‘भूत उत्सव’: अंग्रेजी शराब मांगते हैं अधिकतर ‘भूत’!
देवव्रत राय
03 नवम्बर 2024
घिन्हू ब्रह्म स्थान (बिक्रमगंज): ब्रह्म मंदिर के बगल में मैदान है. पहचान उसकी ‘बलि स्थल’ की है. ऐसी मान्यता है कि ‘भूत-प्रेत’ (Bhoot-Pret) के उत्पात से त्राण पाने के लिए वहां जानवरों की बलि दी जाती है. दिलचस्प बात यह कि बलि बकरे की नहीं, सूअर (Pig) के बच्चे, मुर्गा (Cock) और अंडे (Eggs) की दी जाती है. वह भी कथित भूत की इच्छा के अनुरूप. यानी ‘भूत’ जो मांगता है, बलि उसी की चढ़ाई जाती है. शरीर छोड़ने के लिए कोई भूत अंडे की बलि मांगता है तो कोई सूअर का बच्चा और कोई मुर्गे की बलि. ज्यादा मांग मुर्गे की होती है. भूत के कहने पर कभी-कभी मुर्गे को जिंदा भी उड़ा दिया जाता है. इन मुर्गों का भोज (Murgon ka Bhoj) मेला में मंडराते ओझाओं के परिजन उड़ाते हैं.
भूत अंग्रेजी शराब मांगते हैं
परंपरा के अनुसार बलि प्रदान करने से पहले उसकी गर्दन पर शराब, सिन्दूर और अरवा चावल चढ़ाये जाते हैं. शराबबंदी में शराब चढ़ाने की बात कोई स्वीकार नहीं करता. परन्तु, ‘बलि स्थल’ के वायुमंडल में समायी उसकी गंध खुद-ब-खुद शराब चढ़ाने की पुष्टि कर देती है. शराब भी भूत की मांग के अनुसार चढ़ायी जाती है. रोचक तथ्य यह है कि ज्यादातर भूत अंग्रेजी शराब मांगते हैं. कोई-कोई र्‘रेड वाइन’ भी. वैसे, शराबबंदी के दौर की दिक्कत के मद्देनजर उपलब्धता की स्थिति में उपलब्ध करा देने, यानी शराबबंदी खत्म होने तक की मोहलत मिल जाती है.
हो गया है व्यवसाय
यहां जानने वाली बात यह भी है कि पीड़िता या पीड़ित का शरीर छोड़ने के लिए भूत क्या मांग लेगा, साथ के लोग पूरी तरह अनभिज्ञ रहते हैं. भूत की मांग के अनुसार इन सबकी उपलब्धता स्थानीय लोग सुनिश्चित कराते हैं. मुख्य रूप से डोम (Dom) और मुसहर (Mushar) समाज के अनेक लोगों ने इस ‘उपलब्धता’ को व्यवसाय का रूप दे रखा रखा है. मनमाफिक कीमत पर वे ‘सामान’ उपलब्ध करा देते हैं. मसलन सूअर के बच्चे, जिसे वहां की भाषा में छौना कहते हैं, की कीमत चार से पांच हजार और मुर्गे की कीमत दो हजार तक वसूल लेते हैं. जैसा जरूरतमंद, वैसी कीमत! बलि देने का काम भी वही करते हैं. सूअर के बच्चे की बलि का दो सौ रुपये और मुर्गे की बलि का पचास रुपये मेहनताना लेते हैं. अंडे की बलि खुद ‘भूत-प्रेत पीड़ित’ चढ़ाते हैं.
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‘भूत उत्सव’ में विज्ञान ‘नतमस्तक’
चारो तरफ चकरी की तरह सिर को घुमाती भूत-प्रेत पीड़ित महिलाओं की चीख-पुकार के बीच ओझाओं द्वारा ‘देह छुड़ाने’ की कोशिशें हर सामान्य में सिहरन भर देती हैं. ऐसा कहें कि रोंगटे खड़े कर देने वाले इस ‘भूत उत्सव’ में विज्ञान ‘नतमस्तक’ नजर आता है, तो वह कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. भूत खेलाने वाली महिलाएं बाल खोल चीखती रहती हैं. कोई दौड़ लगाती दिखती है, तो कोई जमीन पर लोटती नजर आती है, कोई नाचती-गाती. इन डरावनी हरकतों के दौरान वे जो आवाज निकालती हैं और उन पर सवार भूत को वश में करने के लिए ओझा जो तंत्र-मंत्र का कर्कश जाप करते हैं, उससे पूरा माहौल खौफनाक हो जाता है.
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