महनार नगर परिषद : कालिख से भी काली है कलंक-कथा
अश्विनी कुमार आलोक
09 मई 2023
MAHNAR (VAISHALI) : पानी जब चढ़ता है, तो पानी-सा होता है. उत्साह और जीवन से लबरेज, चेहरे की चमक का आकार, घर की प्रतिष्ठा का अर्थ. उतरता है, तो मैल उतार लाता है, कालिख लपेट लाता है, जहर की तरह. जवाल भी पानी का ही कोई दाग है, धोये से न धुले. इसी उतरे हुए पानी (Water) की एक कलंक-कथा, जो बीते ढाई दशक पूर्व शुरु हुई थी, फैलती जा रही है. उसका फैलाव कहां तक होगा, कह नहीं सकते. उस कथा में करीब एक दर्जन लोगों की जान जाने के दृश्य भी हैं और ऐसे ही दर्जनों लोगों के बेवजह विदा हो जाने की तैयारी भी. बेबस और लाचार लोगों के बीमार होकर बिलबिलाने का विलाप भी और देह पर उभरे हरे-स्लेटी दागों की पीड़ा भी. पर अफसोस कि यह सब किसी सभ्य समाज के सामने नहीं आ सका, किसी राजनेता की ओर से समाज हित का मुद्दा नहीं समझा जा सका.
विष घोल दिया वातावरण में
यह कथा है वैशाली (Vaishali) जिले की महनार (Mahnar) नगर परिषद की. अभी तुरंत बिहार सरकार (Bihar Government) को करोड़ों रुपये का जुर्माना इसलिए लगाया गया है कि उसने वैज्ञानिक तरीके से कूड़े-कचरे के निपटाने की कोशिश नहीं की और वातावरण में विष घोल दिया. बीते ढाई दशकों से महनार का प्रशासन ऐसा ही विष स्थानीय जन जीवन में घोल रहा है, जिससे करीब एक दर्जन लोगों की मौत हो चुकी है. इससे कई बीघे जमीन में लगे पेड़ पौधे नष्ट हो चुके हैं, जमीन सदा के लिए अनुर्वर हो चुकी है. महनार नगर परिषद (Mahnar Nagar Parishad) के चुनाव को लेकर जारी अधिसूचना का असर दिख रहा है. नेता बैनर-पोस्टर छपवाने और वादों की सूची बनाकर उन्हें बांटने की तरकीबों में जुट गये हैं. पर, किसी के बैनरों-पोस्टर का यह हिस्सा नहीं है, इस कलंक कथा की कालिख से हर किसी ने स्वयं को बचाये रखने की पूरी कोशिश की है.
मर गये कई लोग
समूचे शहर (Town) के घरों की नालियों से निकलने वाला गंदा पानी एक घनी बस्ती में लाकर छोड़ दिया गया है. वह भी एक सरकारी विद्यालय (Government School) की दीवार से सटे भू-भाग में, महनार-मोहिउद्दीननगर मुख्य सड़क के करीब. महनार बाजार से महज सौ मीटर की दूरी पर. जाति आधारित गणना (Caste Based Enumeration) कराकर सभी जातियों के लिए विकास करने का दावा करनेवाली बिहार सरकार शायद यह भी नहीं जानती होगी कि इस काले गंदे पानी का असर सभी जातियों पर पड़ रहा है और इससे बीमार होकर मरनेवाले करीब एक दर्जन लोग मुसहर जाति के थे. हर मौसम स्थानीय लोगों के लिए कष्टदायक सिद्ध हो रहा है. लोग अनेक प्रकार की बीमारियों से त्रस्त हो रहे हैं. परंतु, जिस बरसात में पानी अधिक बरसा, उसमें बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. महनार बाजार से दक्षिण की ओर सटकर गंगा (Ganga) बहती है. पर, गंगा नदी की बाढ़ से यहां के जनजीवन को कोई खतरा नहीं, खतरा है तो इस काले जहर की तरह फैलते पानी से.
बस्तियों में फैलता गंदा पानी
यह पानी बरसात में स्थानीय घरों तक फैल जाता है, इसके बजबज करते कीड़े लोगों के स्वच्छता के निजी प्रयासों पर पानी फेर देते हैं. यहां मुसहरों की दो बस्तियां हैं. एक बस्ती तो सालभर इस क्लेश का कोप सहती रहती है, जो गंदे पानी के जमाव-स्थल से सटे उत्तरी भू-भाग में बसी हुई है. मुसहरों की दूसरी बस्ती इसहाकपुर (Ishaqpur) पोखर के पश्चिमी किनारे पर बसी हुई है. बीच में पासवान जाति की घनी बस्ती है. इधर-उधर अनेक दूसरी जातियों के लोग बसे हुए हैं. जब बरसात में यह गंदा पानी इन बस्तियों में फैलता है, तब इसहाकपुर पोखर भी उपट जाता है. घरों में रहना, सड़क पर चलना दूभर हो जाता है. अनेक संक्रामक बीमारियां फैल जाती हैं. हैजा, चेचक, कालाजार जैसी बीमारियों को तो लोग भले पहचान लें . ऐसी अनेक बीमारियां और उत्पात मचाती हैं, जिन्हें पहचान पाना सहज नहीं.
पटेल चौक पर छोड़ दिया पानी
ऐसी बीमारियों से करीब एक दर्जन लोग मारे जा चुके हैं. मारे गये लोगों में अधिकांश बच्चे और किशोर थे, जबकि गंदे और विषाक्त पानी के जहर को कुछ अधेड़ उम्र लोग भी न झेल सके. मारे गये लोगों की सूची बनाने बैठें, तो ललिता कुमारी, बुधनी कुमारी, योगेंद्र मांझी, नन्हकी मांझी और मनीष कुमार के नाम स्वाभाविक ही याद हो जाते हैं. ये निरीह लोग इस गंदे पानी से फैली बीमारियों की भेंट चढ़ गये. जब से महनार नगर पंचायत की श्रेणी में आया, उसकी जवाबदेही में यह भी तय हो गया कि घरों की नालियों से उतरता हुआ गंदा पानी किसी आबादी विहीन क्षेत्र में छोड़ दिया जाये. नगर पंचायत नागर जीवन की सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए कर लेती है, तो ऐसे उपाय के लिए उस पर दवाब पड़ना ही था. पहले घरों की नालियों के गंदे पानी को इधर-उधर बहा दिया जाता था. सभी नालियों को बिना किसी वैज्ञानिक और सुनियोजित योजना के पटेल चौक (Patel Chowk) पर लाकर छोड़ दिया गया.
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गड्ढा भर गया, परेशानी पसर गयी
जब आवागमन पर बुरा असर पड़ा, तो पटेल चौक के समीप प्राथमिक विद्यालय के समीप एक निजी जमीन का चयन किया गया. उस जमीन पर कुछ वर्ष पूर्व ईंटें पाथी गयी थीं, गड्ढा था. कहते हैं कि जमीन मालिक से नगर पंचायत ने सालाना पांच हजार में सौदा तय किया. लेकिन कुछ ही समय बाद यह गड्ढा भर गया और निकटवर्ती जमीनों में गंदा पानी फैलने लगा. अब कई बीघे जमीन इसके विस्तार की भेंट चढ़ चुके हैं. हालांकि जमीन के मालिक इस प्रकार के किसी सौदे से इनकार करते हैं. लेकिन, कहा जाता है कि नगर पंचायत जब नगर परिषद के रूप में तब्दील की गयी, तो यह रकम बढ़ाकर पंद्रह हजार रुपये की गयी. अब इस गंदे पानी, गाद-कीचड़ और कचरे के दुष्प्रभाव से पेड़-पौधे सूख चुके हैं. बस्तियों तक जानेवाले रास्ते पर स्कूल के निकट पानी बह रहा है.
कहीं कोई सुनवाई नहीं
ऐसा नहीं है कि पानी के इस जमाव के खिलाफ आवाज नहीं उठी. अनेक बार प्रभावित लोगों ने नगर परिषद को आवेदन दिये, परंतु कोई असर नहीं पड़ा. दो साल पूर्व बरसात में स्थिति भयावह हो गयी थी, मुसहरटोली में हैजा फैल गया था. दर्जनों लोग एक साथ आक्रांत थे, तब रात में ट्यूबलाईट जलाकर प्रशासन को चिकित्सा शिविर लगाना पड़ा था. पासवान टोला के कुछ लोगों ने सड़क और घरों में उतर आये गंदे पानी के विरुद्ध सड़क जाम कर दी. परंतु, किसी स्थानीय नेता ने साथ नहीं दिया. महनार थाने में इस आंदोलन से जुड़े लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करा दी गयी. स्थानीय महेंद्र मांझी बताते हैं कि आदमी पर दस-दस हजार रुपये लगे, तब नाम काटे गये.
टहल रहा प्रस्ताव
महनार नगर परिषद के कुछ कारिंदे बताते हैं कि सरकार (Government) को इस पानी का बहाव अन्यत्र निर्धारित करने के लिए प्रस्ताव भेजा गया है. गहरे सीवर और ड्रेनेज के निर्माण के लिए करोड़ों की जरूरत है. पता नहीं, फाइल कहां अटकी हुई है. नालों की उड़ाही समय से नहीं हो पाती, उनपर कहीं भी ढक्कन चढ़ा हुआ नहीं है. महनार नगर परिषद ने कालिख से भी काले रंग से जो कलंक कथा लिखी है, पता नहीं उसका अंत कब होगा.
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