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मुस्लिम सियासत : जायेंगे कहां?

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विकास कुमार
20 मई 2024
PATNA : सबको मालूम है कि 2008 के परिसीमन में संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के भौगौलिक एवं सामाजिक स्वरूप बदल गये. उसके बाद लोकसभा (Loksabha) के तीन चुनाव हुए. 2009, 2014 और 2019 में. इन तीन चुनावों में 17.7 प्रतिशत की बड़ी आबादी वाले मुस्लिम (Muslim) समुदाय को बिहार (Bihar) में क्या हासिल हुआ? मुसलमानों ने कभी इसकी विवेचना की? अपनी राजनीति (Politics) की दशा-दिशा पर चिंतन-मनन किया? नहीं किया. किया होता तो नकारात्मक सियासत से तौबा कर‌ लेता. खैर, यह उसकी मौलिक स्वतंत्रता है, अपनी समझ और इच्छा है. इस पर कोई दबाव नहीं दे सकता, दखल‌ नहीं दे सकता.

जीत सिर्फ एक की

जहां तक मुसलमानों को मिलने न मिलने की बात है, तो उक्त तीन चुनावों में इसे कुल जमा 09 जीत हासिल हुई. 17.7 प्रतिशत आबादी और 120 में सिर्फ 09 पर जीत ! है न हैरान करने वाली बात! दिलचस्प बात यह भी कि इन 09 में 04 जीत उस गठबंधन के मुस्लिम उम्मीदवारों की है जिसके खिलाफ घृणा का भाव भरा हुआ है. 03 जीत कांग्रेस और एक जीत राकांपा के मुस्लिम उम्मीदवारों को मिली है. यह जानकर आश्चर्य होगा कि पंद्रह वर्षों के दरमियान राजद (RJD) का सिर्फ एक मुस्लिम उम्मीदवार निर्वाचित हुआ. मुसलमानों का एक तबका चकित है कि राजद में ऐसे हालात पर कभी कोई सवाल नहीं उठता. बल्कि यह समुदाय उसकी राजनीति को मजबूत आधार दे रखा है. ऐसा क्यों?

अवसर गंवा दिया

इस क्यों का जवाब तलाशने ‌‌‌‌‌‌‌‌के क्रम में कई खास लोगों से बातचीत हुई. वरिष्ठ पत्रकार शमशाद आलम से भी. इनका कहना रहा कि ऐसा विकल्पहीनता की वजह से है. जदयू (JDU) विकल्प बन सकता था, पर ढुलमुल राजनीतिक चरित्र के चलते उसने अवसर गंवा दिया. कांग्रेस (Congress) बिहार में कमजोर है. ऐसे में मुस्लिम समुदाय में यह धारणा जम गयी है कि मान- सम्मान और अधिकार राजद में ही मिल सकता है, अन्यत्र नहीं. गुफरान आजम कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं. पत्रकारिता से भी जुड़े रहे हैं. इनका मानना है कि मुसलमानों को नाराजगी भाजपा (BJP) से है. गठबंधन (Alliance) की राजनीति में मुसलमानों के पास राजद और कांग्रेस के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है.

तब भी देंगे साथ

इसका मतलब यह नहीं कि मुसलमान राजद से बंधा हुआ है. जहां विकल्प है वहां यह राजद के साथ नहीं है. पूर्णिया (Purnea) और सीवान (Siwan) इसके उदाहरण हैं. दूसरी ओर समस्तीपुर (Samastipur) जिला भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष जिला पार्षद सिकन्दर आलम का कहना है दो क्या एक भी सीट नहीं मिलेगी तब भी मुसलमान अपने हितों की अनदेखी कर राजद का ही साथ देंगे. इसलिए कि नकारात्मक राजनीति के तहत इस समुदाय का एकमात्र लक्ष्य नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) और भाजपा को हराना है.


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हाथ में आया शून्य

उक्त तीन‌ संसदीय चुनावों में मुस्लिम समुदाय को क्या कुछ हासिल हुआ, अब इस पर प्रकाश डालते हैं. 2009 के चुनाव में दमखम वाले विभिन्न दलों के तेरह उम्मीदवार मुख्य मुकाबले में थे. जीत सिर्फ तीन की हुई. किशनगंज (Kishanganj) में कांग्रेस के मौलाना असरारूल हक कासमी, भागलपुर (Bhagalpur) में भाजपा के शाहनवाज हुसैन (Shahnawaz Hussain) और बेगूसराय (Begusarai) में जदयू के डा. मोनाजिर हसन (Dr. Monazir Hasan) की. राजद के हाथ शून्य आया. जिन आठ मुस्लिम उम्मीदवारों को मुंह की खानी पड़ गयी उनमें राजद के पांच धुरंधर भी थे. अररिया में तसलीम उद्दीन (Taslim Uddin), मधुबनी (Madhubani) में अब्दुल बारी सिद्दीकी, दरभंगा (Darbhanga) में अली अशरफ फातमी (Ali Ashraf Fatmi), सीवान में हीना शहाब (Hina Shahab) और औरंगाबाद (Aurangabad) में शकील अहमद खान इस गति को प्राप्त हुए. पराजित होने वाले बड़े चेहरों में कांग्रेस के डा. शकील अहमद (Dr. Shakeel Ahamad) भी थे जो मधुबनी में तीसरे स्थान पर अटक गये थे.

कुछ अधिक उम्मीदवारी

2009 की तुलना में 2014 में मुसलमानों को कुछ अधिक उम्मीदवारी मिली. विभिन्न दलों के 15 दमदार उम्मीदवार मैदान में थे. उनमें छह राजद के थे. जदयू उस वक्त एनडीए (NDA) से अलग स्वतंत्र राजनीति कर रहा था. मुस्लिम समर्थन की उम्मीद में उसने इस समुदाय के पांच उम्मीदवार उतार दिये थे. शिवहर‌ (Shivhar) से शाहिद अली खान, मधुबनी से गुलाम गौस, ‌किशनगंज से अख्तरूल ईमान (Akhtarul Iman), सारण से सलीम परवेज़‌ (Salim Parwez) और भागलपुर से अबू कैसर को. मुसलमानों का समर्थन मिला या नहीं, शोध का यह अलग विषय है‌, मतों की दो ध्रुवीय गोलबंदी में‌ जदयू के सभी उम्मीदवारों को हार का मुंह देखना पड़ गया.

राजद में शामिल हो गये चौधरी महमूद अली कैसर.

समान गति हुई सब की

मुस्लिम मतों को प्रभावित करने के जदयू के प्रयास का ही असर था कि उस चुनाव में राजद में मुसलमानों को पहली बार कुछ बड़ी हिस्सेदारी मिली. परन्तु, जीत सिर्फ एक की हुई. अररिया (Araria) में तसलीम उद्दीन की. बाकी सभी जमीन सूंघ गये. शिवहर में अनवारूल हक, मधुबनी में अब्दुल बारी सिद्दिकी, दरभंगा में अली अशरफ फातमी, सीवान में हीना शहाब‌ और बेगूसराय में तनवीर हसन (Tanveer Hasan), सबकी गति समान हुई. 2014 में तसलीम उद्दीन के अलावा अलग-अलग दलों के तीन और मुस्लिम प्रत्याशी निर्वाचित हुए थे. किशनगंज से कांग्रेस के मौलाना असरारूल हक कासमी, कटिहार (Katihar) से राष्ट्रवादी कांग्रेस के तारिक अनवर (Tarique Anwar) और खगड़िया (Khagaria) से लोजपा (LJP) के चौधरी महबूब अली कैसर (Choudhary Mahboob Ali Kaisar) की जीत हुई थी.

40 में सिर्फ दो!

2019 में जदयू एनडीए (NDA) का हिस्सा था. मुस्लिम समुदाय से उसने सिर्फ एक उम्मीदवार उतारा था. किशनगंज में महमूद अशरफ को अवसर उपलब्ध कराया था. उन्हें भी पराजय का सामना करना पड़ गया. राजद के पांच उम्मीदवार थे. अररिया से सरफराज आलम, शिवहर से फैसल अली, दरभंगा से अब्दुल बारी सिद्दिकी, सीवान से हीना शहाब‌ और बेगूसराय से तनवीर हसन. जीत का स्वाद किसी को नहीं मिला. पूरे 40 संसदीय क्षेत्रों में सिर्फ दो में मुस्लिम प्रत्याशियों की जीत हुई. किशनगंज में कांग्रेस के‌ डा. जावेद आजाद (Dr. Javed Azad) और खगड़िया में लोजपा के चौधरी महबूब अली कैसर की.

देखना दिलचस्प होगा

2024 में गठबंधनों के कुल पांच प्रत्याशी हैं. दो – दो राजद और कांग्रेस के तथा एक जदयू‌ के. अररिया से शाहनवाज आलम और मधुबनी से अली अशरफ फातमी राजद के और कटिहार से तारिक अनवर और किशनगंज से डा. जावेद आजाद कांग्रेस के. किशनगंज में ही मास्टर मोजाहिद आलम (Master Mojahid Alam) को जदयू की उम्मीदवारी मिली है. कामयाबी किस-किस को मिलती है यह देखना दिलचस्प होगा.

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