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बदल गया कानून आनंद मोहन के लिए!

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शिवकुमार राय
15 अप्रैल, 2023

PATNA : यही एक उपाय था. असंभव को संभव बनाने का. और, ऐसा राजनीति में ‘आदर्श एवं शुचिता के बचे-खुचे प्रतिमान’ समझे जाने वाले नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ही कर सकते थे. उन्होंने किया. ऐसा कि तात्कालिक तौर पर सिर्फ एक व्यक्ति को लाभ पहुंचाने के लिए लोक सेवकों (Public Servants) की भावनाओं को कुचल उनके हितों की बलि चढ़ा दी. संबंधित कानून (Law) को बदल ‘सुशासन’ की नयी परिभाषा गढ़ दी. इस निर्णय से सजायाफ्ता पूर्व सांसद आनंद मोहन (Anand Mohan) की समय पूर्व रिहाई का मार्ग प्रशस्त होने का हर समर्थक-प्रशंसक हृदय स्वागत करेगा. इसलिए कि हत्या के जिस मामले में उन्हें सजा मिली थी उसमें क्षत्रिय खून में उबाल की वजह से वह फंस गये थे. आरोप हत्या का नहीं, उपद्रवी भीड़ को उकसाने का था. लेकिन, क्या संबद्ध कानून को खत्म कर देने का निर्णय कानूनप्रिय संवेदनशील हृदयों को स्वीकार होगा? कदापि नहीं.


नीतीश कुमार की सरकार ने 10 अप्रैल 2023 की तारीख में चुपके-चुपके अधिसूचना जारी कर बिहार कारा हस्तक में संबंधित वर्णित वाक्यांश ‘या काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या’ को विलोपित कर दिया है. इससे आनंद मोहन की समय पूर्व रिहाई करीब-करीब तय हो गयी है. 


दिखी फिर पलटीमार प्रवृत्ति
‘कानून अपना काम करेगा’ – सुशासन का मूल मंत्र था. इस राग को अलापते मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और उनके दायें-बायें के लोग अघाते नहीं थे. आज कानून का गला घोंट बैठे. जब कानून ही नहीं रहा तो वह अपना काम क्या करेगा! विडंबना देखिये, नीतीश कुमार की ही सरकार (Government) ने कुछ समय पूर्व बिहार विधानसभा में कहा था कि आजीवन कारावास की सजा काट रहे आनंद मोहन की समय पूर्व रिहाई संभव नहीं है. जिस कानून का हवाला देकर सरकार ने ऐसा कहा था उस कानून को खत्म कर उसी ने इस असंभव को संभव बना दिया. विश्लेषकों की समझ में यह भी नीतीश कुमार की ‘पलटीमार प्रवृत्ति’ को दर्शाता है. जब मर्जी ही चलानी है तो यह भी हो सकता है कि आनंद मोहन की रिहाई के बाद बिहार कारा हस्तक में एक और संशोधन कर हटाये गये प्रावधान को फिर से जोड़ दिया जाये.


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चुपके-चुपके जारी हुई अधिसूचना
कानून में बदलाव आमतौर पर व्यक्ति विशेष नहीं, समाज के हित में हुआ करता है. नीतीश कुमार के इस निर्णय में वैसा कुछ है क्या? बिल्कुल नहीं. बल्कि यूं कहें कि व्यक्ति विशेष के हित में समाज के हित को दफना दिया गया. आनंद मोहन की समय पूर्व रिहाई में बिहार (Bihar) कारा हस्तक (बिहार जेल मैनुअल) का वह प्रावधान अवरोध बना हुआ था जिसमें बंदियों की समय पूर्व मुक्ति के संदर्भ में ‘काम पर तैनात सरकारी सेवक (लोक सेवक) की हत्या जैसे जघन्य मामले में मिली आजीवन कारावास की सजा में छूट नहीं मिल सकती है’ का प्रावधान था. नीतीश कुमार की सरकार ने 10 अप्रैल 2023 की तारीख में चुपके-चुपके अधिसूचना जारी कर बिहार कारा हस्तक में संबंधित वर्णित वाक्यांश ‘या काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या’ को विलोपित कर दिया है. इससे आनंद मोहन की समय पूर्व रिहाई करीब-करीब तय हो गयी है. यहां ध्यान देनेवाली बात यह भी है कि इस वाक्यांश को विलोपित नहीं किया जाता, तो आनंद मोहन को पूरी उम्र जेल में गुजारनी पड़ जाती. बहरहाल, महागठबंधन सरकार के इस निर्णय से आनंद मोहन, उनके परिजनों एवं समर्थकों-प्रशंसकों को निश्चय ही सुकून मिला होगा. वैसे, न्यायिक समीक्षा में कानून को मिटा देने का निर्णय टिक पायेगा भी या नहीं, यह भी मायने रखेगा. बात थोड़ी नैतिकता की भी. क्षणिक राजनीतिक लाभ के लिए जो कानून खत्म कर दे सकता है. देवयोग से प्रधानमंत्री (Prime Minister) पद पर आसीन हो गया तब ताउम्र जमे रहने के लिए क्या सब कर दे सकता है, यह संवेदनशील तबके के लिए सोचने की बात है.

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