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चौंकिये नहीं … यह तो उनके खून में है!

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डा. के. के. कौशिक
04 अप्रैल 2024

Muzaffarpur : भारतीय राजनीति के लिए दलबदल अब कोई बड़ा मुद्दा नहीं रह गया है. बल्कि यह कहें कि चुनावी राजनीति और रणनीति का यह सर्व स्वीकार्य हिस्सा बन गया है, तो वह कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. अब तो चुनावों में शह और मात की शुरुआत अमूमन इसी रूप में होती है. इसमें निष्ठा, नीति और नैतिकता का कोई मतलब व महत्व नहीं होता. चुनावों में नफा-नुकसान के अनुमान के आधार पर समर्पित व निष्ठावान नेताओं-कार्यकर्ताओं के हितों की बलि चढ़ा दलबदलुओं को तरजीह देने की एक परिपाटी-सी चल पड़ी है. लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए यह बेहद खतरनाक है, पर फिक्र किसी को नहीं है. फिक्र हो भी क्यों? सिर्फ स्वार्थ के लिए दलीय निष्ठा और आस्था से खिलवाड़ की इस प्रवृत्ति में सभी दलों के हित निहित हैं. उनकी सत्ता की कामना के सामने नीति- अनीति व आचार- विचार कोई मायने नहीं रखते.

एक ही दिन में तीन बार …
ऐसा नहीं, तो दलबदल के मामले में दिवंगत पूर्व सांसद कैप्टन जयनारायण निषाद (Jainarayan Nishad) को ‘इतिहास पुरुष’ बनने का अवसर शायद ही‌ मिल पाता. उसी ‘इतिहास पुरुष’‌ के पुत्र हैं सांसद अजय निषाद (Ajay Nishad), जो इसी मंगलवार को भाजपा (BJP) के शामियाने से कमंडल उठा कांग्रेस (Congress) में शामिल हो गये हैं. बहुत पुरानी कहावत है- बापे पूत परापत घोड़ा कुछ नहीं तो थोड़म थोड़ा. भावार्थ यह कि पुत्र का स्वभाव-विचार लाख अलग हो, पिता के कुछ गुण उसमें अवश्य मिलते हैं. अजय निषाद इसके अपवाद नहीं हैं. पहले उनके पिता कैप्टन जयनारायण निषाद के राजनीतिक (Political) चरित्र की बात करते हैं. यह कोई छिपा रहस्य नहीं है कि‌ प्रायः हर चुनाव में दल बदल लेना उनकी फितरत में शुमार था. जानकारों की मानें तो एक ही दिन में तीन बार दल बदलने का रिकॉर्ड उन्हीं के नाम दर्ज है. वाम दलों को छोड़ करीब-करीब हर दल में उन्होंने अपना आसन जमाया था. वैसे, आमतौर पर कांग्रेस, राजद, जदयू और भाजपा में घूमते रहे. चार बार सांसद निर्वाचित हुए. एकाध बार अपनी खुद की पार्टी भी बनायी.

अजय निषाद का स्वागत करते डा. अखिलेश प्रसाद सिंह.

तब उतार देते भगवा चोला
चुनावी राजनीति में थक-हार गये तब 2014 में विरासत पुत्र अजय निषाद को सौंप दी. ‘अखंड मोदी भक्ति’ के सुफल के रूप में मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur) से भाजपा की उम्मीदवारी मिली और अजय निषाद 2014 में सांसद निर्वाचित हो गये. 2019 के संसदीय चुनाव‌ से कुछ माह पहले कैप्टन जयनारायण निषाद का निधन हो गया. विश्लेषकों का मानना है कि वैसा नहीं हुआ होता तो अजय निषाद को 2019 में ही भाजपा की उम्मीदवारी नहीं मिलती और वह भगवा चोला उतार किसी दूसरे दल का‌ उम्मीदवार (Candidate) बन जाते. जैसे इस बार भाजपा ने उन्हें ‘दुत्कार’ राजभूषण चौधरी (Rajbhushan Chaudhary) को उम्मीदवार बना दिया तो दलीय पगहा तोड़ कांग्रेस से बंध गये हैं.

किया‌ था ‘हवन-यज्ञ’‌
विडम्बना देखिये, कैप्टन जयनारायण निषाद ने 2014 में नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) को सत्ता में लाने के लिए अपने आवास पर ‘हवन-यज्ञ’‌ किया‌ था, दस साल बाद पुत्र अजय ‌निषाद उन्हें सत्ता से बाहर करने की मुहिम में शामिल हो गये हैं. परिणति क्या‌ होती है, यह भविष्य के गर्भ में है, गुस्सा उन्हें इस वजह से भी आया कि 2019 में विकासशील इंसान पार्टी के उम्मीदवार रहे इसी राजभूषण चौधरी को उन्होंने चार लाख से अधिक मतों से हराया था. इसका तनिक भी ख्याल नहीं रखा‌ गया. पराजित को उम्मीदवार बना विजेता को दूध की मक्खी की माफिक फेंक दिया गया.


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नाइंसाफी तब भी हुई थी!


भाजपा से हुई थी शुरुआत
अजय निषाद के राजनीतिक जीवन की शुरुआत भाजपा से हुई थी. पिता कैप्टन जयनारायण निषाद की सियासी सौदेबाजी के तहत‌‌ फरवरी 2005 में भाजपा नेतृत्व ने क्षेत्रीय दावेदारों को दरकिनार कर अजय निषाद को साहेबगंज से उम्मीदवार बना‌ दिया था‌. भाजपा के वर्तमान विधायक राजू कुमार सिंह राजू (Raju Kumar Singh Raju) तब लोजपा के उम्मीदवार थे. जीत उन्हीं की हुई थी. अजय निषाद 11 हजार 637 मतों में सिमट तीसरे स्थान पर अटक गये थे. उस चुनाव (Election) में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिलने की वजह से विधानसभा गठित नहीं हो पायी.

पिता से मिला ‘बीज मंत्र’
अक्तूबर 2005 में दोबारा चुनाव हुआ. राजू कुमार सिंह राजू लोजपा (LJP) छोड़कर जदयू‌ (JDU) में शामिल हो गये थे. राजग में साहेबगंज (Sahebganj) की सीट जदयू के हिस्से में गयी. उम्मीदवारी राजू कुमार सिंह राजू को मिल गयी. अजय निषाद हाशिये पर धकेल दिये गये. पर, पिता कैप्टन जयनारायण निषाद ने उन्हें दर्शक दीर्घा में बैठने नहीं दिया. मल्लाह मतों की बहुलता वाले कुढ़नी (Kurhani) विधानसभा क्षेत्र से राजद की उम्मीदवारी दिलवा‌‌ दी. पर , दुर्भाग्य का पीछा नहीं छूटा. कुढ़नी में भी हार का मुंह देखना पड़ गया. इससे स्पष्ट होता है कि अजय निषाद‌ को दलबदल का‌ ‘बीज मंत्र’ अपने‌ पिता से मिला.

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