इस कारण बच गयी टिक्कर सिंह की जान
विशेष संवाददाता
28 सितम्बर, 2021
BARAHIYA. लगातार 17 वर्षों तक टिक्कर सिंह (Tikkar Singh) एक ही जगह जमा रहा. किसी जंगली या दूर-दराज के देहाती इलाके में नहीं, इलाहाबाद जैसे अति चलायमान शहर में. तब भी पुलिस को उसकी भनक पाने में इतना वक्त लग गया? इस स्वाभाविक सवाल पर पुलिस अधीक्षक शिवदीप लांडे (Shivdeep Lande) का कहना रहा कि घर से बाहर यदा-कदा ही निकलता था. इसलिए सुराग पाने में लंबा समय लग गया.
शिवदीप लांडे के इस कथन में दम नहीं था. इलाहाबाद (Allahabad) के काशीराज नगर में इसके घर के समीप इस्कॉन का मंदिर है. अधिकतर समय वहीं गुजारता था. यदि यह सच है तो घर से यदा-कदा निकलने की बात आधारहीन हो जाती. वहां इसने अपनी छवि सीधे-सादे सज्जन इंसान की गढ़ रखी थी. धर्म-कर्म और सत्संग में लीन रहने के कारण संदेह की कोई गुंजाइश नहीं बनती थी. पर, ऐसी भी नहीं कि पुलिस उसे सूंघ नहीं पाती.
पुलिस के एक बड़े अधिकारी की थी सरपरस्ती!
लोग कहते हैं कि पुलिस ने इस वजह से आंखें मूंद रखी थी कि टिक्कर सिंह (Tikkar Singh) के एक करीबी रिश्तेदार बड़े अधिकारी थे. कुछ साल पूर्व वह पुलिस उपमहानिरीक्षक के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं. उसके आतंक को भी उनकी सरपरस्ती हासिल रहने की बात कही जाती है. हालांकि, बाद में संबंध खराब हो जाने की चर्चा उठी थी. इलाहाबाद में टिक्कर सिंह की गिरफ्तारी को उससे भी जोड़कर देखा गया था.
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क्या था क्या नहीं, यह अलग विषय है. सज्ज्नता का चोला धारण करने के पीछे उसका मकसद बेटे-बेटियों को पढ़ाना था. इसमें आशानुरूप सफलता मिली. इलाहाबाद (Allahabad) में अर्थोपार्जन का कोई उपाय नहीं था. अपने आतंककाल में टिक्कर सिंह ने काफी धन-संपत्ति अर्जित की थी. जमीन-जायदाद भी खरीदे थे. ‘आतंक आधारित रंगदारी की जमींदारी’ भी थी.
हर माह जाती थी बड़हिया से राशि
इलाहाबाद में रहने के दौरान बड़हिया (Barahiya) से उसका एक खास आदमी हर माह हर तरह की वसूली की राशि भेज दिया करता था. बड़ी बेटी के बैंक खाते (Bank Account) में प्रतिमाह तकरीबन 40 हजार रुपये पहुंच जाते थे. खेतों के पट्टे से भी आमदनी होती थी. इसके बाद भी प्राप्त रकम पर्याप्त नहीं थी.
आर्थिक कारणों से बाल-बच्चों की पढ़ाई बाधित नहीं हो इसके लिए उसने टाल क्षेत्र की कुछ जमीन-जायदाद भी बेच दी. टिक्कर सिंह की गिरफ्तारी के वक्त बेटे-बेटियों की पढ़ाई अधूरी थी. पर, पढ़ाई पर उसकी गिरफ्तारी का असर नहीं पड़ा. बड़ी बेटी की पढ़ाई पूरी हुई. वह डाक्टर (Doctor) बन गयी. छोटी बेटी और बेटा भी संभवतः डाक्टरी की पढ़ाई कर रहा है.
बड़हिया में है विराजमान
टिक्कर सिंह (Tikkar Singh) जेल से जमानत पर बाहर आ गया. बड़हिया के रामसेन टोला (Ramsen Tola) स्थित पैतृक घर में रहने लगा. उसकी बड़ी बेटी की शादी मोकामा (Mokama) के एक चर्चित परिवार के एक डाक्टर के साथ हुई. वर्तमान में टिक्कर सिंह सशरीर बड़हिया में विराजमान है. कभी-कभार वाराणसी, इलाहाबाद भी घूमने निकल जाता है. अधिकतर आपराधिक मामलों में वह दोषमुक्त हो चुका है. कुछ में जमानत मिली हुई है.
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वर्तमान में अपराध जगत से कोई प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष नाता रह गया है या नहीं यह कहना कठिन है. वैसे, उसका खुद का कहना है कि 1998 के बाद उसके खिलाफ कोई आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं हुआ है. वैसे तो वह बहुत कम पढ़ा लिखा है, पर भूमिगत जीवन में सतत अध्ययन-मनन और सत्संग से उसका संस्कार व आचार-विचार बहुत कुछ बदल गया है. शायद पूरी तरह सात्विक हो गया है. अपनी जमात में ‘महात्मा’ के रूप में जाना-पहचाना जाने लगा है.
समाज में स्वीकार्यता नहीं
इसके बाद भी सभ्य समाज में स्वीकार्यता नहीं के बराबर है. बड़हिया के लोगों की मानें तो स्थानीय समाज से उसका कोई खास जुड़ाव नहीं है. अलग-थलग घर में पड़ा रहता है. उसकी पहचान अब-‘यही है टिक्कर सिंह’- में सिमट कर रह गयी है. यानी अतीत का दाग मिटा नहीं है.
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