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हाल ‘बंजर भूमि’ का: यह हुआ गोइठा में घी सुखाना!

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तेजस्वी ठाकुर
29 अगस्त 2023

Saharsa : यहां गौर करने वाली बात यह भी कि कोशी अंचल (Koshi Zone) में ब्राह्मणों की तायदाद अपेक्षाकृत कम है. इस दृष्टि से बेनीपट्टी के विधायक पूर्व मंत्री विनोद नारायण झा नहीं तो पूर्व मंत्री नीतीश मिश्र को अवसर उपलब्ध होता तो शायद भाजपा (BJP) का जाति आधारित राजनीतिक मकसद बहुत हद तक पूरा हो जाता. पूर्व मुख्यमंत्री डा. जगन्नाथ मिश्र (Dr. Jagannath Mishra) के पुत्र नीतीश मिश्र मधुबनी जिले के झंझारपुर से भाजपा के विधायक हैं. मूल रूप से सुपौल जिले के बलुआ के रहने वाले हैं. कई अगर-मगर के बावजूद उन्हें मंत्री बनाये जाने से कोशी और मिथिलांचल (Mithilanchal), दोनों के ब्राह्मणों को संतुष्टि मिलती.

नागवार गुजरा
नीतीश मिश्र राजग की पूर्व की सरकार में मंत्री रह चुके हैं. गन्ना विकास विभाग हो या ग्रामीण विकास विभाग, सब जगह उन्होंने अपनी क्षमता- दक्षता की छाप छोड़ी है. इस खासियत के बाद भी उन्हें नजरंदाज कर दिया जाना स्वजातीय समाज को नागवार गुजरा. उसकी धारणा बनी कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने ऐसा नहीं होने दिया. नीतीश मिश्र (Nitish Mishra) से राजनीतिक खुन्नस और विधान पार्षद संजय झा (Sanjay Jha) को मंत्रिमंडल में बनाये रखने की मंशा इसकी वजह रही. ऐसा ब्राह्मण समाज में कोई नया मजबूत नेतृत्व नहीं उभरने देने की अघोषित रणनीति के तहत भी किया गया.

कोई खास महत्व नहीं
इस अंचल में ब्राह्मणों की तरह क्षत्रिय मतों की संख्या भी कोई खास महत्व नहीं रखती है. तब भी एकाध निर्वाचन क्षेत्रों में कारगर हस्तक्षेप की इसकी हैसियत तो मानी ही जाती है. राजद (RJD) के शासनकाल में अशोक कुमार सिंह को मंत्रिमंडल में जगह इसी वजह से मिलती थी. लेकिन, नीरज कुमार सिंह बबलू के मंत्री-पद का आधार यह नहीं रहा. राजनीतिक चर्चाओं पर भरोसा करें तो उनकी वह अप्रत्याशित उपलब्धि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) की कृपा आधारित थी. राजनाथ सिंह से ऐसी ही ‘कृपा’ की उम्मीद बाढ़ के भाजपा (BJP) विधायक ज्ञानेन्द्र सिंह ज्ञानू ने भी लगा रखी थी. शायद उनकी ‘निष्ठा’ में खोट रह जाने के कारण ‘कृपा’ नीरज कुमार सिंह बबलू की ओर सरक गयी थी.


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विस्तार का आधार
अतीत पर नजर दौड़ायें, तो दलितों व अतिपिछड़ों की आहत भावना कोशी अंचल की राजनीति को गहरे रूप से प्रभावित करती रही है. इस अंचल में समाजवादी समझ के विस्तार का यही मुख्य आधार माना जाता रहा है. कांग्रेस (Congress) शासनकाल में आबादी कम रहने के बावजूद दलितों-पिछड़ों के दिमाग में सवर्ण समाज शोषक-उत्पीड़क के रूप में बसा था. उस कालखंड में इस समाज का जुड़ाव मुख्य रूप से कांग्रेस से था. कथित रूप से शोषित-उत्पीड़ित तबका समाजवादियों के सवर्ण विरोधी विचारों-आचरणों से मोहित-आकर्षित हो गया.

तब खिल उठता ‘कमल’
सामाजिक न्याय की राजनीति (Politics of Social Justice) के दौर में पिछड़ों के बीच से ही शोषकों -उत्पीड़कों का नया समूह उभर आया, जो ‘सवर्ण शोषकों ’ की तुलना में कुछ अधिक ‘निर्दयी’ निकला. उधर कांग्रेस के अधोपतन ने सवर्णों को भाजपा की ओर मुखातिब कर दिया. दोनों ही वर्गों से त्रस्त-पस्त दलितों और अतिपिछड़ों का स्वाभाविक जुड़ाव जदयू (JDU) से हो गया. चुनावों में उसे इसका पूरा लाभ मिलने लग गया. कोशी अंचल के सामाजिक-राजनीतिक समीकरणों की गहन जानकारी रखने वालों का मानना है कि दलितों-अतिपिछड़ों के ‘खाद-पानी’ से ही ‘कुम्हलाया कमल’ खिल सकता था. इस दृष्टि से उन्हें नजरंदाज कर दूसरे सामाजिक समूहों को अवसर उपलब्ध कराना ‘गोइठा में घी सुखाने’ जैसा ही साबित हो रहा है. 2024 के लोकसभा (Lok Sabha) और 2025 के विधानसभा (Vidhan Sabha) चुनावों पर असर क्या पड़ता है, देखना दिलचस्प होगा.

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