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समस्तीपुर का संदेश … चढ़ जायेगी बलि!

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विकास कुमार
09 मई 2024

Samastipur : काफी दिलचस्प मुकाबला है समस्तीपुर में. बिहार (Bihar) के लिए यह संभवतः पहला अनुभव है. दो मंत्रियों की संतानें एक ही निर्वाचन क्षेत्र में दो अलग-अलग दल के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रही हैं. एक‌ तरह से कहें तो अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव (Election) दोनों मंत्री लड़ रहे हैं. एक एनडीए (NDA) की तरफ से तो दूसरे महागठबंधन की तरफ से ! ऐसे में सरकार के मुखिया की मन:स्थिति कैसी होगी, इसकी कल्पना कीजिये.

दोनों मंत्री जदयू के हैं
अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित समस्तीपुर संसदीय क्षेत्र में इस बार चुनाव दो मोर्चे पर लड़ा जा रहा है. एक मोर्चे पर लोजपा-आर और कांग्रेस (Congress) के उम्मीदवार लड़ रहे हैं, तो दूसरे पर नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के दो मंत्री बाना भांज रहे है. एक खुले रूप में तो दूसरे छिपे रूप में. दिलचस्प बात यह कि दोनों जदयू के हैं.सामान्य समझ में उनकी इस भिड़ंत से जदयू (JDU) की भद पीट रही है. सहयोगी भाजपा (BJP) की नजरें भी नीची हैं. दूसरी तरफ जदयू में लफड़ा फंसा कांग्रेस और राजद‌ के रणनीतिकार आनंदित हैं. ऐसा स्वाभाविक है.

खटक रहा जदयू को
समस्तीपुर के मुकाबले से भाजपा या जदयू का सीधा जुड़ाव नहीं है. इसके बाद भी नीतीश कुमार की नाक फंसी हुई है. इस रूप में कि लोजपा-आर की उम्मीदवार शांभवी चौधरी‌ (Shambhavi Chaudhary) ग्रामीण कार्य मंत्री अशोक चौधरी (Ashok Chaudhary) की पुत्री हैं, तो महागठबंधन के कांग्रेस उम्मीदवार सन्नी हजारी सूचना एवं जन-सम्पर्क मंत्री महेश्वर हजारी (Maheshwar Hazari) के पुत्र हैं. अशोक चौधरी की पुत्री के एनडीए के दूसरे घटक दल के प्रत्याशी रहने से जदयू में असहजता जैसी स्थिति नहीं है. महेश्वर हजारी के पुत्र के कांग्रेस का उम्मीदवार बन जाना उसे खटक रहा है.

नीतीश कुमार की चेतावनी
वैसे, महेश्वर हजारी पुत्र के निर्णय से खुद को अलग बता जदयू के प्रति निष्ठा अखंड रहने की बात दुहरा-तिहरा रहे हैं. पर, ऐसा माना जा रहा है कि पार्टी नेतृत्व का भरोसा उन पर जम नहीं रहा है. समस्तीपुर की चुनावी सभा में नीतीश कुमार की अप्रत्यक्ष चेतावनी को इसी नजरिये से देखा जा रहा है. इसके मद्देनजर चुनाव बाद मंत्री-पद पर गाज गिरने की आशंका बड़ा आकार ले रही है. शांभवी चौधरी अवकाश प्राप्त आईपीएस अधिकारी आचार्य किशोर कुणाल (Kishor Kunal) की पुत्रवधू हैं.

दोनों हैं नये चेहरे
मुख्य मुकाबले के दोनों उम्मीदवार नये चेहरे हैं. पहली बार मैदान में उतरे हैं. सीधे तौर पर उनके खिलाफ कोई शिकवा-शिकायत नहीं है. सन्नी हजारी (Sanny Hazari) समस्तीपुर जिले के खानपुर के प्रखंड प्रमुख हैं. उनके कार्यकलापों से स्थानीय लोगों में कुछ असंतोष हो सकता है, शांभवी चौधरी के साथ ऐसा कुछ नहीं है. स्थानीय बनाम बाहरी का‌ मुद्दा उछाल उन्हें घेरने की कोशिश अवश्य हो रही है, पर ज्यादा कामयाबी मिलती नहीं दिख रही है. इसलिए भी नहीं कि यह कोई पहला प्रयोग नहीं है.


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चर्चाएं खूब होती हैं‌
सत्ता विरोधी रूझान और एनडीए समर्थकों के एक तबके में नीतीश कुमार के प्रति नाराजगी से उन शांभवी चौधरी को जूझना जरूर पड़ रहा है. इस क्रम में एनडीए समर्थक समस्तीपुर नगर निगम के महापौर पद के चुनाव की बात करने से नहीं चूक रहे हैं. उस चुनाव में महेश्वर हजारी की पत्नी और सन्नी हजारी की मां संध्या हजारी (Sandhaya Hazari) उम्मीदवार थीं. तीसरे स्थान पर अटक गयी थीं. चर्चाएं स्थानीय बनाम बाहरी, महंगाई, बेरोजगारी और विकास की होती हैं. रोजगार की भी.

जाति बन जाती है मुद्दा
आमतौर पर ये मुद्दे महागठबंधन समर्थक मुंह से ही मुखरित हो रहे हैं. विशेष कर राजद समर्थक मुंह से. अन्य को कभी खत्म नहीं होने वाले ये मुद्दे उद्वेलित नहीं कर रहे हैं. वैसे भी जन सरोकारों से जुड़े मुद्दे नेताओं के भाषणों और समर्थकों की बातों में ही सिमट कर रह जाते हैं. मतदान केंद्रों पर जाति मुख्य मुद्दा बन जाती है. समस्तीपुर में इससे कुछ अलग होगा, ऐसा मानना नासमझी होगी. 2019 में लोजपा उम्मीदवार रामचंद्र पासवान की 02 लाख 51 हजार 643 मतों के भारी अंतर से जीत हुई थी.

वैसे ही हैं हालात
चुनाव के कुछ ही माह बाद रामचंद्र पासवान (Ramchandra Paswan) का निधन हो गया. उपचुनाव में उनके पुत्र प्रिंस राज (Prince Raj) की जीत तो हुई, पर मतों का अंतर 01 लाख 02 हजार 290 पर लुढ़क गया. थोड़ा-बहुत उलटफेर के साथ इस बार के चुनाव में भी समस्तीपुर संसदीय क्षेत्र के राजनीतिक एवं सामाजिक हालात करीब-करीब 2019 जैसे ही हैं. इसके मद्देनजर यह कहा जा सकता है जो लोग ज्यादा उत्साहित हैं‌, उन्हें निराशा का सामना करना पड़ जा सकता है.

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