बिहार में उच्च शिक्षा : ताड़ से गिरी खजूर पर अटकी!
विजय शंकर पांडेय
01 अक्टूबर 2024
Patna : यह कड़वा है, वैधानिक बाध्यताओं में बंधा है, पर प्रत्यक्ष प्रमाण हो या नहीं, अनवरत चर्चाओं में रहने के कारण इसे एकदम से आधारहीन भी नहीं कहा जा सकता है. बात बिहार (Bihar) के विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों (Universities and Colleges) में कथित रूप से संस्थागत रूप ले चुके भ्रष्टाचार की है. कुलाधिपति (Chancellor) पद से फागू चौहान (Fagu Chauhan) की रुखसती के बाद उच्च शिक्षा (Higher Education) क्षेत्र की पवित्रता और प्रतिष्ठा पुनर्स्थापित होने की आस जगी थी. पर, कारण जो रहा हो, बहुत जल्द वह गहरी निराशा में बदल गयी. उच्च शिक्षा व्यवस्था पर गहन दृष्टि रखने वाले तटस्थ लोग कहते हैं कि निराशा इसलिए गहरा गयी कि कुलाधिपति तो बदल गये, पर कुलाधिपति कार्यालय की कार्य-प्रणाली और कार्य-संस्कृति में सड़ांध भरी की भरी रह गयी. उसे दूर करने की कारगर कोशिश नहीं की गयी. परिणामस्वरूप शीर्ष पर बदलाव की महाविद्यालय स्तर पर कोई सुखद अनुभूति नहीं हो पा रही है.
पात्रता का मापदंड
यह हर किसी को मालूम है कि कुलाधिपति कार्यालय बिहार के विश्वविद्यालयों की नियंत्री संस्था है. विश्वविद्यालयों के उच्च पदों, मसलन कुलपति (Vice Chancellor), प्रतिकुलपति (Pro Vice Chancellor) और कुलसचिव (Registrar) की नियुक्ति यही करता है. कुलपति पद पर बहाली की प्रक्रिया में राज्य सरकार की भूमिका भी निर्धारित है. अतीत में झांकें, तो कुलपति और प्रतिकुलपति की नियुक्तियों में पहले आमतौर पर सत्ता के प्रति समर्पण को महत्व दिया जाता था. बाद के दिनों में पात्रता का मापदंड धन हो गया. ऐसा आमलोग ही नहीं, उच्च शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोग भी कहते हैं.लेकिन, तब यह कुलपतियों और प्रति कुलपतियों की बहाली तक में सिमटा था. ऐसा कहा जाता है कि फागू चौहान के कार्यकाल में कुलसचिवों के पद को भी इस दायरे में खींच लिया गया.
होती है बड़ी सौदेबाजी!
उस कालखंड में कुलपति, प्रतिकुलपति और कुलसचिव की नियुक्तियों में ही आधी हकीकत, आधा फसाना के रूप में उच्च स्तर पर कुछ इधर-उधर होने की चर्चाएं होती थीं. विश्वविद्यालयों के दुर्भाग्य के तौर पर ऐसी चर्चाओं में अब वित्त परामर्शी के पद भी जुड़ गये हैं. इन चर्चाओं की सच्चाई का कोई पुख्ता आधार नहीं है. पर, यह पूरी तरह से झूठ ही है, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता है. एक कहावत है न – जब धुआं है तो कहीं न कहीं आग भी होगी. सच या झूठ, विश्वविद्यालय और महाविद्यालय परिसरों में जो चर्चाएं होती हैं उसके मुताबिक उक्त पदों के लिए बहुत बड़ी सौदेबाजी होती है. कथित रूप से दस लाख से तीन करोड़ तक की सौदेबाजी!
सूद समेत भरपाई
यहां यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जो कोई बड़ी रकम देकर पद पाते हैं वे सूद समेत उसकी भरपाई करने का उपक्रम तो करेंगे ही! इस उपक्रम के तहत महाविद्यालयों के प्रधानाचार्यों के पदों की नीलामी की चर्चा भी खूब होती है. इस परिप्रेक्ष्य में विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों की दशा व दुर्दशा क्या हो सकती है उसे बड़ी सहजता से समझा जा सकता है. इधर-उधर की बातें पहले भी होती थीं, पर उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार का आरोप पहली बार 2004 में उछला था. तब सरदार बूटा सिंह (Sardar Buta Singh) कुलाधिपति थे. उनके बाद के दौर में भ्रष्टाचार को विस्तार मिला. देवानंद कुंवर (Devanand Kunwar) के कुलाधिपति कार्यकाल को भ्रष्टाचार का चरम काल माना जाता है.
महक गया पूरा महकमा
इसके उलट आर एस गवई (R S Gavai), डी वी पाटिल (D V Patil) और सतपाल मलिक (Satpal Malik) के कार्यकालों की लोग सराहना करते हैं. इन सबके कार्यकाल में उच्च शिक्षा में सुधार के कई काम हुए. विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में भ्रष्टाचार पर अंकुश लग गया. सतपाल मलिक तकरीबन दो वर्ष तक कुलाधिपति रहे. उनके बाद लालजी टंडन (Lalji Tandan) का कार्यकाल भी कमोबेश ठीकठाक ही रहा. लालजी टंडन के बाद फागू चौहान का पदार्पण हुआ. उनके कार्यकाल में जो करतब हुए उससे पूरा महकमा महक गया. ‘हरि अनंत हरि कथा अनंता’. मगध विश्वविद्यालय, बोधगया के कुलपति प्रो. राजेंद्र प्रसाद को वित्तीय अनियमितता के आरोप में जेल जाना पड़ा. ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के कुलपति डा. एसपी सिंह पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे.
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सब भ्रम साबित हुआ
लम्बी प्रतीक्षा के बाद 12 फरवरी 2023 को बिहार को फागू चौहान से त्राण मिला. राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर नया कुलाधिपति बने. लेकिन, जाते-जाते फागू चौहान बहुत बड़ा खेल कर गये. तबादले की अधिसूचना जारी हो जाने के बाद भी उन्होंने कुलपति, प्रति कुलपति और सात कुलसचिवों की नियुक्ति कर दी. वित्त पदाधिकारी और वित्त परामर्शी की भी. जबकि नियम और परम्परा कहती है कि तबादले की अधिसूचना जारी होने के बाद ऐसी नियुक्ति नहीं की जानी चाहिये. यह अलग बात है कि पदभार ग्रहण करते ही कुलाधिपति राजेन्द्र विश्वनाथ आर्लेकर ने फागू चौहान द्वारा नियुक्त सात विश्वविद्यालयों के कुलसचिवों एवं तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर के वित्त पदाधिकारी और वित्त परामर्शी के सभी कार्यों एवं कर्तव्य निर्वहन पर रोक लगा उच्च शिक्षा महकमे को अचंभित कर दिया. उनकी इस कार्रवाई से अराजक हालात में सुधार की नयी उम्मीदें जगीं. पर, सब भ्रम साबित हुआ.
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