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बिहार प्रदेश भाजपा : चाहिये कमर सीधी रखनेवाला अध्यक्ष

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संगीता त्रिवेदी
08 अप्रैल, 2022

PATNA : प्रदेश भाजपा के वर्तमान अध्यक्ष डा. संजय जायसवाल (Dr. Sanjay Jaiswal) जिलों में पार्टी को गतिशील बनाने की बजाय सहयोगी दलों से उलझने में सारी ऊर्जा नष्ट करते रहे. अब एनडीए (NDA) में सहयोग और समन्वय का अंदाज बदल गया है. सहयोगी दल एक-दूसरे को नीचा दिखाने का कोई मौका जाया नहीं करते हैं. शराबबंदी (Liquor Ban) की विफलता और सम्राट अशोक (Samrat Ashok) की जीवनी के बहाने अखबारों में बमवर्षा होती रही. खींचतान व आरोप-प्रत्यारोप दिनचर्या बन गयी है. भाजपा (BJP) को एक ऐसे अध्यक्ष की जरूरत है जो एनडीए के घटक दलों, खासकर जदयू (JDU) के सामने झुककर नहीं रहे. दल के हितों की रक्षा में सख्त रहे और समय आने पर नर्म भी पड़े.

पिछड़ों-दलितों का दबदबा
हाल में प्रदेश अध्यक्ष डा. संजय जायसवाल के तीखे बयानों से माहौल बार-बार गर्म होता रहा. उन्होंने परोक्ष रूप से नीतीश सरकार पर भी निशाने साधे और जदयू के कई नेताओं ने उन पर पलटवार किया. वे आरोप-प्रत्यारोप में व्यस्त रहे. भाजपा अब ऐसा अध्यक्ष चाहेगी जो सख्त हो, लेकिन सहयोगी दल के छोटे-बड़े नेताओं से उलझा न करे, बल्कि उसका कौशल संगठन को मजबूत बनाने के काम आये. बिहार सरकार में भाजपा (BJP) कोटे के मंत्रियों में और प्रदेश भाजपा में पिछड़ों-अतिपिछड़ों का दबदबा है. उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद (Tarkishore Prasad) और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष डा. संजय जायसवाल (Dr. Sanjay Jaiswal) वैश्य समुदाय से आते हैं. दूसरी उपमुख्यमंत्री रेणु देवी (Renu Devi) अतिपिछड़ी जाति की हैं. ऐसे में इस दावे को बल मिलता है कि अगला प्रदेश अध्यक्ष अगड़ी जाति से बनेगा. तर्क यह भी है कि लगातार दो बार प्रदेश भाजपा की कमान पिछड़ी जातियों के हाथ में रही है.

कोई चारा नहीं
अब तक ‘माय’ समीकरण पर चलने वाले राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने हाल में नया दांव आजमाया है. स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र से बिहार विधान परिषद (Bihar Vidhan Parishad) के चुनाव में राजद (RJD) ने ब्रह्मर्षि समाज के पांच लोगों को प्रत्याशी बनाकर नया संकेत दिया है. इससे पहले राजद चुनावों में क्षत्रिय समाज से कई प्रत्याशी खड़े करता रहा है. एनडीए (NDA) की कट्टर समर्थक ब्रह्मर्षि समाज से पहली बार बड़ी संख्या में प्रत्याशी खड़े किये गये हैं. अटकलबाजी है कि राजद आगामी चुनावों में बीमाई (ब्रह्मर्षि, मुस्लिम, यादव) समीकरण के तहत ब्रह्मर्षि कार्ड खेल सकता है.

राजद का सवर्ण कार्ड
राजद का सवर्ण कार्ड सफल रहा तो एनडीए का गणित उलझ सकता है. यही वजह है कि सवर्णों में ब्राह्मण-क्षत्रिय के अलावा किसी ब्रह्मर्षि को भी अगला प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनाये जाने की उम्मीद की जा रही है. हालांकि, ब्रह्मर्षि समाज की इस उम्मीद के गुब्बारे की हवा भाजपा के ही कुछ नेता निकाल रहे हैं. पार्टी की एक बैठक में कहा गया – ‘अगर ब्रह्मर्षि समाज को संगठन में या चुनाव में एक भी सीट नहीं दी जाये तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा. ब्रह्मर्षि वोटर के सामने कोई दूसरा चारा नहीं है, लिहाजा वे भाजपा की दहलीज छोड़कर नहीं जा सकते.’


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आहत है ब्राह्मण समाज
ब्रह्मर्षियों की तरह ब्राह्मणों के बारे में भी कहा जाता है कि वे भाजपा को छोड़कर नहीं जा सकते हैं. लेकिन, हाल की घटनाओं से ब्राह्मण समाज आहत है. एनडीए के घटक दल ‘हम’ के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी (Jitanram Manjhi) ने जब ब्राह्मण समाज के खिलाफ अपमानजनक बयान दिया, एनडीए के किसी दल ने उनका प्रतिवाद नहीं किया. मधुबनी (Madhubani) के भाजपा नेता गजेन्द्र झा (Gajendra Jha) का धैर्य टूटा. गजेंद्र झा ने जीतनराम मांझी की जुबान काटने वाले को 11 लाख रुपये देने का ऐलान कर दिया. जीतनराम मांझी के खिलाफ विवादित बयान देने वाले गजेंद्र झा पर कार्रवाई में भाजपा ने देर नहीं की. गजेन्द्र झा को पार्टी से बाहर कर दिया गया. दूसरी ओर ब्राह्मणों का अपमान करने वाले जीतनराम मांझी (Jitanram Manjhi) आज भी एनडीए (NDA) के सम्मानित नेता हैं. गजेन्द्र झा (Gajendra Jha) का भले ही भाजपा (BJP) में छोटा कद रहा हो, उनके निष्कासन से ब्राह्मण समाज में बड़ा संदेश गया है. ब्राह्मणों का दर्द यह है कि एनडीए में उनकी परवाह किसी दल को नहीं है.

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