फातमी की है यह फितरत! घर वापसी आखिर, कितनी बार?
शिवकुमार राय
02 अप्रैल 2024
Darbhanga : यह कहें कि बिल्कुल नीतीश कुमार (Nitish Kumar) जैसा ही अविश्वसनीय राजनीतिक चरित्र है पूर्व केन्द्रीय मंत्री अली अशरफ फातमी (Ali Ashraf Fatami) का. तो वह कोई गलत बात नहीं होगी. कोसने और कुछ ही समय बाद प्रशंसा के पुल बांधने की नीतीश कुमार की बाजीगरी भाजपा (BJP) और राजद (RJD) के साथ चलती रहती है तो अली अशरफ फातमी की राजद और जदयू (JDU) के साथ. वह सत्ता की सलामती के लिए पलटते हैं, तो यह खुद के लिए संसदीय और पुत्र के लिए विधानसभा की एक अदद सीट के लिए इस डाल से उस डाल पर छलांग लगा लेते हैं. नीतीश कुमार के पलटने से सत्ता और सियासत का स्वरूप बदल जाता है, इनके पलटने से किसी की भी राजनीति पर कोई फर्क नहीं पड़ता है.
कोई नफा नुकसान नहीं
नीतीश कुमार पिछली बार जनवरी 2024 में पलटे थे. अली अशरफ फातमी अभी-अभी पलटे हैं. जदयू से अलग हो राजद में शामिल हुए हैं. निर्लज्जता ऐसी कि बड़े गर्व के साथ दलबदल को ‘घर वापसी’ बता रहे हैं. सामान्य समझ है कि खुद को वह भले भारी भरकम मुस्लिम नेता मानते हों, उनके जुड़ने और फिर अलग हो जाने से न राजद को कोई नफा-नुकसान होता है और न जदयू को. विश्लेषकों का मानना है कि इस बार भी उससे अलग कुछ नहीं होना है. तात्कालिक तौर पर जदयू को झटका जरूर लगा है, लेकिन इससे उसकी राजनीति (Politics) को कोई नुकसान होगा वैसा नहीं दिखता है. कारण कि अली अशरफ फातमी की पहचान उदार मुसलमान नेता की नहीं है. जनाधार भी केवटी (Keoti) विधानसभा क्षेत्र के मुस्लिम बहुल इलाकों तक ही सिमटा हुआ है.
मुंह ताकते रह गये
जदयू महागठबंधन में था, तो दरभंगा (Darbhanga) से उम्मीदवारी को लेकर अली अशरफ फातमी की सींगें तत्कालीन जल संसाधन मंत्री संजय झा (Sanjay Jha) से फंस गयी थीं. जदयू की बैठकों में शक्ति प्रदर्शन भी होने लगा था. विवाद सलटाने के लिए नीतीश कुमार ने संजय झा को उम्मीदवारी और अली अशरफ फातमी को राज्यसभा की सदस्यता का आश्वासन दिया था. इस बीच जदयू के महागठबंधन से अलग होते ही दरभंगा की झंझट खुद-ब-खुद खत्म हो गयी. सीट भाजपा के हिस्से में रह गयी. संजय झा को राज्यसभा की सदस्यता मिल गयी. अली अशरफ फातमी मुंह ताकते रह गये. वैसे में चुनावी संभावना संवारने के लिए जदयू छोड़ राजद से जुड़ने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं था, उससे जुड़ गये.
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तब ज्यादा तकलीफ नहीं होती
अब अतीत की बात. अली अशरफ फातमी के राजनीतिक (Political) जीवन पर नजर डालें, तो 1990 के बाद 2019 के संसदीय चुनाव (Election) से पहले तक दरभंगा से लालू प्रसाद (Lalu Prasad) की पार्टी (पहले जनता दल और बाद में राष्ट्रीय जनता दल) का उम्मीदवार हुआ करते थे. कई बार निर्वाचित हुए. कई बार पराजय का भी मुंह देखना पड़ा. 2014 की हार के बाद दरभंगा को छोड़ वह मधुबनी (Madhubani) की ओर मुखातिब हो गये. राजद के उम्मीदवार के तौर पर 2019 का संसदीय चुनाव उसी क्षेत्र से लड़ने की तैयारी में थे. लेकिन, महागठबंधन की विवशता की वजह से राजद नेतृत्व उन्हें अवसर नहीं उपलब्ध करा पाया. सिर्फ इतना ही होता तो ज्यादा तकलीफ नहीं होती, उनके धुर विरोधी अब्दुल बारी सिद्दीकी (Abdulbari Sidiki) को दरभंगा से राजद की उम्मीदवारी मिल गयी. अली अशरफ फातमी इसे पचा नहीं पाये और राजद से अलग हो गये. फिर अगस्त 2020 में जद(यू) में शामिल हो गये.
यही है उनका संक्षिप्त इतिहास
राजनीति के लिए यह हैरान करने वाली कोई बात नहीं थी. इसलिए कि ऐसा ही कुछ उन्होंने 2014 के संसदीय चुनाव के बाद किया था. उस चुनाव में अपनी हार के लिए अब्दुल बारी सिद्दीकी और उनके समर्थकों पर सीधा दोषारोपण किया था. चुनाव के कुछ माह बाद राजद से अलग भी हो गये थे. पर, दूसरे किसी दल का दामन नहीं पकड़ा था. तब यह चर्चा पसरी थी कि राज्यसभा की उम्मीदवारी नहीं मिलने के खुन्नस में उन्होंने वैसा किया था. 2015 के विधानसभा चुनाव में पुत्र डा. फराज फातमी (Dr Faraz Fatami) को केवटी से उम्मीदवारी मिली और शांत हो अली अशरफ फातमी राजद में लौट गये. तो यही है उनका जुड़ने और अलग होने का संक्षिप्त इतिहास.
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