तो इसलिए फूंक-फूंक कर तलाश रहे हैं उत्तराधिकारी!
विशेष प्रतिनिधि
24 अप्रैल, 2023
PATNA : कुछ मामले में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) सबसे अलग हैं. उनके उत्तराधिकारी के चयन के मामले को भी इस रूप में देख सकते हैं. यह थोड़ा पेंचीदा विषय है. लेकिन, है बहुत ही रोचक, मनोरंजक और विस्मयकारी. याद कीजिये, नीतीश कुमार ने अब तक कितने लोगों को अपना उत्तराधिकारी बनाने का भ्रम दिया. पीके यानी प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने. पद संभालते ही उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार उनके पिता तुल्य हैं. उत्तराधिकारी बनने की कतार में खड़े बाकी लोगों को मूर्छा आ गया. आरसीपी सिंह (RCP Singh) खुद को ‘प्रथम उत्तराधिकारी’ मान रहे थे. तिलमिलाकर कोप भवन में घुस गये. वहीं बैठ प्रशांत किशोर को बाहर का रास्ता दिखाने का उपाय करने लगे. तुरंत तो नहीं, कुछ महीने बाद उनका वह मनोरथ पूरा हो गया.
भ्रम ऐसा टूटा कि…
प्रशांत किशोर का उत्तराधिकारी बनने का भ्रम ऐसा टूटा कि सैकड़ों कोस दूर भाग गये. उसके बाद आरसीपी सिंह की बांछें खिल गयीं. वह फिर से उत्तराधिकारी बनने का सपना देखने लगे. नीतीश कुमार ने जब उन्हें अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष वाला पद सौंपा तो पार्टी के कार्यकर्ताओं ने मान लिया कि यही हैं, नीतीश कुमार के असली उत्तराधिकारी यही हैं. दरबार (Darbar) में कार्यकर्ताओं की भीड़ लगने लगी. अधिकारी पहले से ‘शरणागत’ थे ही. फिर आरसीपी सिंह के साथ क्या हुआ, यह बताने की जरूरत नहीं है. लेकिन, यह जानना दिलचस्प है कि इन दिनों आरसीपी सिंह वह सब कुछ कर रहे हैं, जिससे नीतीश कुमार की गति जार्ज फर्नांडिस (George Fernandes) की तरह हो जाये.
घोषणा का गजब अंदाज
इसी बीच उपेन्द्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) का आगमन हुआ. नीतीश कुमार ने उन्हें उत्तराधिकारी बनाने के बारे में कुछ नहीं कहा. सिर्फ आंखों को गोल-गोल नचाकर उन्हीं से सवाल (Question) किया-चारो तरफ देख लीजिये. इस पार्टी (Party) में हमारे बाद आपके अलावा कोई और है क्या? उपेन्द्र कुशवाहा ने भी चारो तरफ देखा. कोई नजर नहीं आया. निश्चिंत हो गये. घर लौटे तो कार्यकर्ताओं ने लपक लिया. कहानी आगे बढ़ी. नीतीश कुमार ने जल्द ही अध्यक्षता वाला उत्तराधिकार राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह (Lalan Singh) को सौंप दिया. ये बेचारे फुल ही रहे थे कि भतीजा तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejaswi Prasad Yadav) को उत्तराधिकारी बना दिया. नीतीश कुमार की उत्तराधिकार कथा का यही अंत नहीं है. उत्तराधिकारी घोषित करने का उनका गजब अंदाज दिखा. हाल-फिलहाल पत्रकारों ने उत्तराधिकारी के बारे में पूछा. नीतीश कुमार ने उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव की पीठ पर हाथ रख कहा-यही हैं हमारे उत्तराधिकारी. नीतीश कुमार की इस उदारता की चहुंओर और खासकर राजद (RJD) में जमकर प्रशंसा हुई. गांव-जवार में खुशियां मनायी गयीं. सबने कहा कि इस बार धोखा नहीं होगा. नीतीश कुमार ने कह दिया सो कह दिया. तेजस्वी प्रसाद यादव के पास ताबड़तोड़ सिफारिशें आने लगीं.
भागीदारी का सवाल
राजद के जनाधार से जुड़े अधिकारियों ने कहा कि शासन में यह भी नजर आये कि हमारी भागीदारी है. यह इससे पता चलता है कि राजद के जनाधार से जुड़ी विभिन्न बिरादरी के कितने अधिकारी निर्णायक पदों पर हैं. आईएएस- आईपीएस का तबादला हो रहा था. समर्थकों के कहने पर उपमुख्यमंत्री की ओर से भी अधिकारियों की सूची भेजी गयी. शाम में दोनों संवर्ग के अधिकारियों के तबादले की सूची जारी हुई. पूरी सूची देखने के बाद कहा गया कि इनमें एक भी नाम उपमुख्यमंत्री (Deputy Chief Minister) की सूची से नहीं लिया गया. ‘माय’ समीकरण के एक आईएएस (IAS) अधिकारी का नाम था. पता चला कि वह ऊर्जा मंत्री बिजेन्द्र प्रसाद यादव (Bijendra Prasad Yadav) के कोटे के हैं. पहले से भी अच्छे पदों पर रहे हैं. बिजेन्द्र प्रसाद यादव की बात मानना नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की मजबूरी है. क्योंकि वह मुंह में आयी कोई बात बाहर निकालने से परहेज नहीं करते हैं.
अंतिम हश्र क्या हुआ
ऐसे अवसरों पर प्रोटेस्ट (Protest) का रिवाज होता है. इस रिवाज का भी पालन किया गया. कहा गया कि जल्दी दूसरी सूची जारी होगी. उसमें तेजस्वी प्रसाद यादव की सूची के अधिकारियों के नाम रहेंगे. इस बीच खाली बैठे समर्थक हिसाब लगा रहे हैं कि नीतीश कुमार ने इससे पहले जिस किसी को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया, उनका अंतिम हश्र क्या हुआ? तेजस्वी प्रसाद यादव से पहले उपेन्द्र कुशवाहा के मन में उत्तराधिकारी होने का भ्रम पैदा किया गया. वह कहां हैं, किस हाल में हैं, बताने की जरूरत नहीं है. उनके लिए एक अदद मंत्री (Minister) का पद गंवारा नहीं हुआ.
सम्मानजनक संबोधन भी नहीं
उनसे पहले प्रशांत किशोर पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष (National Vice President) बने थे. तब भी यही कहा गया था कि नीतीश कुमार ने अपने उत्तराधिकारी का चयन कर लिया है. प्रशांत किशोर तो नीतीश कुमार वाले सरकारी आवास में रहते थे. वहीं खाते-पीते-सोते-ओढ़ते और बिछाते थे. उनका हश्र यही है कि नीतीश कुमार के मुंह से सम्मानजनक संबोधन भी नहीं निकल रहा है. आरसीपी सिंह तो उत्तराधिकारी (Successor) की तरह काम भी करने लगे थे. संगठन और शासन दोनों में उनका इशारा ही आदेश माना जाने लगा था. वह इन दिनों कहां रह रहे हैं.
समझ तो यही बनी है
पूरी कथा सुनने-सुनाने के बाद राजद के गंभीर चिंतकों की यही समझ बन रही है कि कुछ और नहीं, उत्तराधिकारियों की सूची में एक नाम तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejaswi Prasad Yadav) का भी जुड़ कर रह जायेगा. क्योंकि यहां जिज्ञासा हर किसी की जगी होगी कि आखिर इस मामले में वह स्थिर चित्त क्यों नहीं हो पा रहे हैं? इसको जानने-समझने के लिए थोड़ा अतीत में जाना होगा. यह खुला सच है कि नीतीश कुमार खुद को प्रसिद्ध समाजवादी नेता जार्ज फर्नांडिस का उत्तराधिकारी मानते हैं. जार्ज फर्नांडिस भी उनको अपना उत्तराधिकारी मानते थे. इसके बाद भी उन्होंने जार्ज फर्नांडिस के साथ क्या-क्या नहीं किया. बड़ी बेशर्मी से पार्टी के अध्यक्ष (President) पद से चलता कर दिया गया. इतने से मन नहीं भरा. लोकसभा (Lok Sabha) के चुनाव में उम्मीदवारी से वंचित कर हाशिये पर डाल दिया गया. बुढ़ापा ओढ़े जार्ज फर्नांडिस चुनाव (Election) हार गये.
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कभी उठ नहीं पाये
नीतीश कुमार ने राज्यसभा में उन्हें एक अदद कटपीस वाला कार्यकाल दे दिया. उस कार्यकाल की समाप्ति के बाद से वह जो बीमार पड़े, कभी उठ नहीं पाये. कृतघ्नता ऐसी कि लंबी बीमारी के दरम्यान कभी घूमकर देखने तक नहीं गये. कुछ-कुछ ऐसा ही शरद यादव (Sharad Yadav) के साथ हुआ. कोई इत्तफाक रखे या नहीं, यही वह कारण है कि नीतीश कुमार अपने उत्तराधिकारी की तलाश कर रहे हैं, तो फूंक-फूंक कर कदम उठा रहे हैं. हमेशा यह डर सताते रहता है कि उनके साथ भी उत्तराधिकारी वही सब न करने लगे जो उन्होंने पहले जार्ज फर्नांडिस और फिर शरद यादव के साथ किया था. मतलब फजीहत- दर-फजीहत!
उन्हें यह भी पता है
इसका हल्का-फुल्का अनुभव उन्हें उस छोटे से कालखंड में हुआ भी था जब अपनी सत्ता उन्होंने जीतनराम मांझी (Jitanram Manjhi) को सौंप दी थी. उस हालात से उबरने के लिए क्या सब जतन करना पड़ा था, यह स्मरण में होगा ही. निष्कर्ष यह कि जब तक सांस है, नीतीश कुमार गद्दी की आस नहीं छोड़ने वाले हैं. उन्हें यह भी पता है कि सत्ता से अलग हुए तो भूंजा पार्टी के सदस्य सबसे पहले फरार होंगे. ऐसी बातें इन दिनों राजनीतिक (Political) गप्प-गोष्ठियों में खूब हो रही हैं.
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