पश्चिम चंपारण : उलटा न पड़ जाये राजद का यह दांव
सुनील गुप्ता
30 जनवरी, 2022
BETTIAH : यह हर कोई जानता और समझता है कि बिहार विधान परिषद (Bihar Vidhan Parishad) के स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव में न जाति कोई मतलब रखती है और न सम्प्रदाय. न अलग से राजनीतिक समीकरण बनता है और न सामाजिक समीकरण महत्व रखता है. अगड़ा-पिछड़ा, हिन्दू-मुस्लिम, यादव-मुसमलमान, कहीं कुछ नहीं. नेता विशेष के व्यक्तित्व का प्रभाव या फिर बाहुबल का जोर, सब निष्प्रभावी. चलता है तो सिर्फ और सिर्फ पैसे का जोर. यानी पूरा खेल धनबल का! परन्तु, धनबल का उपयोग तभी सार्थक सिद्ध होता है जब खुद की राजनीतिक-सामाजिक पहचान हो, चुनाव अभियान का परिणामदायक संचालन हो. अन्यथा सब व्यर्थ. यानी धन पानी में बह जाता है.
गांठ के मजबूत ही उतरते हैं मैदान में
वैसे, अपवाद हर क्षेत्र में होते हैं, इस चुनाव (Election) में होते होंगे. इस बार भी हो सकते हैं. पर, सामान्य समझ यही है कि मैदान में आमतौर पर वही उतरते हैं जिनकी गांठ काफी मजबूत होती है. मतलब आर्थिक रूप से सबल होते हैं. पांच-सात करोड़ का बट्टा लग भी जाय तो कोई फिक्र नहीं. जीत उसी की होती है जिनके बटुए का मुंह अन्य उम्मीदवारों की तुलना में कुछ अधिक खुलता है. चुनाव दलीय आधार पर नहीं होते, पर दलीय समर्थन जरूर रहता है. उम्मीदवारों के चयन और समर्थन के पीछ मूल तत्व यही हुआ करता है.
हाशिये पर डाल दिये गये अमर यादव
संभवतः इसी समझ के तहत राजद नेतृत्व ने विधान परिषद के पश्चिम चंपारण (West Champaran) स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव में पार्टी के स्थानीय स्तर के पुराने नेता अमर यादव (Amar Yadav) को हाशिये पर डाल ईं. सौरभ कुमार (Eng. Saurabh Kumar) पर दांव खेलने का निर्णय किया है. अमर यादव एक जमाने में ‘मिनी चम्बल’ के नाम से चर्चित रहे पश्चिम चंपारण के मृत ‘दस्यु सम्राट’ भांगड़ यादव (Bhangar Yadav) के पुत्र हैं. राजनीति में पांव रखने के वक्त से ही राजद (RJD)अध्यक्ष लालू प्रसाद (Lalu Prasad) के प्रति निष्ठावान रहे हैं. एक बार इन्हें नौतन (Nautan) विधानसभा क्षेत्र से राजद की उम्मीदवारी भी मिली थी. तब दिवंगत सांसद वैद्यनाथ महतो (Baidnath Mahto) से वह हार गये थे.
राजनीति में है पकड़
पश्चिम चंपारण की पंचायत राजनीति, विशेषकर जिला परिषद की राजनीति में उन्होंने अपनी अच्छी पैठ बना रखी है. एक बार जिला परिषद के अध्यक्ष भी निर्वाचित हुए हैं. फिलहाल अध्यक्ष का पद अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित है. पिछले दो चुनावों में अमर यादव की पत्नी रेणु देवी (Renu Devi) उपाध्यक्ष निर्वाचित हुई हैं. अध्यक्ष के चुनाव में उनका ही चला है. 2016 में इनके ही सहयोग-समर्थन से ईं. शैलेन्द्र गढ़वाल (Eng. Shailendra Garhwal) अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे. इस बार भी उन्हीं को अवसर मिलता. लेकिन, पिछले कार्यकाल के दौरान उपाध्यक्ष रेणु देवी और उनके पति अमर यादव को उनके कार्यकलापों का जो अनुभव मिला उसने उनकी (ईं. शैलेन्द्र गढ़वाल) की राह अवरुद्ध कर दी. अध्यक्ष पद पर जीत निर्भय कुमार महतो (Nirbhay Kumar Mahto) की हुई. इसमें भी अमर यादव ने ही अहम भूमिका निभायी.
भरोसा ब्रह्मर्षि समाज पर
यह सर्वविदित है कि त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था और स्थानीय नगर निकायों के निर्वाचित जनप्रतिनिधि ही विधान परिषद (Vidhan Parishad) के स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र के मतदाता होते हैं. पश्चिम चंपारण में इन मतदाताओं पर अमर यादव की अच्छी पकड़ रहने की बात कही जाती है. इसके बावजूद राजद नेतृत्व ने इनको नजरंदाज कर ब्रह्मर्षि समाज के ईं. सौरभ की उम्मीदवारी लगभग तय कर दी है. वैसे, चनपटिया प्रखंड के जोकहा गांव निवासी सहजान चौधरी के पुत्र ईं. सौरभ कुमार भी राजद से लंबे समय से जुड़े हुए हैं. उनकी सक्रियता चनपटिया (Chanpatiya) विधानसभा क्षेत्र से लेकर राजधानी पटना (Patna) तक फैली हुई है. राजद (RJD) में उन्होंने अपनी जगह तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejaswi Prasad Yadav) के इर्द-गिर्द बना रखी है. अभी वह राजद के प्रदेश सचिव हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव में चनपटिया से वह भी राजद के दावेदार थे. महागठबंधन में यह सीट कांग्रेस (Congress) के कोटे में गयी. उम्मीदवारी अभिषेक रंजन (Abhishek Ranjan) को मिली थी जो भाजपा के उमाकांत सिंह (Umakant Singh) से 13 हजार 469 मतों से पिछड़ गये थे.
फर्नीचर का है कारोबार
परिवार की कृषि आधारित आर्थिक संपन्नता तो है ही, ईं. सौरभ कुमार ने पटना में बहुत बड़ा फर्नीचर व्यवसाय पसार रखा है. जानकारों के मुताबिक पटना में उनके फर्नीचर के आधा दर्जन शो रूम हैं. बेतिया में हरि वाटिका में कृषि उत्पादन बाजार समिति के समीप उनका एक बड़ा मॉल (MALL) बनकर तैयार है. बेतिया में ही कोरिया कोठी (Koria Kothi) में विवाह भवन है. इसके अलावा भी और तरह के व्यवसाय हैं. पश्चिम चंपारण जिला राजद के अध्यक्ष इफ्तेखार अहमद उर्फ मुन्ना त्यागी (Iftekhar Ahmad urf Munna Tyagi) के मुताबिक राजद की उम्मीदवारी के लिए अमर यादव (Amar Yadav) भी प्रयासरत थे. लेकिन, निर्णय ईं. सौरभ कुमार के नाम पर लगभग हो चुका है.
निर्दलीय लड़ेंगे अमर यादव
राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि इस मामले में राजद से निराशा मिलने के बावजूद अमर यादव हताश नहीं हैं. चुनाव मैदान में निर्दलीय उतरने की उन्होंने मुकम्मल तैयारी कर रखी है. मतदाताओं के बीच उनकी सक्रियता भी बनी हुई है. उधर, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आफाक अहमद (Afak Ahmad) ने भी उम्मीदवारी की आस लगा रखी है. उनकी एक खासियत यह भी है कि वह कांग्रेस के प्रति पूर्ण समर्पित हैं. बेतिया के आमना उर्दू हाई स्कूल के शिक्षक रहे आफाक अहमद इसी शहर में नेशनल पब्लिक हाई स्कूल (National Public High School) चलाते हैं. खूब पढ़े-लिखे हैं. पहचान सुलझे बुद्धिजीवी की है, इसलिए इस चुनाव के मतदाताओं में स्वीकार्यता कायम होती नजर आ रही है.
भ्रम में पड़ सकता है ‘माय’
वैसे तो इस तरह के चुनाव में यह कोई खास मायने नहीं रखता, पर अमर यादव और आफाक अहमद के मैदान में उतरने से राजद का ‘माय’ समीकरण भ्रमित हो जा सकता है जो, उसके समर्थित उम्मीदवार ईं. सौरभ के लिए परेशानी का सबब बन जा सकता है. राजग में यह सीट जदयू (JDU) के कोटे में रहेगी. इसकी विधिवत घोषणा हो चुकी है. निवर्तमान विधान पार्षद राजेश राम (Rajesh Ram) ही उसके उम्मीदवार होंगे, यह भी करीब-करीब तय है. राजेश राम पूर्व मंत्री पूर्णमासी राम (Purnmasi Ram) के भाई हैं. पश्चिम चंपारण स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र के 2003 के प्रथम चुनाव से ही वह लगातार विजय पताका लहरा रहे हैं.
तब भी हैं आशान्वित
2015 में राजेश राम महागठबंधन में कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार थे. मुकाबला भाजपा समर्थित उम्मीदवार संतोष कुमार राव उर्फ बबलू सिंह (Santosh Kumar Rao urf Bablu Singh) से हुआ था. जीत 628 मतों के अंतर से हुई थी. पश्चिम चंपारण जिले की पंचायत राजनीति में संतोष कुमार राव उर्फ बबलू सिंह की भी अच्छी पकड़ है. 2011 में वह जिला परिषद के उपाध्यक्ष निर्वाचित हुए थे. जिला परिषद के योगापट्टी (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 12) से वह चुनाव लड़ते थे. 2016 में यह क्षेत्र महिला के लिए सुरक्षित हो गया. उनकी पत्नी सुनीता देवी (Sunita Devi) मैदान में उतरीं, मात खा गयीं. इस बार उन्होंने शानदार जीत हासिल की. विधान परिषद के चुनाव की बाबत संतोष कुमार राव उर्फ बबलू सिंह अब भी आशान्वित हैं. इस रूप में कि ‘सीट तुम्हारी उम्मीदवार हमारा’ की नीति के तहत भाजपा नेतृत्व उन्हें अवसर उपलब्ध कराने का प्रयास कर सकता है. इस प्रयास की नाकामयाबी पर वह क्या करेंगे – बगावत कर मैदान में उतरेंगे या तमाशबीन बनकर रह जायेंगे, इसका अभी खुलासा नहीं हुआ है.
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