झारखंड और झामुमो : खिसक रही जनाधार की जमीन
राजकिशोर सिंह
19 अप्रैल, 2023
RANCHI : उपचुनाव के एक परिणाम से आमचुनाव के रुख का अंदाज नहीं लगाया जा सकता. बदलाव की कोई बड़ी उम्मीद नहीं पाली जा सकती. पर, झारखंड (Jharkhand) विधानसभा के रामगढ़ उपचुनाव के परिणाम के साथ यह फार्मूला लागू नहीं होता. तात्कालिक तौर पर इसे परिवर्तन के संकेत के रूप में देखा जा सकता है. ऐसा इसलिए कि इससे एक ऐसे राजनीतिक समीकरण के फिर से ठोस आकार लेने के आसार बन रहे हैं, जिसके बिखर जाने से 2019 में झामुमो नीत महागठबंधन (Mahagathbandhan) की सरकार सत्ता में आ गयी थी. यह समीकरण भाजपा-आजसू गठबंधन पर आधारित है. 2014 में गठबंधन अस्तित्व में था, सत्ता मिली. 2019 के संसदीय चुनाव में भी पूरा लाभ मिला. लेकिन, उसी साल हुए झारखंड विधानसभा के चुनाव में यह बिखर गया. दोनों दलों के प्रत्याशी मैदान में उतर गये, सत्ता फिसल गयी. हेमंत सोरेन के नेतृत्व में महागठबंधन काबिज हो गया.
आत्ममुग्धता टूटी
2019 के विधानसभा चुनाव और उसके बाद के चार उपचुनावों में लगातार हुई हार ने दोनों को फिर से करीब ला दिया. इसकी सुखद परिणति रामगढ़ (Ramgarh) के उपचुनाव में भाजपा-आजसू गठबंधन की बड़ी जीत के रूप में हुई . यह पांचवां उपचुनाव था जिसमें महागठबंधन की आत्ममुग्धता थोड़ी बहुत टूटी. इस जीत से आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो (Sudesh Mahto) का महत्व तो फिर से स्थापित हुआ ही, भाजपा (BJP) के झारखंड प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश (Deepak Prakash) और भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी (Babulal Marandi) को भी हार का क्रम टूटने से सुकून मिला होगा. विश्लषकों की समझ है कि यह गठबंधन बना रहा तोे 2024 के संसदीय और झारखंड विधानसभा के चुनाव परिणाम राजनीति को चकित करने वाले हो सकते हैं.
सत्ता विरोधी रूझान
प्रत्यक्ष रूप से यह महागठबंधन के महत्वपूर्ण घटक कांग्रेस (Congress) की हार है. वामदलों का समर्थन मिलने के बाद भी रामगढ़ की सीट उसके हाथ से निकल गयी. वैसे तो इस क्षेत्र में झामुमो (JMM) का जीत दिलाऊ जनाधार नहीं है, तब भी इस हार की आंच से वह भी झुलसा है. इस रूप में कि भाजपा-आजसू गठबंधन की जीत झामुमो, कांग्रेस और राजग (NDA) की सरकार के खिलाफ उपजी सत्ता विरोधी रुझान के चलते हुई. भाजपा- आजसू गठबंधन ने बेरोजगारी, विधि-व्यवस्था, महिला सुरक्षा, भ्रष्टाचार, स्थानीयता व नियोजन नीति, पिछड़ों को आरक्षण और सरकार की विश्वसनीयता को उपचुनाव का मुद्दा बना परिणाम को अपने अनुकूल मोड़ दिया. यह सिलसिला बना रहे, गठबंधन को इस पर चिंतन-मनन एवं मंथन करना होगा.
रामगढ़ के 2016 के बहुचर्चित गोला गोली कांड में हजारीबाग की विशेष अदालत ने 13 दिसम्बर 2022 को ममता देवी सहित 12 लोगों को पांच वर्षों की सजा सुनायी. ममता देवी की विधानसभा की सदस्यता समाप्त हो गयी. इसी वजह से हुए उपचुनाव की तस्वीर पूरी तरह से बदल गयी.
आजसू का गढ़
2019 में रामगढ़ में कांग्रेस (Congress) को ऐसी ही जीत मिली थी. हालांकि, उसमें भाजपा और आजसू गठबंधन के टूट जाने की बड़ी भूमिका थी. रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र राजग, विशेषकर आजसू का गढ़ रहा है. 2019 में इस गढ़ को कांग्रेस की ममता देवी (Mamta Devi) ने ध्वस्त कर दिया. उन्होंने आजसू की सुनीता चौधरी (Sunita Chaudhary) और भाजपा के रणंजय कुमार के मंसूबों को मसल दिया. रामगढ़ के 2016 के बहुचर्चित गोला गोली कांड में हजारीबाग (Hazaribagh) की विशेष अदालत ने 13 दिसम्बर 2022 को ममता देवी सहित 12 लोगों को पांच वर्षों की सजा सुनायी. ममता देवी की विधानसभा की सदस्यता समाप्त हो गयी. इसी वजह से हुए उपचुनाव की तस्वीर पूरी तरह से बदल गयी. कांग्रेस की उम्मीदवारी बजरंग महतो (Bajrang Mahto) को मिली. वह सजायाफ्ता पूर्व विधायक ममता देवी के पति हैं. सीधे मुकाबले में वह 21 हजार 644 मतों से पिछड़ गये. जीत आजसू उम्मीदवार सुनीता चौधरी की हुई.
ऐसी दुर्गति क्यों?
अति आत्मविश्वास में आ गये महागठबंधन के नेताओं को जनाधार की जमीन खिसक गयी है, इसका आभास भी नहीं हो पाया. सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर 2019 के चुनाव के बाद के सवा तीन साल में ऐसा क्या हो गया कि कांग्रेस की ऐसी दुर्गति हो गयी? जन सरोकारों से जुड़े मामले में ममता देवी को सजा से उत्पन्न सहानुभूति, दूधमुंहा बच्चे को चुनावी रैलियों में घुमा मानवीय आधार पर समर्थन पाने की कोशिश और सबसे बड़ी बात मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) का साथ, तब भी हार! निष्कर्ष यह कि चुनाव जीतने के बाद ममता देवी जन आकांक्षाओं पर खरा नहीं उतरीं. जिन मुद्दों को उछाल कर विधायक बनीं, जो वायदे किये, सब भूल गयीं, पूरा नहीं कर पायीं. परिणामतः उनके कार्यकलापों से क्षुब्ध एक बड़े तबके ने सुनीता चौधरी (Sunita Chaudhary) को विकल्प मान लिया.
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सवालों में घिरी विश्वसनीयता
विश्लेषकों की समझ है कि रामगढ़ में कांग्रेस की हार सत्ता विरोधी रुझान और भाजपा एवं आजसू के एक दूसरे के करीब आ जाने की वजह से हुई. इसमें 1932 के खतियान आधारित स्थानीयता के मुद्दे का भी असर रहा. स्थानीयता की उलझन को लेकर हेमंत सोरेन की सरकार की विश्वसनीयता सवालों में घिर गयी. सरकार (Government) ने स्थानीयता से संबंधित विधेयक लाया, विधानसभा में पारित भी कराया. परन्तु, कानून नहीं बन पाया. राज्यपाल (Governor) ने विधेयक लौटा दिया. ऐसा ही कुछ हश्र नियोजन नीति का हुआ. हेमंत सोरेन की सरकार द्वारा बनायी गयी नियोजन नीति को झारखंड उच्च न्यायालय (Jharkhand High Court) ने रद्द कर दिया. पिछड़ा वर्ग का आरक्षण प्रतिशत बढ़ाना उलटा दांव जैसा हो गया. इन सबको भाजपा की साजिश बता हेमंत सोरेन ने लाख गाल बजाये, मतदाताओं पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा. उनकी ‘खतियानी जोहार यात्रा’ भी कोई विशेष आकर्षण पैदा नहीं कर पायी. हेमंत सोरेन के अवैध पत्थर खनन के मामलों में घिरने से भी सत्ता विरोधी माहौल को मजबूती मिली.
ज्यादा मुश्किल नहीं
2024 के मई-जून में लोकसभा (Loksabha) और उसके तकरीबन छह माह बाद झारखंड विधानसभा (Jharkhand Assembly) के चुनाव होंगे. ये दोनों ही चुनाव भाजपा के ‘मिशन 2024’ के हिस्सा हैं. भाजपा ने झारखंड की सभी 14 संसदीय सीटों पर जीत हासिल करने का लक्ष्य तय कर रखा है. रामगढ़ उपचुनाव के नतीजे से यह संकेत मिलता है कि भाजपा और आजसू मिलकर चुनाव लड़ते हैं तो फिर ‘मिशन 2024’ की लक्ष्य प्राप्ति ज्यादा मुश्किल नहीं होगी. बशर्ते कि महागठबंधन (Mahagathbandhan) की ऐसी ही आत्ममुग्धता बनी रहे. इधर, स्थानीयता, नियोजन नीति और खतियान के मुद्दे पर हेमंत सोरेन ने पांव खींच हालात अनुकूल बनाने का प्रयास किया है. परन्तु, कुरमी को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की जोर पकड़ रही मांग नयी परेशानी पैदा करती दिख रही है.
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