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चोपड़ा, धोनी, तेंदुलकर नाम की जर्सियां क्यों?

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कुमार दिनेश

08 अगस्त, 2021

 

वाराणसी.अफगानिस्तान में फोटोग्राफर दानिश सिद्दिकी को क्रूरता के साथ मारने वाले इस्लामी तालिबानी आतंकियों ने सिद्दिकी की भारतीय पहचान सुनिश्चित कर ली थी. इधर, भारत में हम उसे मुसलमान के रूप में देखते हुए फोटोग्राफर की हत्या पर अपनी-अपनी प्रतिक्रियाओं से सोशल मीडिया को पाट रहे थे. टोक्यो ओलंपिक में जब भारत के नीरज चोपड़ा ने भाला फेंकने में स्वर्ण पदक जीतने का कीर्तिमान रचा, तब फिर स्वदेश में हमारा जाति-धर्म में बंटा विद्रूप चेहरा सोशल मीडिया पर उभरने लगा. एक बसपाई पत्रकार ने लिखा – ‘सवर्ण ने जीता स्वर्ण.’ इससे पहले कांस्य जीतने वाली पीवी संधू की जाति जानने के लिए हम भारतीय सबसे ज्यादा व्याकुल होकर गूगल सर्च कर रहे थे. इससे पहले एक पहली श्रेणी का क्रिकेटर अपने ब्राह्मण होने पर और दूसरा क्षत्रिय होने पर गर्व कर रहा था. जब महिला हाकी टीम पदक से चूक गयी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र

टोक्यो ओलंपिक की भारतीय हाॅकी टीम.

मोदी सहित सारा देश बेटियों का हौसला बढ़ा रहा था, तब कुछ एजेंडेबाज टीम की केवल मुस्लिम खिलाड़ी की शान में कसीदे पढ़ने लगे थे. कुछ नहीं तो भारतीय महिला हाॅकी टीम के विदेशी कोच शोर्ड मारिन की फोटो लगाकर उनमें शाहरुख खान ( ‘चक दे इंडिया’ फिल्म में कोच का किरदार निभाने वाले अभिनेता) के दर्शन करने लगे. खेलों में राजनीति हमारी आदत नहीं, स्वभाव बन चुका है. इसीलिए हमसे कई मामलों में छोटे देश जापान, इटली, नीदरलैंड भी कम से कम 10 स्वर्ण पदक और औसतन 30-40 पदक जीत ले जाते हैं. जिस समय टोक्यो ओलम्पिक चल रहा है, उस समय हमारे देश की मुख्यधारा की राजनीति में जातिवादी खुजली की खाज बढ़ रही है. बिहार से जातीय जनगणना की मांग की हवा तेज की जा रही है. नीतीश कुमार, लालू प्रसाद , मुलायम सिंह यादव, मायावती -सब करीब आ रहे हैं. फिर खेलों पर लौटें. ६ अगस्त, 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सर्वोच्च खेल पुरस्कार (राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार) से पूर्व प्रधानमंत्री का नाम हटा कर हाॅकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की स्मृति से जोड़ दिया. आम तौर पर इसकी सराहना हुई. खिलाड़ी समुदाय बहुत दिनों से इसकी मांग कर रहा था. यह नाम परिवर्तन अधिक पवित्र होता यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने जीवनकाल और कार्यकाल में  खुद अपने नाम पर गुजरात के एक बड़े क्रिकेट स्टेडियम का नामकरण न होने दिया होता. वैसे ही, जैसे अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री रहते स्वयं भारत रत्न लेने की कांग्रेस-संस्कृति को झटका दिया था. नरेन्द्र मोदी ने ध्यानचंद के सम्मान में खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदल कर जो शुरुआत की है, उसे यहीं नहीं रुकना चाहिए. देश भर में नेताओं या गैर-खिलाड़ियों के नाम पर स्टेडियम हैं, उन सबके नाम अगले गणतंत्र दिवस तक बदल दिये जाने चाहिए. यदि एक जगह से राजीव गांधी का नाम हटा तो दूसरी जगह सम्पूर्णानन्द, जगजीवन राम और अरुण जेटली का नाम क्यों रहे?… और फिर यदि खेलों में जातिवाद से घिन आ रही है, तो खिलाड़ियों की जर्सी पर चोपड़ा, धोनी, कोहली, तेंदुलकर, गांगुली लिखने की परिपाटी क्यों नहीं बंद होनी चाहिए? क्यों नहीं इंडिया के साथ खिलाड़ियों के केवल नाम ( बिना सरनेम के) लिखे जायें? मोदी जी, सरनेम को फिलहाल खेलों से तो बाहर करिये. जातीय जनगणना कराना कल भाजपा की राजनीतिक मजबूरी हो सकती है, लेकिन खेलों को तो इससे मुक्त रखिये.

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