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राजपाट और कायस्थ : गैर भाजपा दलों को नहीं मिलते वोट

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महेन्द्र दयाल श्रीवास्तव
06 अक्तूबर 2023

Patna : बहरहाल,सवाल इस पर भी उठ रहा है कि विधायक और विधान पार्षद का सुख वर्षों से कायस्थ समाज के कुछ खास नेताओं को ही उपलब्ध कराया जा रहा है. नयी प्रतिभा कुंठित है. हालांकि, वोट के मामले में यह कोई मायने नहीं रखता. जातीय भावनाओं को परे रख कायस्थ समाज भाजपा के प्रति लगभग ‘समर्पित’ है. इसे इस रूप में आसानी से समझा जा सकता है कि चुनावों में अन्य राजनीतिक दलों के भी कायस्थ उम्मीदवार मैदान में उतरते हैं. आमतौर पर जाति (Caste) के नाम पर उन्हें वोट नहीं मिलते. यहां तक कि 2019 के संसदीय चुनाव में कांग्रेस (Congress) के उम्मीदवार रहे भाजपा (BJP) के बागी पूर्व केन्द्रीय मंत्री शत्रुघ्न सिन्हा और 2020 के विधानसभा चुनाव में उनके पुत्र लव सिन्हा को भी नहीं मिले.

उदाहरण अनेक हैं
पूर्व में ऐसा ही कुछ कांग्रेस प्रत्याशी शेखर सुमन और जद(यू) उम्मीदवार डा. गोपाल प्रसाद सिन्हा के साथ हुआ था. वृहताकार जातीय संगठन चलाने वाले और कायस्थों के राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक सशक्तीकरण की विश्वस्तरीय मुहिम में जुटे जद(यू) के प्रदेश प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद और राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद (Lalu Prasad) के खासमखास उम्मीदवार विनोद कुमार श्रीवास्तव को भी ऐसे ही हालात से रू-ब-रू होना पड़ा. इस तरह के उदाहरण और भी कई हैं.

जदयू ने भी नजरंदाज कर दिया
जातीय आंकड़ों की जानकारी रखने वालों के दावों में कायस्थों की आबादी लगभग दो फीसदी है. राज्य सरकार द्वारा करायी गयी जाति आधारित गणना (Caste Based Calculation) में इसकी जनसंख्या एक प्रतिशत से भी काफी कम 0.60 प्रतिशत है. 2020 के विधानसभा चुनाव में राजद समेत अन्य बड़े दलों ने कायस्थों को तवज्जो नहीं दी. इतनी छोटी जनसंख्या के बाद तो और भी नहीं देगी. पूर्व में राजद (RJD) कायस्थ के नाम पर ले-देकर संसदीय (Parliamentary) और विधानसभा (Assembly) के चुनावों में विनोद कुमार श्रीवास्तव पर दांव खेलता था. 2020 में उन्हें भी नजरंदाज कर दिया . हार-जीत अपनी जगह है, कांग्रेस खानापूरी अवश्य करती है. लेकिन, गौर करने वाली बात यह है कि कभी-कभार ‘मेहरबानी’ दिखाने वाले जद(यू) ने भी कायस्थों को उम्मीदवारी से पूरी तरह वंचित कर दिया.


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रह गये सिर्फ एक नेता
पूर्व में इसने उत्तरप्रदेश निवासी पवन वर्मा को राज्यसभा और रणवीर नंदन को विधान परिषद की सदस्यता दिलायी थी. उसके बाद ऊपरी सदन की सदस्यता के मामले में इसने भी हाथ बांध लिये. और की बात छोड़ दें, प्रवक्ता की जिम्मेवारी बखूबी निभाने वाले शंभुशरण श्रीवास्तव को भी अपेक्षित सम्मान नहीं मिला. खिन्न होकर वह जद(यू) से अलग हो गये. रणवीर नंदन, राजीव रंजन प्रसाद, अजय आलोक और सुमन कुमार मल्लिक भी दूर हो गये. ले-देकर राजीव रंजन प्रसाद ही एकमात्र सक्षम-समर्थ कायस्थ नेता हैं जो हर परिस्थिति में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के प्रति निष्ठावान दिखते हैं. लेकिन, एकाध अपवादों को छोड़ नीतीश कुमार ने कभी किसी को उभरने का बेहतर अवसर उपलब्ध नहीं कराया.

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