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लखीसराय : जब दो बाहुबलियों की पत्नियों में भिड़ंत हुई…

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कृष्णमोहन सिंह
02 सितम्बर2021

LAKHISARAI : पिपरिया निवासी प्रहलाद यादव (Prahlad Yadav) सूर्यगढ़ा से राजद (RJD) के विधायक हैं. विपक्ष के विधायक के रूप में रुतबा अपेक्षाकृत कम रहने के बाद भी जिले की राजनीति को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं.

वैसे, उनका मकसद मुख्य रूप से विधायकी के अलावा किऊल नदी के लाल बालू के कारोबार और जिला परिषद की सियासत तक ही सिमटा रहता है. बाकी कहां क्या होता है, उसमें कोई खास दिलचस्पी नहीं रहती है.

लखीसराय सदर प्रखंड से ही क्यों?
जिला परिषद की सत्ता के लिए वह अपनी पत्नी सुदामा देवी को चुनाव लड़ाते हैं. निर्वाचन क्षेत्र संख्या सात से. पिपरिया प्रखंड के गृह निर्वाचन क्षेत्र को छोड़ लखीसराय सदर प्रखंड के इस क्षेत्र से किस्मत आजमाने की वजह संभवतः स्वजातीय मतों की बहुतायत है. विधायक प्रह्लाद यादव किऊल के समीप खगौर बस्ती में बस गये हैं. 2001 में नये सिरे से त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था लागू हुई तब लखीसराय जिला परिषद की सत्ता पर काबिज होने के लिए उन्होंने शुरू के दो चुनावों-2001 और 2006 में अपने मोहरों को आजमाया. मंशा फलीभूत नहीं हुई.

…और अध्यक्ष बन गयीं
2011 के चुनाव में पत्नी सुदामा देवी को निर्वाचन क्षेत्र संख्या 7 के मैदान में उतार दिया. वह निर्वाचित हुईं और कथित रूप से पति के बाहुबल और धनबल के जोर पर अध्यक्ष बन गयीं.

जिला परिषद के अध्यक्ष पद के लिए शह और मात का जो खेल चला, अप्रत्यक्ष रूप से उसका एक मजबूत कोण प्रह्लाद यादव ही रहे. मुकाबले का दूसरा कोण बदलता रहा. वर्तमान में भी सत्ता-संघर्ष का वही स्वरूप है. प्रक्रियाधीन चुनाव के बाद भी ऐसा ही रहने की संभावना है.

खिखर सिंह का भी था प्रभाव
इस क्षेत्र में दिवंगत बाहुबली अरुण कुमार सिंह उर्फ खिखर सिंह का भी काफी प्रभाव रहा है. ऐसा कहा जाता है कि 2001 और 2006 के चुनावों में मोहम्म्द अब्बास की जीत में ताकत खिखर सिंह ने ही खपायी थी. हालांकि, 2011 में खिखर सिंह ने जब अपनी पत्नी चंदा देवी को यहां के मैदान में उतारा तब वह सुदामा देवी से हार गयीं.

चंदा देवी निर्वाचन क्षेत्र संख्या एक से लड़ती थीं. वह क्षेत्र पिछड़ा वर्ग के लिए सुरक्षित हो गया तब क्षेत्र संख्या सात में भाग्य आजमाने पहुंच गयीं. चुनाव में दो बाहुबलियों की पत्नियों में दिलचस्प मुकाबला हुआ.

उस क्षेत्र की राजनीति पर नजर रखने वालों का मानना है कि 2011 में भी चंदा देवी की जगह मोहम्मद अब्बास लड़ते तो सुदामा देवी और उनके पति प्रह्लाद यादव की आस अधूरी रह जाती.

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