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लालगंज का दलित नेता प्रकरण : फंस जायेगी गर्दन कंचन साह की?

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विष्णुकांत मिश्र
20 अप्रैल, 2023

HAJIPUR : इलाके में चर्चा है कि विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला (Munna Shukla) और राकेश पासवान (Rakesh Paswan) के बीच छत्तीस का आंकड़ा था. ऐसा क्यों था, इस पर कोई खुलकर कुछ नहीं बोलता है. वैसे, सामान्य समझ में वर्चस्व की बात है. कुछ साल पूर्व राकेश पासवान पर गोली चली थी. सिर के ऊपरी हिस्से को छिलते हुए निकल गयी थी. शूटर की चूक से नयी जिन्दगी मिल गयी थी. गोली किसने चलायी और किसने चलवायी, इसका मुकम्मल उद्भेदन शायद नहीं हो पाया है. सच या झूठ, चर्चाओं में विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला का नाम आया. इसकी तश्दीक मुकेश पासवान (Mukesh Paswan) ने भी की है. लालगंज (Lalganj) से अभी संजय कुमार सिंह (Sanjay Kumar Singh) भाजपा के विधायक हैं. इससे पहले लोजपा के राजकुमार साह विधायक थे. राजकुमार साह के भाई कंचन साह लालगंज नगर परिषद के सभापति हैं. राकेश पासवान का नगर परिषद के चुनाव में भी हस्तक्षेप हुआ करता था. उनके भाई पूर्व जिला पार्षद मुकेश पासवान के मुताबिक नगर परिषद के पिछले चुनाव में राकेश पासवान का साथ कंचन साह को मिला था. पर, चुनाव के बाद कंचन साह (Kanchan Shah) का तेवर बदल गया. संबंधों में तल्खी ऐसी आ गयी कि हत्या से दो दिन पूर्व अंबेदकर जयंती पर शोभायात्रा निकालने पर बुरे परिणाम की धमकी तक दे डाली थी. प्राथमिकी में इस बात का जिक्र है.

तब तोड़ दिया था जनेऊ
जिस पोझिया गांव का आदित्य ठाकुर (Aditya Thakur) है, दिलीप ठाकुर (Dilip Thakur) भी उसी गांव के हैं. वार्ड संख्या 19 से लालगंज नगर परिषद के वार्ड पार्षद हैं. जब लालगंज नगर पंचायत थी तब एक बार उसके उपाध्यक्ष निर्वाचित हुए थे. लोग बताते हैं कि राकेश पासवान से उनकी पुरानी अदावत थी. उसकी एक वजह यह भी बतायी जाती है कि पोझिया गांव के डोमी चौक पर राकेश पासवान के घर के सामने दिलीप ठाकुर की कुछ जमीन है. उसको लेकर अक्सर विवाद खड़ा हो जाता है. एक बार ऐसा ही कुछ विवाद हुआ जिसमें कथित रूप से राकेेश पासवान और उनके लोगों ने दिलीप ठाकुर की पिटाई कर दी. कहते हैं कि उसी वक्त उन्होंने अपना जनेऊ तोड़ दिया. इस प्रतिज्ञा के साथ कि राकेश पासवान का अस्तित्व मिट जाने के बाद ही वह फिर से जनेऊ धारण करेंगे. राकेश पासवान का अस्तित्व मिट गया. किसने मिटाया, इस रहस्य को सुलझाने का काम पुलिस का है. पिटाई की बाबत मुकेश पासवान का कुछ और कहना है. उनके मुताबिक विवाद सलटाने के लिए पंचायती हो रही थी. उसी क्रम में राकेश पासवान पर प्राणलेवा हमला किया गया था. परिजनों का यह भी कहना है कि राकेश पासवान की हत्या राजनीतिक (Political) कारणों से हुई. 2020 के विधानसभा चुनाव (Assembly Election) में मात खा जाने के बाद 2025 के लिए वह जबर्दस्त तैयारी कर रहे थे. इस वजह से पुराने अखाड़ियों को खटकने लग गये थे.

कोई खास चुनावी उपलब्धि नहीं
हालांकि, इसमें उतना दम नहीं है. 2020 में राकेश पासवान निर्दलीय मैदान में उतरे थे. 5 हजार 119 मतदाताओं का ही साथ मिल पाया था. 2025 में विशेष बदलाव की संभावना नहीं थी. दिलचस्प बात यह कि 2020 के चुनाव में दिलीप ठाकुर जाप (JAP) के उम्मीदवार थे. 663 मतों में सिमट गये थे. लोजपा के राजकुमार साह को 11 हजार 281 मत ही प्राप्त हो पाये थे. तटस्थ लोगों की मानें, तो राकेश पासवान स्थानीय स्तर पर दलितों के लोकप्रिय नेता थे. बुनियाद उसकी दबंगता व मुखरता थी. विरोधी उनके कारनामों का बखान करते हैं तो अंत उसका बहुत जल्द नहीं होता है. बात लगभग12 साल पुरानी है. लालगंज के सरकारी अस्पताल (Hospital) में प्रसव के दौरान एक महिला की मृत्यु हो गयी. राकेश पासवान ने इसे मुद्दा बना दिया. अस्पताल में तोड़-फोड़ और आगजनी हुई. लालगंज (Lalganj) की पुलिस ने राकेश पासवान को अपनी गिरफ्त में ले लिया. पटना के वर्तमान जिलाधिकारी डा. चन्द्रशेखर (Dr. Chandrashekhar) तब हाजीपुर के सदर अनुमंडलाधिकारी (SDO) थे. स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस उपाधीक्षक (DSP) के साथ वहां गये थे. राकेश पासवान की गिरफ्तारी से आक्रोशित समर्थकों ने दोनों अधिकारियों को अस्पताल के एक कमरे में बंद कर दिया. यानी बंधक बना लिया. उन्हें तब छोड़ा गया जब पुलिस ने राकेश पासवान को मुक्त कर दिया.


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दबंगता के हैं अनेक किस्से
सराय थाने पर उपद्रव और आगजनी में भी राकेश पासवान का नाम चर्चा में आया था. दिलचस्प बात यह कि उस कालखंड में इन और इन जैसी कई घटनाएं हुईं. किसी में राकेश पासवान को नामजद नहीं किया गया, ऐसा वहां के लोगों का कहना है. एक तो दलित (Dalit) समाज का प्रभावशाली नेता, रामविलास पासवान (Rambilash Paswan) जैसी शख्सियत का संरक्षण और गरीब-गुरबों का साथ, प्राथमिकी कैसे दर्ज होती? इस क्रम में लोग एक और वाकये की चर्चा करते हैं. एक पूर्व सहकारिता मंत्री एक बार उस रास्ते से मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur) जा रहे थे. किसी मुद्दे को लेकर राकेश पासवान और उनके समर्थकों ने सड़क जाम कर रखी थी. पूर्व मंत्री (Ex Minister) बीच से निकलना चाह रहे थे. यह उन सबको नागवार गुजरा और उन्हें ऐसा खदेड़ा कि गाड़ी से उतरकर भागना पड़ा. उसी खदेड़ा-खदेड़ी में धोती खुल गयी. वह तो संयोग था कि विद्यार्थी परिषद (ABVP) से जुड़े एक युवक का वहां कोचिंग (Coaching) संस्थान था. उन्होंने ही पूर्व मंत्री को पहचाना और संकट से उबारा. ऐसे और भी किस्से हैं, सामान्य धारणा है कि ऐसे कि किस्सों ने उन्हें अपने समाज में लोकप्रिय बना दिया. (समाप्त)

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