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पढ़ाई नहीं तो फीस क्यों? गर्म है स्कूलों की मनमानी का यह मुद्दा

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डा. कौशल किशोर कौशिक
03 अगस्त, 2021

पटना. कोरोना के कारण बिहार के तमाम सरकारी एवं निजी स्कूलों में तकरीबन 18 माह से पठन-पाठन पूरी तरह ठप है. सरकारी विद्यालयों की व्यवस्था कुछ अलग है. निजी विद्यालयों में बच्चों की पढ़ाई, फीस भुगतान के रूप में अभिभावकों की कमाई और शिक्षकों की आजीविका बुरी तरह प्रभावित हुई है. कुछ स्कूलों में आॅनलाइन पढ़ाई हो रही है. इससे कितना ज्ञान मिल रहा होगा यह छात्रों एवं अभिभावकों से ज्यादा कौन बता सकता है. थोड़ा बहुत आनलाइन क्लास लेने वाले शिक्षकों को भी इसका अनुभव है. जमीनी हकीकत यह है कि कोरोना संकट की आड़ में अधिकतर स्कूलों में शिक्षकों की छंटनी हो गयी है. जिन्हें जोड़कर रखा गया है उनमें से अनेक के वेतन एवं दूसरी सुविधाओं में कटौती कर दी गयी है. जिन्दगी दुरुह इन सबकी हो गयी है और आर्थिक संकट का रोना निजी स्कूलों के संचालक रो रहे हैं. ऐसा संकट जरूर है, परन्तु वैसे स्कूलों के समक्ष जिनकी साख अपेक्षाकृत कम जमी हुई है. छात्रों की संख्या कम रहती है. इसके बरक्स उन स्कूलों के लिए कोरोना काल तिजोरियों के आकार बढ़ाने वाला साबित हो रहा है जिनकी अभिभावकों में बहुत बड़ी साख है. नामांकन के लिए छात्रों एवं अभिभावकों की कतार लगी रहती है. बड़ी मुश्किल से नामांकन हो पाता है. वैसे, संचालक कोरोना संक्रमण जनित संकटकाल में भी अभिभावकों के आर्थिक दोहन में नरमी नहीं बरत रहे हैं. प्रत्यक्ष पढ़ाई नहीं होने के बाद भी शिक्षण शुल्क की वसूली पर रोक के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया गया. उसका भी कोई असर होता नहीं दिख रहा. इस मामले में छात्रों एवं अभिभावकों को किसी भी रूप में रियायत नहीं मिल रही है. संपन्न अभिभावकों के लिए यह बड़ा मुद्दा नहीं बनता, पर पेट काटकर जो अभिभावक अपनी संतानों को अच्छे स्कूलों में पढ़ा रहे हैं उन पर तो मुसीबतों का पहाड़ ही टूटा हुआ है.

सामाजिक कार्यकर्ता रजनीकांत पाठक इस मामले को पटना उच्च न्यायालय में ले गये. 28 जून 2021 को उनकी ओर से याचिका दायर की गयी. रजनीकांत पाठक के मुताबिक स्कूलों की ओर से शिक्षा के नाम पर आनलाइन शिक्षा दी जा रही है. वह भी नियमित रूप से नहीं. जबकि फीस वसूली नियमित रूप से हो रही है. ट्यूशन फीस की मोटी रकम के अलावा टर्म फीस, स्मार्ट क्लास फीस, डेवलपमेंट फीस, एक्टीविटी फीस, ई-केयर फीस, एग्जाम फीस, लाइब्रेरी फीस, कम्प्यूटर फीस, जेनरेटर चार्ज फीस, बिल्डिंग मेंटनेंस फीस, डायरी कार्ड फीस, स्टेबलिसमेंट फीस, जिम/स्पोर्टस फीस आदि के रूप में भी बड़ी रकम ली जा रही है. सवाल उठाया गया है कि जब बच्चे स्कूल जा ही नहीं रहे हैं, सुविधाओं का लाभ नहीं ले रहे हैं, तो फिर इस प्रकार की फीस की वसूली का क्या मतलब है? रजनीकांत पाठक की याचिका पर 5 जुलाई 2021 को पटना उच्च न्यायालय का फैसला आया. अदालत ने मामले को जिलाधिकारी के हवाले करते हुए आदेश दिया कि इस मसले का निराकरण तीन माह के अंदर कर देना है. याचिकाकर्ता को चार माह के अंदर जिलाधिकारी को तत्संबंधी आवेदन देने को निर्देशित किया गया था. रजनीकांत पाठक ने 9 जुलाई 2021 को पटना के जिलाधिकारी को आवेदन दिया. शायद अभी तक उस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है. वैसे, इसके लिए अभी समय है. अदालत ने स्पष्ट कह रखा है कि तीन माह के अंदर निराकरण नहीं होने पर याचिकाकर्ता पुनः उच्च न्यायालय की ओर रुख कर सकते हैं. यह मामला सिर्फ पटना का ही नहीं है.पूरे राज्य का है. दूसरे जिलों में किसी ने रजनीकांत पाठक जैसी पहल की भी है इसकी कोई जानकारी नहीं है.

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