. भिखारी ठाकुर (Bhikhari Thakur) के ‘गबर घिचोर’ और ‘विदेशिया’ के साथ-साथ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के प्रसिद्ध नाटक ‘बकरी’, हृषीकेश सुलभ के ‘अमली’, हबीब तनवीर के ‘चरण दास चोर’, विजय तेंदुलकर के ‘घासी राम कोतवाल’, डा. चतुर्भज के ‘कलिंग विजय’ जैसे मशहूर नाटकों का मंचन भी गांव के कलाकारों द्वारा किया गया है.

पुण्यार्क रंग सम्मान
पंडारक की कुछ नाट्य संस्थाओं ने राजधानी पटना (Patna) में विविध अवसरों पर आयोजित नाट्य महोत्सवों एवं अन्य कार्यक्रमों में भी अपनी प्रतिभा (Talent) का प्रदर्शन किया है. किरण कला निकेतन, पुण्यार्क कला निकेतन आदि को ऐसा सुअवसर प्राप्त होता रहता है. बहुचर्चित पटना पुस्तक मेला में नुक्कड़ नाटकों के प्रदर्शन का भी. बिहार (Bihar) के सौ साल पूरे होने के उपलक्ष्य में चयनित 18 नुक्कड़ नाट्य टीमों में एक पुण्यार्क कला निकेतन की टीम भी थी. इस संस्था का पटना रंगमंच से जुड़ाव है और यह हर साल उल्लेखनीय काम करनेवाले एक रंगकर्मी को पुण्यार्क रंग सम्मान से सम्मानित भी करती है. इसी तरह पंडारक में रंग यात्रा के सौ साल पूरे होने पर इसने 2014 में कई नये-पुराने रंगकर्मियों को ‘शताब्दी पुरस्कार’ से नवाजा था.


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पटना से भी आते हैं कलाकार
इसे विडम्बना ही कहेंगे कि एक से बढ़कर एक प्रतिभावान कलाकार रहने के बावजूद नाट्य प्रस्तुतियों को जीवंत बनाने के नाम पर पटना से कलाकार बुलाये-मंगाये जाते हैं. खासकर महिला कलाकारों को. वे वहां दो-चार दिन रहती हैं. रिहर्सल के बाद नाटकों का मंचन कर लौट जाती हैं. अक्सर ऐसा देखा जाता है कि सही ढंग से रिहर्सल नहीं होने के कारण वैसे कलाकारों का अभिनय छितराया हुआ नजर आता है. पटना रंगमंच की चर्चित अभिनेत्री नूर फातिमा यहां की नाट्य संस्था कला निकेतन से गहरे रूप से जुड़ी थीं. अन्य कई अभिनेत्रियां भी. यह हैरत की बात है कि एक सौ नौ वर्षीय नाट्य परंपरा के समुन्नत-समृद्ध रहने के बाद भी स्थानीय स्तर पर महिला कलाकार (Female Artist) नहीं उभर पा रही हैं. शायद सामाजिक विद्रुपताओं के कारण सार्वजनिक रूप से कला-प्रदर्शन का वे साहस नहीं जुटा पाती हैं.

प्रस्तुत किया आदर्श
घर का चौखट लांघना पारिवारिक आन, बान, शान के खिलाफ मानती हैं. यही मुख्य कारण है कि नाट्य संस्थाओं को पटना से महिला कलाकार ‘आयातित’ करना पड़ रहा है. 2015 में किरण कला निकेतन से जुड़े रहे कमलेश्वरी शर्मा के पुत्र रंगकर्मी अजय कुमार ने अपनी पुत्री सौम्या भारती उर्फ आरती को रंगमंच पर उतार अन्य के लिए आदर्श प्रस्तुत किया था. परन्तु, उसका भी कोई खास असर नहीं पड़ा. ऐसे में यह कहने में कोई हिचक नहीं कि इस मामले में यह गांव अब भी पिछड़ी मानसिकता (Backward Mentality) में जी रहा है.

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