पावर हाउस में सबसे पावरफुल कौन?
राजनीतिक विश्लेषक
12 अगस्त, 2021
पटना. यूं तो पावर हाउस में सब के सब पावरफुल ही रहता है. फिर भी कोई तो ऐसा होगा, जो सबसे पावरफुल हो. अफसरशाही में इन दिनों यही चर्चा चल रही है कि एक अणे मार्ग में सुशासन बाबू के बाद सबसे अधिक पावरफुल कौन है? ऐसा आदमी जो बना काम बिगाड़ दे और बिगड़ा काम बना दे. कई उदाहरण के साथ बताया जा रहा है कि साबिक मुख्य सचिव जो डिमोट होकर प्रधान सचिव बन गये हैं, इन दिनों सबसे अधिक पावरफुल हैं. सुशासन बाबू तक पहुंचने से पहले सभी महत्वपूर्ण फाइल इनकी नजर से ही गुजरती है. इनकी सलाह अंतिम मानी जाती है. इसी पद पर तैनात दूसरे अधिकारी का भाव पहले की तुलना में काफी नीचे चला गया है. उनके बारे में कई अधिकारी लंबे समय से सुशासन बाबू का कान भर रहे थे. कान में डाला गया कि ये साहब अपना सारा माल बगल के प्रदेश में छिपाये हुए हैं. खाली दिखावा के लिए गरीब बने रहते हैं. ऐसा नहीं है कि सुशासन बाबू ने एकबारगी भरोसा कर लिया. उन्होंने अपने स्तर से जांच-परख की. पुख्ता सबूत मिलने के बाद ही उनसे दूरी बनायी गयी. इसके तहत सबसे पहले उन्हें मालदार विभाग के प्रधान सचिव के पद से चलता किया गया. अब नाम के पावरफुल रह गये हैं. पावर हाउस में एक और अधिकारी पावरफुल हो गये थे. वह दूसरे राज्य के कैडर के अधिकारी थे. टेन्योर खत्म हुआ. सुशासन बाबू ने रोकने की कोशिश नहीं की. बेचारे अपने कैडर वाले राज्य में चले गये. वह सुशासन बाबू के गृह जिला के थे. स्वजातीय थे. इसलिए भाव अधिक था. उनके जाने के बाद साबिक मुख्य सचिव ही सर्वेसर्वा बन कर रह गये हैं. उनके खैरख्वाह तो यहां तक कहते हैं कि साबिक मुख्य सचिव को सुशासन बाबू कभी-कभी साथ में लंच या डिनर भी खिलाते हैं. दरबार में इसे चरम अवस्था का नाम दिया गया है. एक और अधिकारी हैं. वह भारतीय प्रशासनिक सेवा के हैं. स्वजातीय भी हैं. फिर भी उन्हें भाव नहीं मिलता है. सुशासन बाबू अक्सर इनकी सुस्ती से परेशान रहते हैं. सुस्ती की वजह से ही इन्हें अधिक तरजीह नहीं मिल पाती है. ऐसा नहीं है कि सुशासन बाबू ने इन्हें भाव नहीं दिया था. खूब भाव दिया था. एक दिन खाना पर बुलाया. पाया गया कि साहब खाना खाने में भी सुस्ती दिखा रहे हैं. सुशासन बाबू का भोजन समाप्त हो गया था, ये साहब भूजिया टूंग रहे थे. उसी समय राय बन गयी कि आदमी ईमानदार है. लेकिन, इतना सुस्त है कि इनसे कोई भी काम समय पर नहीं हो सकता है. वह दिन और आज का दिन, सुशासन बाबू के दिमाग से इनकी सुस्त छवि निकल नहीं पायी. इन्होंने कभी अपनी सुस्ती समाप्त करने पर विचार भी नहीं किया-सुस्त हैं, मस्त हैं.