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जातीय गणना: बड़ा खुलासा

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महेश कुमार सिन्हा
02 मई 2024
Patna : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और राजद के अघोषित सुप्रीमो तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejashwi Prasad Yadav) जाति आधारित गणना (caste based calculation) का ढोल पीटते थकते नहीं हैं.पहले साथ- साथ पीटते थे, अब अलग -अलग पीट रहे हैं. इधर उसके आंकड़ों को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है. यह खुलासा पक्ष या विपक्ष के किसी नेता ने नहीं किया है, संबंधित कागजात को सही मानें, तो जाने – अनजाने सरकार के स्तर से ही ऐसा हो गया है. इसकी व्याख्या अब जिस रूप में हो, सरकार का स्पष्टीकरण जो आये, इससे जातीय आंकड़ों  के बनावटी होने के आरोपों को मजबूती मिल ही गयी है.

हो रही पुष्टि आरोपों की
गौरतलब है कि 2023 में जब इन आंकड़ों को सार्वजनिक किया गया था तब विपक्ष में रहे सम्राट चौधरी,  विजय कुमार सिन्हा, जीतनराम मांझी, उपेन्द्र कुशवाहा आदि ने इसे फर्जी करार दिया था. कागज पर गढ़ा बताया था. सामान्य प्रशासन विभाग के उक्त पत्र से उन आरोपों की पुष्टि होती दिख रही है. जातीय आंकड़ों का यह रहस्य कैसे खुला, विस्तार से बताते हैं.मदारीपुर कर्ण गांव के हैं चर्चित आरटीआई कार्यकर्ता अमरेन्द्र कुमार. यह गांव मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur) जिले के मीनापुर प्रखण्ड क्षेत्र में है. सूचना के अधिकार का इस्तेमाल कर अमरेन्द्र कुमार () सरकारी कार्यालयों के भ्रष्टाचार को उजागर करते रहते हैं.

मिल गया चौंकाऊ जवाब
मकसद क्या था नहीं मालूम. 19 मार्च 2024 को उन्होंने सामान्य प्रशासन विभाग (General Administration Department) से 2022 में हुई जाति आधारित गणना की पंचायतवार और जिलावार जातीय आंकड़ों की जानकारी मांग ली. पर, वैसी कोई जानकारी उन्हें मिली नहीं. 18 अप्रैल 2024 की तारीख में सामान्य प्रशासन विभाग के लोक सूचना पदाधिकारी -सह-सरकार के उपसचिव मिन्हाज अख्तर (minhaj akhtar) द्वारा भेजा गया चौंकाऊ जवाब अवश्य मिल गया. संबंधित पत्र में कहा गया है … ‘बिहार जाति आधारित गणना 2022 से संबंधित आंकड़ों को सम्प्रति जिलावार एवं पंचायतवार संकलित नहीं किया गया है.’

सिर्फ खानापूर्ति हुई
लोक सूचना पदाधिकारी (Public Information Officer) द्वारा उपलब्ध करायी गयी इस सूचना का क्या अर्थ निकलता है? जब पंचायतवार, प्रखंडवार व जिलावार जातीय आंकड़े संकलित नहीं हैं तो फिर राज्यवार (state wise) आंकड़े कहां से और कैसे आ गये? क्या संपूर्ण बिहार के आंकड़े राज्य मुख्यालय में ही संकलित किये गये थे? बिहार की जनता इन प्रश्नों का जवाब चाहेगी. बहरहाल, लोक सूचना पदाधिकारी द्वारा दी गयी सूचना से इस संदेह को बल मिल रहा है कि जमीनी गणना की सिर्फ खानापूर्ति हुई. पटना में बैठे- बैठे पूर्व के सामाजिक सर्वेक्षणों और अनुमानों के आधार पर जातीय आंकड़े खड़ा कर दिये गये.


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माना जायेगा विधि सम्मत
अब सवाल यह उठता है कि लोक सूचना पदाधिकारी की बातें यदि सही हैं तो फिर इन आंकड़ों के आधार पर बढ़ाये गये आरक्षण के दायरे को विधि सम्मत माना जायेगा? राज्य सरकार ने दावा किया था कि जाति आधारित गणना के साथ आर्थिक सर्वेक्षण भी कराया गया है. उसके प्रतिवेदन के आधार पर छह हजार की मासिक आय वाले तमाम गरीब परिवारों को रोजगार शुरू करने के लिए बिहार लघु उद्यमी योजना (Bihar Small Entrepreneur Scheme) के तहत दो – दो लाख रुपये उपलब्ध कराने की घोषणा की गयी थी. दो- चार हजार गरीब परिवारों को नहीं, तकरीबन 97 लाख गरीब परिवारों को. योजना की शुरुआत हो चुकी है.

अदालत में ले जायेंगे
पर, उक्त खुलासे के बाद सवाल यह खड़ा हो गया है कि लोक सूचना पदाधिकारी द्वारा दी गयी जानकारी के मुताबिक जब पंचायतवार (panchayat wise) और जिलावार (district wise) आंकड़ा संकलित नहीं है तो फिर लाभुक गरीब परिवारों का चयन किस आधार पर हुआ? कहीं कोई फर्जीवाड़ा (fraud) तो नहीं हो रहा है? तापमान लाइव ने राजद की राजनीति से जुड़े आरटीआई कार्यकर्ता अमरेन्द्र कुमार से बातचीत की. उनका कहना रहा कि इस मुद्दे को वह अब अदालत (court) में ले जायेंगे. देखिये, आगे क्या होता है.

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